सरकार मैरिटल रेप को अपराध मानने का विरोध क्यों कर रही है?

Why government is opposing to consider  marital  rape as crime?

#Satyagraha

केंद्र सरकार का मानना है कि महिला को अपने पति कोकहने का अधिकार नहीं दिया जा सकता. लिहाजा पत्नी के कहने के बावजूद अगर उसका पति उसके साथ जबरदस्ती करता है तो उसे बलात्कार नहीं माना जाएगा. केंद्र सरकार के इस रुख सेवैवाहिक बलात्कारयानीमैरिटल रेपएक बार फिर से देश भर में चर्चा का मुद्दा बन गया है. इस मुद्दे से जुड़े तमाम पहलुओं को समझने से पहले जानते हैं कि मैरिटल रेप क्या है और हमारे देश के मौजूदा कानून इस बारे में क्या कहते हैं.

Is there any definition of Marital rape in India?

  • मैरिटल रेप हमारे देश के कानूनों में कहीं भी परिभाषित नहीं है. दुनिया के जिन देशों में मैरिटल रेप को अपराध माना जाता है वहां इसका सीधा-सा मतलब है कि कोई भी व्यक्ति अपनी पत्नी की इच्छा के विरुद्ध या उसकी अनुमति के बिना, जबरन उससे शारीरिक संबंध नहीं बना सकता. और यदि कोई ऐसा करता है तो उसे बलात्कार का दोषी माना जाएगा.
  • लेकिन हमारे देश में ऐसा इसलिए नहीं है क्योंकि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 - जिसमें रेप यानी बलात्कार की परिभाषा दी गई है - उसमें एक अपवाद भी शामिल है. यह अपवाद कहता है कि अगर पत्नी की उम्र 15 साल से कम नहीं है तो उसके पति द्वारा उसके साथ बनाए गए किसी भी तरह के यौन संबंधों को बलात्कार नहीं माना जाएगा. यही अपवाद हमारे देश में मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी से बाहर कर देता है.

Conntrdiction in our laws

  • हमारे कानूनों में सिर्फ एक ही परिस्थिति में पत्नी के साथ जबरन बनाए गए संबंधों को अपराध माना गया है.
  • आईपीसी की धारा 376बी के अनुसार अगर कोई पत्नी अपने पति से अलग रहने लगी हो, तब उसके साथ जबरन यौन संबंध बनाने पर पति को सजा हो सकती है. लेकिन इसे भी बलात्कार नहीं माना गया है और इस अपराध के लिए सजा भी बलात्कार की तुलना में काफी कम है.
  • इस प्रावधान के अनुसार दोषी को न्यूनतम दो साल और अधिकतम सात साल तक की सजा हो सकती है, जबकि बलात्कार के मामलों में न्यूनतम सजा ही सात साल और अधिकतम सजा उम्र कैद तक है.

इन्हीं विरोधाभासों के चलते दिल्ली उच्च न्यायालय में कुछ याचिकाएं दाखिल की गई हैं. इन याचिकाओं में मांग की गई है कि मैरिटल रेप को अपराध घोषित किया जाए और इसे उतना ही गंभीर माना जाए जितना कि बलात्कार को माना जाता है. इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने केंद्र सरकार से भी जवाब मांगा था. इस पर केंद्र ने शपथपत्र दाखिल करते हुए न्यायालय को बताया कि मैरिटल रेप को अपराध नहीं माना जा सकता. लेकिन इसके लिए केंद्र ने जो आधार बताए हैं, वे सही नहीं कहे जा सकते.

