Recent Gorakhpur tragedy where Childran died due to disruption of oxygen supply. They were affected with Japanese Encephalitis
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क्या है Japanese Encephalitis
- हर साल जुलाई से लेकर दिसंबर तक काल बनने वाली यह बीमारी एक मादा मच्छर क्यूलेक्स ट्राइटिनीओरिंकस के काटने से होती है। इसमें दिमाग के बाहरी आवरण यानी इन्सेफेलान में सूजन हो जाती है। कई तरह के वायरस के कारण ब्रेन में सूजन के कारण हो सकते हैं। कई बार बॉडी के खुद के इम्यून सिस्टम के ब्रेन टिश्यूज पर अटैक करने के कारण भी ब्रेन में सूजन आ सकती है। यह बीमारी सबसे पहले जापान में 1870 में सामने आई जिसके कारण इसे ‘जापानी इंसेफेलाइटिस’ कहा जाने लगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन के 2014 के आंकड़ों के अनुसार, दुनिया में विशेष तौर पर सुदूर पूर्व रूस और दक्षिण पूर्व एशिया में इस रोग के कारण प्रति वर्ष करीब 15 हजार लोग मारे जाते हैं।
लक्षण
इस बीमारी रोगी को तेज बुखार, झटके, कुछ भी निगलने में कठिनाई जैसे लक्षण नजर आने लगते हैं। रोगी को सही समय पर और समुचित इलाज नहीं मिला तो तीन से सात दिन में मौत हो जाती है। इस बीमारी में पूरे शरीर में तेज दर्द होता है। कमर और गर्दन में अकड़न होती है। उल्टी, घबराहट, चक्कर, तेज बुखार जैसे समस्या सामने आती है।
सिर्फ मच्छर ही नहीं दूषित पानी भी जिम्मेदार
साल 2006 तक इनसेफेलाइटिस का जिम्मेदार सिर्फ मच्छरों को माना जाता था। उसके बाद कुछ शोधों से पता चला कि सभी मामले दिमागी बुखार के नहीं थे। कई मामलों में वहां जलजनित एंटेरो वायरस की मौजूदगी पाई गई। वैज्ञानिकों ने इसे एईएस यानि एक्यूट इनसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) का नाम दिया। पूर्वांचल में कुछ समय में दिमागी बुखार के मामलों में तो कमी आई है, लेकिन एईएस के मामले बढ़े हैं। इस बीमारी के लक्षण भी दिमागी बुखार जैसे ही होते हैं।
2006 में शुरू हुआ टीकाकरण
साल 2006 में पहली बार टीकाकरण कार्यक्रम शुरू हुआ। 2009 में पुणे स्थित नेशनल वायरोलॉजी लैब की एक इकाई गोरखपुर में स्थापित हुई, ताकि रोग की वजहों की सही पहचान की जा सके। टेस्ट किट उपलब्ध होने के चलते दिमागी बुखार की पहचान अब मुश्किल नहीं रही, लेकिन इन एंटेरो वायरस की प्रकृति और प्रभाव की पहचान करने की टेस्ट किट अभी विकसित नहीं हो सकी है