Why in News:
सरकार की ओर से विचार के लिए वापस भेजे गए 43 नाम कोलेजियम ने सरकार के पास दोबारा भेज दिए हैं। कोलेजियम ने 77 नामों की सिफारिश भेजी थी जिसमें से सरकार ने 34 नाम मंजूर कर लिए हैं। 43 नाम दोबारा विचार के लिए कोलेजियम को वापस भेज दिए गए हैं। इस पर पीठ ने उन्हें बताया कि कोलेजियम ने इन 43 सिफारिशों को फिर सरकार के पास भेज दिया है।
गतिरोध :
कोलेजियम की दोबारा सिफारिश सरकार के लिए बाध्यकारी होती है इसलिए संभावना इसी बात की है कि इन नामों को केंद्रीय शासन की स्वीकृति मिल जाए।
Question Mark
कितना न्यायसंगत और विधि सम्मत है कि न्यायाधीश ही न्यायाधीशों की नियुक्ति करें? दुनिया के किसी प्रतिष्ठित लोकतांत्रिक देश में ऐसा नहीं होता। 1993 के पहले कोलेजियम के जरिये न्यायाधीशों की नियुक्ति की व्यवस्था भारत में भी नहीं थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस आधार पर इस व्यवस्था को अपनाया ताकि न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुरक्षित रहे।
गतिरोध को दूर करने की पहल :
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि इस व्यवस्था में कुछ कमी है। उसके आदेश पर ही इस व्यवस्था को दुरुस्त करने की पहल हुई और सरकार से न्यायाधीशों की नियुक्ति संबंधी मेमोरेंडम ऑफ प्रोसिजर तय करने को कहा गया। सरकार ने जो सुझाव दिए वे सुप्रीम कोर्ट को रास नहीं आए और इस तरह मामला जहां का तहां है।

An unending question:
न्यायाधीशों की नियुक्तियों का मामला एक लंबे अर्से से सरकार और न्यायपालिका के बीच खींचतान का कारण बना हुआ है। यह खींचतान तब से और बढ़ी दिख रही है जब से सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधीशों की नियुक्तियों के लिए बनाए गए कानून को असंवैधानिक ठहराया है। सुप्रीम कोर्ट के रुख के कारण यह कानून कभी अस्तित्व में आ ही नहीं सका। हो सकता है कि इस कानून में कुछ खामी रह गई हो और उसके चलते सुप्रीम कोर्ट ने उसे उपयुक्त नहीं पाया, लेकिन जब कोलेजियम व्यवस्था उपयुक्त नहीं है तो उसके जरिये न्यायाधीशों की नियुक्तियां क्यों होती रहनी चाहिए?
Conclusion:
यदि न्यायाधीशों की नियुक्तियों में सरकार का दखल नहीं होना चाहिए तो यह भी ठीक नहीं कि वह सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों वाले कोलेजियम की ओर से तय किए गए नामों पर मुहर लगाने का काम करे। जब भी न्यायाधीशों की कमी की बात होती है तब विभिन्न अदालतों में लंबित मुकदमों की भी चर्चा होती है, लेकिन यह एक हद तक ही सही है। लंबित मुकदमों का बोझ बढ़ते जाने का एकमात्र कारण पर्याप्त संख्या में न्यायाधीश न होना ही नहीं है। बेहतर है कि उन कारणों की ओर भी गौर किया जाए जिनके चलते लंबित मुकदमे बढ़ते चले जा रहे हैं। यह तभी संभव है जब सरकार और न्यायपालिका मिलकर आगे बढ़ें।