मैरिटल रेप पर केंद्र सरकार का रुख

केंद्र सरकार ने मुख्यतः दो कारणों से मैरिटल रेप को अपराध मानने से इनकार किया है

  • ऐसा करने सेविवाह की संस्था अस्थिरहो सकती है. यह बिलकुल वैसा ही तर्क है जैसा कुछ दशक पहले हिंदू धार्मिक कानूनों में सुधार के दौरान दिया जाता था. इस्लाम या ईसाई धर्म की तरह हिंदू धर्म में शादी को कॉन्ट्रेक्ट नहीं माना गया है. हिंदू धर्म के अनुसार विवाह एक संस्कार है और यह जन्म-जमांतर का अटूट रिश्ता होता है. लिहाजा हिंदू धर्म में तलाक का कोई प्रावधान नहीं था. ऐसे में जब हिंदू धार्मिक कानूनों में सुधार होने लगे और तलाक का प्रावधान बनाया गया
  • इसके दुरुपयोग की संभावनाएं बहुत ज्यादा हैं. सरकार ने दहेज़ उत्पीड़न के लिए बने कानून और विशेष तौर से आईपीसी की धारा 498 (पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा उत्पीड़न किया जाना) का हवाला देते हुए कहा है कि मैरिटल रेप को अगर अपराध घोषित किया जाता है तो उसका दुरुपयोग भी 498 की तरह होने लगेगा.

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि धारा 498 का दुरुपयोग भी हुआ है. इसी कारण अब सर्वोच्च न्यायालय ने इस तरह के मामलों में पति और उसके रिश्तेदारों की गिरफ्तारी पर रोक लगाने के साथ ही यह भी निर्देश जारी कर दिए हैं कि इस धारा के तहत मामला दर्ज होने से पहले एक स्थानीय समिति मामले की जांच करेगी. ऐसा होने से 498 के झूठे मामलों पर रोक भी लगी है और सच में पीड़ित महिलाओं को न्याय मिलने का विकल्प भी बना हुआ है. ऐसा ही मैरिटल रेप के मामले में भी हो सकता है.

कानून के जानकारों का मानना है कि दुरुपयोग का खतरा हर कानून में ही होता है. झूठे आरोप किसी भी अपराध के लगाए जा सकते हैं फिर चाहे वह चोरी हो, लूट हो या बलात्कार हो. इससे निपटने के लिए सरकार को अलग से व्यवस्थाएं मजबूत करनी चाहिए. लेकिन दुरुपयोग की संभावना के डर से कानून ही बनाए जाने को कई जानकार बिलकुल गलत और अतार्किक मानते हैं. कुछ आंकड़ों के अनुसार देशभर में दस प्रतिशत से ज्यादा महिलाएं वैवाहिक जीवन में यौन हिंसा और बलात्कार का शिकार होती हैं. यह अपने-आप में बहुत बड़ा आंकड़ा है. इसलिए कई जानकारों और महिला अधिकार कार्यकर्ताओं का मानना है कि सिर्फ दुरुपयोग की संभावना के चलते मैरिटल रेप की असल पीड़ितों को बिना कोई कानूनी विकल्प दिए नहीं छोड़ा जा सकता.

मौजूदा कानून में यौन हिंसा से पीड़ित पत्नियों के पास क्या विकल्प हैं?

  • ऐसा नहीं है कि मौजूदा कानून में यौन हिंसा से पीड़ित पत्नियों के पास कोई विकल्प ही हों. भले ही ये विकल्प उतने मजबूत नहीं हैं जितना कि मैरिटल रेप को अपराध मान लिए जाने से हो सकते हैं, लेकिन कुछ विकल्प आज भी महिलाओं के पास हैं. इनमें से एक विकल्प तो वही है जिस पर ऊपर भी हम चर्चा कर चुके हैं.
  • यदि कोई महिला अपने पति से अलग रहने लगे और तब उसका पति उसके साथ जबरन यौन संबंध बनाए तो वह महिला आईपीसी की धारा 376बी के तहत अपने पति पर मुकदमा कर सकती है. इस धारा के अंतर्गत दोषी को सात साल तक की सजा हो सकती है. लेकिन इस धारा के अंतर्गत वे महिलाएं न्याय नहीं मांग सकतीं जो अपने पति के साथ रहते हुए मैरिटल रपे की शिकार हो रही हों.
  • इसके अलावा महिलाओं के पास यह भी विकल्प है कि वे घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत अपने पति के खिलाफ मामला दर्ज करवा सकती हैं. इस अधिनियम में जबरन बनाए गए यौन संबंधों को हिंसा की परिभाषा में शामिल किया गया है. लिहाजामैरिटल रेपसे पीड़ित कोई भी महिला अपने पति के खिलाफ घरेलू हिंसा का मामला दर्ज करवा सकती है. लेकिन मैरिटल रेप को परिभाषित करने और अपराध घोषित करने की मांग करने वाले मानते हैं कि मौजूदा व्यवस्था में जो विकल्प हैं वे इस अपराध को उसकी गंभीरता से साथ दण्डित करने की बात नहीं करते. इन लोगों का मानना है कि मैरिटल रेप बलात्कार जितना ही जघन्य अपराध घोषित होना चाहिए.

