अंतरिक्ष बाज़ार में बढ़ता भारत का दमखम (Most IMP)

  • अंतरिक्ष बाजार में भारत के लिए संभावनाएं बढ़ रही हैं। इसने अमेरिका सहित कई बड़े देशों का एकाधिकार तोड़ा है। असल में, इन देशों को हमेशा यह लगता रहा है कि भारत यदि अंतरिक्ष के क्षेत्र में इसी तरह से सफ़लता हासिल करता रहा तो उनका न सिर्फ उपग्रह प्रक्षेपण के क़ारोबार से एकाधिकार छिन जाएगा बल्कि मिसाइलों की दुनिया में भी भारत इतनी मजबूत स्थिति में पहुंच सकता है कि बड़ी ताकतों को चुनौती देने लगे।
  • पूरी दुनिया में सैटेलाइट के माध्यम से टेलीविजन प्रसारण, मौसम की भविष्यवाणी और दूरसंचार का क्षेत्र बहुत तेजी से बढ़ रहा है और चूंकि ये सभी सुविधाएं उपग्रहों के माध्यम से संचालित होती हैं, इसलिए संचार उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करने की मांग में बढ़ोतरी हो रही है। हालांकि इस क्षेत्र में चीन, रूस, जापान आदि देश प्रतिस्पर्धा में हैं, लेकिन यह बाजार इतनी तेजी से बढ़ रहा है कि यह मांग उनके सहारे पूरी नहीं की जा सकती। ऐसे में व्यावसायिक तौर पर भारत के लिए बहुत संभावनाएं हैं। कम लागत और सफलता की गारंटी इसरो की सबसे बड़ी ताकत है।
     
  • अब अमेरिका भी अपने सैटेलाइट लांचिंग के लिए भारत की मदद ले रहा है जो अंतरिक्ष बाजार में भारत की धमक का स्पष्ट संकेत है। अमेरिका 20वां देश है जो कमर्शियल लांच के लिए इसरो से जुड़ा है। भारत से पहले अमेरिका, रूस और जापान ने ही स्पेस ऑब्जर्वेटरी लांच किया है। वास्तव में नियमित रूप से विदेशी उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण ‘भारत की अंतरिक्ष क्षमता की वैश्विक अभिपुष्टि’ है।
    - इसरो द्वारा 57 विदेशी उपग्रहों के प्रक्षेपण से देश के पास काफी विदेशी मुद्रा आई है। इसके साथ ही लगभग 200 अरब डालर के अंतरिक्ष बाजार में भारत एक महत्वपूर्ण देश बनकर उभरा है। चांद और मंगल अभियान सहित इसरो अपने 100 से ज्यादा अंतरिक्ष अभियान पूरे करके पहले ही इतिहास रच चुका है।
  • पहले भारत 5 टन के सैटेलाइट लांचिंग के लिए विदेशी एजेंसियों को 500 करोड़ रुपये देता था, जबकि अब इसरो पीएसएलवी से सिर्फ 200 करोड़ में लांच कर देता है।

 

  •  19 अप्रैल, 1975 में स्वदेश निर्मित उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ के प्रक्षेपण के साथ अपने अंतरिक्ष सफर की शुरुआत करने वाले इसरो की यह सफलता भारत की अंतरिक्ष में बढ़ते वर्चस्व की तरफ इशारा करती है। इससे दूरसंवेदी उपग्रहों के निर्माण व संचालन में वाणिज्यिक रूप से भी फायदा पहुंच रहा है।

 

  • अमेरिका की फ्यूट्रान कॉरपोरेशन की एक शोध रिपोर्ट भी बताती है कि अंतरिक्ष जगत के बड़े देशों के बीच का अंतर्राष्ट्रीय सहयोग रणनीतिक तौर पर भी सराहनीय है। इससे बड़े पैमाने पर लगने वाले संसाधनों का बंटवारा हो जाता है। खासतौर पर इसमें होने वाले भारी खर्च का भी।
     

 

  • भविष्य में अंतरिक्ष में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी क्योंकि यह अरबों डालर की मार्केट है। भारत के पास कुछ बढ़त पहले से है, इसमें और प्रगति करके इसका बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक उपयोग संभव है। कुछ साल पहले तक फ्रांस की एरियन स्पेस कंपनी की मदद से भारत अपने उपग्रह छोड़ता था, पर अब वह ग्राहक के बजाय साझीदार की भूमिका में पहुंच गया है। यदि इसी तरह भारत अंतरिक्ष क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हमारे यान अंतरिक्ष यात्रियों को चांद, मंगल या अन्य ग्रहों की सैर करा सकेंगे।
  • भारत अंतरिक्ष विज्ञान में नई सफलताएं हासिल कर विकास को अधिक गति दे सकता है। इसरो उपग्रह केंद्र, बेंगलुरु के निदेशक प्रोफेसर यशपाल के मुताबिक दुनिया का हमारी स्पेस टेक्नोलॉजी पर भरोसा बढ़ा है तभी अमेरिका सहित कई विकसित देश अपने सैटेलाइट की लांचिंग भारत से करा रहे हैं। इसरो के मून मिशन, मंगल अभियान के बाद स्वदेशी स्पेस शटल की कामयाबी इसरो के लिए संभावनाओं के नये दरवाजे खोल देगी, जिससे भारत को निश्चित रूप से बहुत फ़ायदा पहुंचेगा।

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