संभावित प्रश्न:- प्रोजेक्ट लून क्या है? इस प्रोजेक्ट से भारत में डिजिटल डिवाइड को कैसे दूर किया जा सकेगा। तथा इसके डिजिटल इंडिया मिशन पर पड़ने वाले प्रभाव पर भी समालोचनात्मक विचार प्रस्तुत कीजिए।
★गूगल की महत्वाकांक्षी योजना ‘प्रोजेक्ट लून’ का जल्द ही भारत में भी प्रायोगिक परीक्षण शुरू होगा।
- इसके लिए संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय और गूगल के बीच बातचीत पूर्ण हो गयी.
=>"क्या है प्रोजेक्ट लून?
★ प्रोजेक्ट लून सुदूर इलाकों को गुब्बारों के जरिए इंटरनेट से जोड़ने के मकसद से बनी योजना है.
★प्रोजेक्ट लून का लक्ष्य सुदूर और ग्रामीण इलाकों में 4जी एलटीई इंटरनेट कनेक्टिविटी उपलब्ध कराना है.
★ इस प्रोजेक्ट में हीलियम से भरे गुब्बारों का इस्तेमाल किया जाएगा.
★ये गुब्बारे जमीन से 20 किमी ऊपर यानी हवाई जहाज की उड़ान भरने की ऊंचाई से दोगुनी ऊंचाई पर रहेंगे.
★ऐसे एक गुब्बारे से छोड़े जाने वाले सिग्नल जमीन पर 40 किमी के दायरे में इंटरनेट की सुविधा दे सकेंगे.
★ स्ट्रेटोस्फीयर (समतापमंडल) में इन गुब्बारों के नेटवर्क से बाधारहित कनेक्टिविटी मिलने की कल्पना है.
Note:- गूगल का यह प्रयोग ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, इंडोनेशनिया, न्यूजीलैंड, श्रीलंका और अमेरिका में भी चल रहा है.
† डिजिटल इंडिया सरकार की सबसे अहम परियोजनाओं में से एक है. इसलिए इस बात पर उसका खासा जोर है कि जल्द से जल्द इंटरनेट देश के हर हिस्से में पहुंचा दिया जाए.
★संचार मंत्रालय के मुताबिक भारत में सभी जगहों पर इंटरनेट की सुविधा देने के लिए सरकार अलग-अलग उपायों पर विचार कर रही है.
★ देश के सुदूर हिस्सों में लून की क्षमता परखने का प्रयास होगा क्योंकि शहरी इलाकों में पहले से ही कनेक्टिविटी अच्छी है. नेशनल इंफॉर्मेशन सेंटर (एनआईसी) को परीक्षण से जुड़ी इंतजाम करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है. इस पायलट परीक्षण को आंध्र प्रदेश या महाराष्ट्र में अंजाम दिया जाएगा.
- देश के सुदूर हिस्सों को इंटरनेट से जोड़ने के लिए सरकार गूगल के अलावा दूसरी कंपनियों के प्रयासों पर भी नजर रख रही है.
माइक्रोवेबस इस्तेमाल नहीं हो रही रेडियो तरंगों, जिन्हें ‘व्हाइट स्पेस’ कहा जाता है, के जरिए इंटरनेट कनेक्टिवटी देने पर काम कर रही है. इसके अलावा फेसबुक सौर ऊर्जा से चलने वाले ड्रोन, सैटेलाइट और लेजर के जरिए इंटरनेट उपलब्ध करवाने की योजना बना रही है.
★गूगल ने पिछले साल ही प्रोजेक्ट लून के लिए सरकार से संपर्क किया था लेकिन, मंत्रालयों की आपत्ति के बाद यह प्रस्ताव लटक गया. दूरसंचार, नागरिक विमानन, गृह और रक्षा मंत्रालय ने स्पेक्ट्रम, हवाई क्षेत्र, सुरक्षा और निगरानी जैसे आधारों पर इसका विरोध किया था.
#शंकाएं :-
★गुब्बारों के जरिए प्रसारण के लिए गूगल को 700 मेगाहर्ट्ज से लेकर 900 मेगाहर्ट्ज का स्पेक्ट्रम चाहिए होगा. इसका अभी दूरसंचार कंपनियां भी इस्तेमाल कर रही हैं.
- ऐसे में इसे गूगल को देने पर दूरसंचार सेवाओं में दखलंदाजी बढ़ सकती है. इसके अलावा नागरिक विमानन मंत्रालय को आशंका है कि इससे हवाई उड़ानों के रास्ते में भी बाधा आ सकती है.
★ गृह मंत्रालय की चिंता निगरानी से जुड़ी है. रक्षा मंत्रालय का कहना है कि ये गुब्बारे सैन्य विमानों के रास्ते में बाधा बन सकते हैं.
★प्रोजेक्ट लून के प्रायोगिक परीक्षण की जगह का चुनाव नागरिक विमानन मंत्रालय के सुझाव के आधार पर किया जाएगा. यह ऐसा क्षेत्र होगा जहां पर हीलियम गुब्बारों का नागरिक विमानों के रास्ते में कम से कम हस्तक्षेप हो. हालांकि स्पेक्ट्रम का मुद्दा अभी उलझा हुआ है.
★अधिकतर टेलिकॉम कंपनियों ने इंटरनेट कनेक्टिविटी से जुड़ी वैकल्पिक परियोजनाओं के लिए गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों को निःशुल्क स्पेक्ट्रम देने का विरोध किया है. उनकी मांग है कि ब्रॉडकास्ट फ्रीक्वेंसी का आवंटन केवल खुली बोली के आधार पर किया जाए.