अमेरिकी ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम (जीपीएस) की तर्ज पर भारत, क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (आइआरएनएसएस) को कक्षा में पूर्ण रूप से स्थापित करने की कगार पर पहुंच गया है। इस प्रणाली के सातवें यानी अंतिम उपग्रह (आइआरएनएसएस-1जी) इसरो श्रीहरिकोटा से प्रक्षेपित करेगा।
क्या है ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम
यह एक नौवहन प्रणाली है कि कुछ या किसी के स्थान को खोजने के लिए कृत्रिम उपग्रहों का उपयोग करता है। पहले पहल उपग्रह नौवहन प्रणाली ट्रांजिट का प्रयोग अमेरिकी नौसेना ने १९६० में किया था। आरंभिक चरण में जीपीएस प्रणाली का प्रयोग सेना के लिए किया जाता था, लेकिन बाद में इसका प्रयोग नागरिक कार्यो में भी होने लगा। अमेरिकन system 24 उपग्रहों क़े नेटवर्क पर बनाया गया है
अन्य देशों में GPS प्रणाली
अभी तक दुनिया में महज 6 ही ऐसे देश हैं, जिनके पास अपनी यह उपग्रह आधारित सूचना व्यवस्था है या निकट भविष्य में हो जाएगी। इन विशिष्ट देशों में अमेरिका इस तकनीकी पहल का पायनियर है।अन्य देशों में यह निम्नलिखित नामों से जानी जाति है:
- अमेरिका: जीपीएस
- रूस के पास ग्लास्नोस
- फ्रांस के पास डोरिस
- भारत इंडियन रीजनल नेविगेशनल सैटेलाइट सिस्टम (आईआरएनएसएस)
- चीन बेडू और
- यूरोपीय यूनियन गैलीलियो
उपयोगिता
- शुरुआत में जीपीएस का मूल उद्देश्य दुश्मन की सैन्य हरकतों पर नजर रखकर एक विशिष्टता
- आज जीपीएस सिस्टम का लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी के लिए उपयोग किए बिना आधुनिक संचार आधारित जीवनशैली की कल्पना तक नहीं की जा सकती।
- Uses: नक्शा तैयार करना, जियोडेटिक आंकड़े जुटाना, समय का बिल्कुल सही पता लगाना, मोबाइल फोनों के साथ एकीकरण, भूभागीय हवाई तथा समुद्री नौवहन तथा यात्रियों तथा लंबी यात्रा करने वालों को भूभागीय नौवहन की जानकारी देना आदि शामिल हैं।
भारत का इंडियन रीजनल नेविगेशनल सैटेलाइट सिस्टम (आईआरएनएसएस)
- आई आर एन एस एस यानी इंडियन रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम भारत का पहला स्वदेशी जीपीएस सैटेलाइट सिस्टम है.
- इसमें अमेरिका के 24 उपग्रहों के स्थान पर 7 उपग्रहों सें भारत को cover किया जायेगा
- यह इतना सटीक होगा कति आपको गंतव्य के 20 मीटर दायरे की लोकेशन से अवगत करा देगा. अमरीका का GPS सिस्टम भी भारत में लगभग इतना ही सटीक है.
- यह भारत और उसके 1500 किलोमीटर के दायरे में पड़ने वाले इलाकों से रियल टाइम पोज़िशनिंग जानकारी उपलब्ध कराएगा.
- IRNSS के डाटा को कार संचालन, एयरक्राफ्ट, नौका संचालन, स्मार्टफ़ोन के अलावा और भी कई डिवाइसों हेतु इस्तेमाल किया जाएगा
क्यों था भारत के लिए अपना GPS
1999 में एक विकट सुरक्षा संबंधी चुनौति सामने आयी। कारगिल घुसपैठ के समय भारत के पास ऐसा कोई सिस्टम मौजूद नहीं होने के कारण सीमा पार से होने वाले घुसपैठ को समय रहते नहीं जाना जा सका। बाद में यह चुनौती बढ़ने पर भारत ने अमेरिका से जीपीएस सिस्टम से मदद उपलबद्ध कराने का अनुरोध किया गया था। हालांकि तब अमेरिका ने मदद मुहैया कराने से इनकार कर दिया था। उसके बाद से ही जीपीएस की तरह ही देशी नेविगेशन सेटेलाइट नेटवर्क के विकास पर जोर दिया गया और अब भारत ने खुद इसे विकसित कर बड़ी कामयाबी हासिल की है।
भारत के लिए खुद का जीपीएस सिस्टम काफ़ी जरूरी था क्योंकि इस सेवा के लिए पहले वो दूसरे देशों पर आश्रित था. भारत से अन्य देशों से युद्ध या वैचारिक मतभेद की स्थिति में देशों द्वारा ये सेवा वापस ले लिए जाने का भी डर बना हुआ था.