कानूनी प्रावधानों में सख्ती का वक्त

#Dainik_Tribune

देश में अबोध बच्चियों से लेकर दस-ग्यारह साल की किशोरियों से व्यभिचार की बढ़ती घटनाएं और अल्पावस्था में यौन-शोषण के कारण गर्भवती हो रही किशोरियों से संबंधित मामले मानवता को शर्मसार करने वाले हैं। इन श्रेणियों में आने वाले यौन-शोषण और बलात्कार के मामलों में जहां ऐसे अपराधियों के खिलाफ मुकदमों की तत्परता से सुनवाई करने और इसकी प्रक्रिया कम से कम समय में पूरी करने की जरूरत है वहीं साथ ही ऐसे अपराध की वजह से गर्भवती होने वाली किशोरियों को गर्भपात की अनुमति प्रदान करने सहित हर तरह की बेहतर चिकित्सा सुविधाओं के कानूनों में प्रावधान की आवश्यकता है।

  • हाल की कुछ घटनाएं बेहद परेशान करने वाली हैं। इनमें कानूनी प्रावधान और चिकित्सकों की राय के कारण बलात्कार की शिकार दस साल की बच्ची को गर्भपात की अनुमति नहीं मिलना
  • कक्षा दस की लड़की द्वारा स्कूल में ही बच्चे को जन्म देने की घटनाएं
  •  इसके अलावा दो साल से लेकर दस साल की आयु की लड़कियों के यौन-शोषण और बलात्कार के अपराध भी शामिल हैं।किशोरियों और बच्चियों के यौन-शोषण करने वालों में स्कूल शिक्षक, रिश्तेदार, पड़ोसी, नाबालिग लड़के, स्कूल बस के चालक और सहचालक आदि के शामिल होने के मामले प्रकाश में आए हैं। इस तरह की घटनाओं के सार्वजनिक होने या पुलिस में पहुंचने में भी समय लगता है क्योंकि माता-पिता को बच्ची के व्यवहार में आये परिवर्तन के बाद ही वस्तुस्थिति समझ में आती है। इसके बाद वे पहले स्कूल के चक्कर लगाते हैं और फिर पुलिस के पास पहुंचते हैं।

What does facts says

  • राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार देश में 2015 में बच्चियों और किशोरियों से बलात्कार के 10,854 मामले दर्ज किये गये
  • उनका यौन-शोषण करने के इरादे से उन पर हुए हमले के आरोप में 8390 मामले दर्ज किये गये थे।

 बलात्कार की शिकार 10 से 15 साल की किशोरियों का मामला है तो उनके गर्भवती होने की बात सामने आने और इसके निदान के उपाय खोजने में इतना समय निकल जाता है कि अदालतें भी उनका गर्भपात कराने की इजाजत नहीं दे पाती हैं।

Question which arises

  • इस तरह के अपराधों पर कैसे अंकुश लगाया जाये और ऐसे अपराधों के लिये मिलने वाली सज़ा को लेकर विकृत मानसिकता वाले व्यक्तियों के मन में कैसे भय पैदा किया जाये?
  • ऐसी विकृत मानसिकता वाले व्यक्तियों का सुधार कैसे हो? क्या ऐसे अपराध में शामिल नाबालिगों के मामले किशोर न्यायालय को भेजने की बजाय उन पर भी वयस्क अपराधी की तरह ही
  • भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के तहत ही मुकदमा नहीं चलाया जाना चाहिए?
  • इतनी गंभीर स्थिति के बावजूद चिकित्सीय गर्भ समापन कानून में संशोधन करके 20 सप्ताह से अधिक के गर्भ को समाप्त करने के लिये उचित प्रावधान क्यों नहीं हो पा रहे हैं?
  • आखिर इस तरह के मामले में हर बार न्यायालय को ही क्यों हस्तक्षेप करके मेडिकल बोर्ड गठित कराने और फिर उसकी रिपोर्ट के आधार पर निर्णय लेने के लिये बाध्य होना पड़ रहा है?

 

Is there fear of Law?

  • यह सही है कि देश के जनमानस को झकझोरने वाले निर्भया कांड के बाद हालांकि संसद ने बलात्कार के अपराध से संबंधित कानून में सज़ा के कड़े प्रावधान करने के साथ ही ऐसे मुकदमों की सुनवाई यथासंभव दो महीने के भीतर पूरी करने का प्रावधान किया लेकिन हकीकत इससे दूर ही है। इस तरह की पाशविक घटनाओं में कमी नहीं आ रही है।
  • तो क्या कानून में कठोर सज़ा के प्रावधान का भी विकृत मानसिकता वाले अपराधियों में कोई भय नहीं है या वे जानते हैं कि कानून प्रक्रिया तो काफी लंबी चलेगी और अंत में सज़ा हुई भी तो कई साल गुजर चुके होंगे?

आखिर ऐसे अपराधों और अपराधियों से कैसे निपटा जाये?

  • ऐसे अपराधों में संलिप्त अपराधियों के अपराधों की जांच पूरी करने और ऐसे मुकदमों की सुनवाई पूरी करने के लिये कानून में ही कम से कम समय सीमा निर्धारित करने की आवश्यकता है।
  • सरकार को ऐसे विकल्पों पर भी गौर करना चाहिए जिससे ऐसे अपराधों के मामले में कम से कम समय में अपराधियों को उनके कुकृत्यों की सज़ा मिल सके।
  • कानून में कुछ इस तरह का प्रावधान होना चाहिए कि अपराधियों को निचली अदालत से लेकर उच्चतम न्यायालय तक के न्यायिक विकल्प उपलब्ध कराने के साथ ऐसे मुकदमों का पटाक्षेप
  • छह महीने से लेकर साल दो साल के भीतर हो जाये।
  • अबोध बच्चियों और किशोरियों को अपनी हवस का शिकार बनाने वाले अपराधियों के प्रति शायद ही किसी को कोई सहानुभूति हो।
  •  बहुत संभव है कि इस तरह के अपराध में त्वरित फैसले होने और इसमें कठोर सज़ा मिलने की वजह से इन अपराधों में कमी आये। इस समस्या से निपटने के लिये कानूनी प्रावधानों पर नये सिरे से विचार करने में कोई हर्ज भी नहीं है क्योंकि सरकार यदि इस ओर कदम उठायेगी तो भी इसे अमली-जामा पहचानने में लंबा वक्त लग सकता है
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