हीमोफीलिया के शिकार मरीजों को सरकार विशेष दर्जे में शामिल करेगी। इस श्रेणी में शामिल होने के बाद मरीज वह सब सुविधाएं हासिल कर सकेगें जो दिव्यांगों को मिलती है।
क्या है हीमोफीलिया
Ø हीमोफीलिया सबसे पुराना जेनेटिक रक्तस्राव रोग है, जो खून के थक्के बनने की प्रक्रिया को धीमा करता है।
Ø चोट लगने के बाद हीमोफीलिया के रोगियों को अन्य मरीजों की तुलना में अधिक समय तक रक्तस्राव होता रहता है। खासतौर पर घुटनों, टखनों और कोहनियों के अंदर होने वाला रक्तस्त्राव अंगों और ऊत्तकों को भारी नुकसान पहुंचाता है।
Ø कभी खतरनाक माने जाने वाले इस रोग से पीड़ित रोगी आज लगभग सामान्य उम्र तक जी सकते हैं।
हीमोफीलिया के प्रकार
हीमोफीलिया को दो वर्गों में वर्गीकृत किया गया है।
- हीमोफीलिया ए : हीमोफीलिया ए में फैक्टर-8 की मात्रा बहुत कम या शून्य होती है। लगभग 80 प्रतिशत हीमोफीलिया रोगी, हीमोफीलिया ए से पीड़ित होते हैं।
- हीमोफीलिया बी : फैक्टर-9 के शून्य या बहुत कम होने से हीमोफीलिया बी होता है।
हल्के हीमोफीलिया के मामले में पीड़ित को कभी-कभी रक्तस्राव होता है, जबकि गंभीर स्थिति में अचानक व लगातार रक्तस्त्राव हो सकता है
उपचार
रिप्लेसमैंट थेरैपी :. इस में मरीज को क्लौटिंग फैक्टर दिया या बदला जाता है. क्लौटिंग फैक्टर 8 (हीमोफीलिया ‘ए’ हेतु) या क्लौटिंग फैक्टर 9 (हीमोफीलिया ‘बी’ हेतु) को धीरेधीरे ड्रिप या इंजैक्शन के माध्यम से नसों में पहुंचाया जाता?है.
डेस्मोप्रेसिन : यह इंसान द्वारा बनाया गया एक हार्मोन है, जो निम्न से मध्यम स्तर के हीमोफीलिया ‘ए’ के मरीजों को दिया जाता है. इसे हीमोफीलिया ‘बी’ तथा गंभीर हीमोफीलिया ‘ए’ के मरीजों के उपचार के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.
Source: livehindustan, optum.com