भारत गांवों में बसता है। भारत की प्राण-प्रतिष्ठा और आत्मा उसके छह लाख गांवों में स्थापित है। दस में से हर सात भारतीय गांवों में अपनी आजीविका चलाता है।
- आजीविका के साधन के रूप में प्रमुख रूप से खेती है। जो साल दर साल घाटे का सौदा बनती जा रही है।
- गांव का जीवन दुरुह है। सुविधाएं नहीं हैं।
- आय के साधन नहीं है।
- लिहाजा शहरों की तरफ पलायन बढ़ रहा है।
- इससे पहले तक सरकारों के एजेंडे में औद्योगीकरण, शहरीकरण जैसे तमाम विषय शामिल रहे, लेकिन ग्रामीणीकरण अब तक कमोबेश उपेक्षित ही रहा।
- गांव के लोग आज भी उन बुनियादी सुविधाओं के लिए महरूम हैं जिसे आज के कुछ दशक पहले ही उन्हें मिल जाना चाहिए था। ऐसा नहीं है कि चीजें सुधरी नहीं है लेकिन ये सुधार जरूरत के बनिस्बत अपर्याप्त साबित हो रहा है।
- बुनियादी सुविधाओं, शिक्षा, स्वास्थ्य से लेकर आय के स्नोत बढ़ाने पर जोर देने की जरूरत है। ऐसे में सरकार का ग्रामोदय के रास्ते भारत उदय लाने का खाका उम्मीद का प्रकाश पुंज साबित हो सकता है।
- बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की 125वीं जयंती से शुरू, इसके अंतर्गत
ग्रामीण विकास को लेकर चलाई जा रही केंद्र सरकार की नीतियोें से लोगों को जागरूक किया जाएगा। गांवों की जरूरतों को ज्यादा से ज्यादा जानने-समझने की कोशिश होगी ताकि नीतियों-योजनाओं के माध्यम से प्रभावी रूप से उन्हें दूर किया जा सके।
- सरकार शायद गांवों में बसने वाले भारत की मजबूती में ही देश की मजबूती देख रही है। हमारे शहरों का तो स्तरीय विकास हो चुका है। अब बारी गांव की है। अगर हमारे गांव विकास करते हैं। वहां के हर बाशिंदे का अगर जीवन स्तर और कल्याण स्तर ऊपर उठता है तो निश्चिततौर पर भारत उदय होना तय होगा।
हालांकि चुनौतियां बड़ी हैं लेकिन सरकार की जिजीविषा इन चुनौतियों से ज्यादा सख्त दिख रही है। ऐसे में गांव के रास्ते भारत उदय करने के मोदी सरकार के सपने की पड़ताल आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।