भारत और ग्लोबर हंगर index

  • भारत में करीब बीस करोड़ लोग भुखमरी के शिकार हैं।
  •  यह भुखमरी खाद्यान्न की कमी के कारण नहीं बल्कि खाद्यान्न की बर्बादी और भ्रष्टाचार की वजह से भी है। लालफीताशाही की और भ्रष्टाचार की वजह से देश में करोड़ों लोग भुखमरी की गिरफ्त में है।
  • संस्था के आकलन के अनुसार गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली आबादी के प्रतिशत के लिहाज से भारत की स्थिति केवल अफ्रीका के सब-सहारा देशों से ही बेहतर है।
  • विश्वबैंक की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया में 2013 में गरीबी की रेखा से नीचे रहने वालों की सबसे अधिक संख्या भारत में थी। रिपोर्ट के अनुसार उस साल भारत की तीस प्रतिशत आबादी की औसत दैनिक आय बहुत कम थी और दुनिया के एक तिहाई गरीब भारत में थे। यह संख्या नाइजीरिया के 8.6 करोड़ गरीबों की संख्या के ढाई गुणा से भी अधिक है। नाइजरिया दुनिया में गरीबों की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश है।

An analysis of Hunger in India:

  • भारत में गरीबी उन्मूलन और विकास के लिए सैकड़ों योजनाएं हैं, लेकिन आजादी के 69 साल बाद भी देश की एक तिहाई आबादी गरीबी रेखा के नीचे गुजारा कर रही है।
  • गरीबी एक बीमारी की तरह है जिससे अन्य समस्याएं जैसे अपराध, धीमा विकास आदि जुड़ा है । भारत में अब भी ऐसे कई लोग हैं जो सड़कों पर रहते हैं और एक समय के भोजन के लिए भी पूरा दिन भीख मांगते हैं।
  • गरीब बच्चे स्कूल जाने में असमर्थ हैं और यदि जाते भी हैं तो एक साल में ही छोड़ भी देते हैं। गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोग गंदी हालत में रहते हैं और बीमारियों का शिकार बनते हैं।
  • इसके साथ खराब सेहत, शिक्षा की कमी और बढ़ती गरीबी का यह दुश्चक्र चलता रहता है।
  • खेती पर निर्भर देश की पैंसठ फीसद आबादी का सकल घरेलू उत्पाद में हिस्सा घटकर सत्रह फीसद हो गया।
  •  आर्थिक विकास के इस दर्शन ने धनी और गरीब, कृषि एवं उद्योग के बीच के अंतर को बढ़ाया है। इससे गांवों और शहरों के बीच की भी खाई चौड़ी हुई है। तीन-चार साल के भीतर चीजों के दाम आसमान छूने लगे हैं। हर चीज में पचास से सौ प्रतिशत तक मूल्य वृद्धि हो चुकी है; केवल किसानों की उपज और मजदूरों की मजदूरी छोड़ कर। भारत में लगातार बढ़ रही महंगाई ने आम आदमी की कमर तोड़ दी है, शिक्षा, चिकित्सा जैसी मूलभूत सुविधाएं भी उसकी पहुंच से दूर हो गई हैं। निचले स्तर पर अभी देश में हर स्तर पर भ्रष्टाचार व्याप्त है, जिसकी वजह से सरकारी सुविधाओं का फायदा भी ठीक तरह से आम लोगों तक नहीं पहुंच पा रहा है।

 

Liberalization and Hunger in India

  • देश में आर्थिक उदारीकरण के बाद के बाद एक खास तबके का जबर्दस्त विकास हुआ है जबकि बाकी लोग पिछड़ते चले गए।
  • वर्तमान आर्थिक नीतियों और उदारीकरण के कारण देश में कुछ लोग अपार संपत्ति के मालिक बन गए, जबकि अधिकांश जनता गरीबी में जीवन बसर कर रही है। उसे न तो भरपेट भोजन मिल रहा है और न न्यूनतम मजदूरी।
  • बुनियादी जरूरतों के लिए एक आम आदमी को बहुत जद्दोजहद करनी पड़ रही है। देश में खेती-किसानी के हालत बहुत खराब है और देश में किसान आए दिन आत्महत्या करने को मजबूर हैं। आजादी के बाद से अब तक कोई भी सरकार ग्रामीण स्तर पर कृषि को ठीक से प्रोत्साहित नहीं कर पाई, न ही कृषि को जीविकोपार्जन का प्रमुख माध्यम बना पाई, जबकि देश के करोड़ों लोग आज भी कृषि पर ही निर्भर हैं।
  • Growth v/s development paradigm: आज लगभग हर क्षेत्र में भारत अच्छी तरक्की कर रहा है। हमारी क्षमता का लोहा सारी दुनिया मान रही है। लेकिन इतनी तरक्की होने के बावजूद भारत आज भी गरीब राष्ट्रों में शुमार है। भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्था के लिए गरीबी एक अभिशाप बनकर उभरी है। इसलिए राष्ट्रहित में यह आवश्यक है की गरीबी का उन्मूलन किया जाए। आज जीडीपी के आंकड़े सिर्फ कागजों तक सीमित है ।
  • असल में तो आज भी झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले लोग चालीस से पचास रुपए रोजाना कमाते हैं। उनका जीवनस्तर काफी निम्न है। उन्हें दो वक्त की रोटी के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है।
  • देश की एक तिहाई आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही है।

 

Corruption and failure of schemes:

विश्व संस्थाएं, विश्व बैंक आदि भी निर्धनता दूर करने के लिए काफी मदद करते है। लेकिन वह मदद भ्रष्टाचार के कारण गरीबों तक नहीं पहुंच पाती। इसके कारण उनकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। इससे निपटने के लिए सबसे पहले सरकार को भ्रष्टाचार दूर करना पड़ेगा। तभी सही मायने में गरीबी का उन्मूलन होगा। इसके लिए सरकार के साथ-साथ जनता का भी फर्ज बनता है कि अपनी कमाई का छोटा सा हिस्सा गरीबो को देना चाहिए। तभी हम इस स्थिति से निपट सकते हैं।

आज भी देश में हालत ऐसे है कि आम आदमी की सुनने वाला कोई नहीं है। सरकारी विभागों में लालफीताशाही इतनी हावी है कि वह अपने छोटे छोटे कामों और दो वक्त की रोटी के लिए दर दर भटकता रहता है। केंद्र और राज्य सरकार द्वारा शुरू की गई योजनाओं पर गरीब को कभी सही लाभ नहीं मिल पाता और अधिकांश योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती है  । देश में दिख रहा कागजी और तथाकथित विकास किसके लिए है और किसको लाभ पहुंचा रहा है, यह एक बड़ा विचारणीय प्रश्न है, हम सब के सामने क्योंकि सच तो यह है कि देश के अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक सभी वर्ग के लिए फिलहाल दो वक्त की रोटी जुटा पाना ही उसके जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य है।

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