कई मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि मैरिटल रेप बलात्कार से भी ज्यादा जघन्य अपराध है. इन लोगों के अनुसार मैरिटल रेप के पीड़ितों के साथ ये अपराध बार-बार दोहराया जाता है और उनके पास इससे बचने के कोई विकल्प नहीं होते. लिहाजा इस तरह के अपराध के पीड़ित पर गंभीर मनोवैज्ञानिक प्रभाव होते हैं. लगभग ऐसा ही वर्मा समिति ने भी माना था और अपनी रिपोर्ट में मैरिटल रपे को अपराध घोषित करने के मांग की थी.

मैरिटल रेप पर वर्मा समिति की रिपोर्ट क्या कहती है?

  • 2012 के कुख्यात निर्भया गैंगरेप मामले के बाद महिलाओं से जुड़े कानूनों में सुधार के लिए जस्टिस वर्मा की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था. इस समिति की संस्तुतियों के आधार बलात्कार से जुड़े कई कानूनों में बदलाव भी किये गए. लेकिन वर्मा समिति की रिपोर्ट को पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया गया था. वर्मा समिति का गठन 23 दिसंबर 2012 को किया गया था. इसके ठीक एक महीने बाद इस समिति ने लगभग साढ़े छह सौ पन्नों की अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी. इस रिपोर्ट में पेज नंबर 113 से 118 तक मैरिटल रेप पर चर्चा की गई है.
  • जस्टिस वर्मा और उनके साथियों ने इस रिपोर्ट में कहा था किमैरिटल रेप का अपराध की श्रेणी से बाहर होना उस रुढ़िवादी मानसिकता को दर्शाता है जिसमें पत्नियों को पति की संपत्ति से ज्यादा कुछ नहीं समझा जाता.’ रिपोर्ट में यूरोपियन मानवाधिकार आयोग के एक मामले का हवाला देते हुए लिखा है, ‘हम इस निष्कर्ष से सहमत हैं कि एक बलात्कारी, बलात्कारी ही होता है और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसका पीड़ित से क्या रिश्ता था.’
  • आगे इस रिपोर्ट में कहा गया था, ‘धारा 375 से मैरिटल रेप का अपवाद समाप्त किया जाए और कानून में यह स्पष्ट किया जाए कि पीड़ित का अपराधी से क्या रिश्ता है, कोई मायने नहीं रखता. बलात्कार के मामलों में यह अपराधी का पीड़ित का पति होना तो कोई बचाव हो सकता है और ही सजा कम करने का कोई आधार.’ लिहाजा वर्मा समिति ने स्पष्ट कहा था कि एक पति अगर अपनी पत्नी की इच्छा के खिलाफ उसके साथ यौन संबंध बनाता है तो उसे बलात्कार का दोषी माना जाना चाहिए और इसकी सजा भी उतनी ही होनी चाहिए जितनी आम तौर पर बलात्कार के मामलों में होती है.
  • वर्मा समिति ने मैरिटल रेप को कानून में शामिल करने के संबंध में यह भी कहा था कि ऐसा करने के लिए पुलिस, अभियोजन और समाज को भी इस बारे में जागरूक करना जरूरी है. दक्षिण अफ्रीका का उदाहरण देते हुए इस रिपोर्ट में कहा गया था कि वहां कानून बनने के बाद भी मैरिटल रेप के मामलों में ज्यादा कमी नहीं आई क्योंकि पुरानी मान्यताओं के चलते समाज में इस तरह के अपराध या तो स्वीकार्य थे या उन्हें उतना गंभीर नहीं माना जाता था. लिहाजा वर्मा समिति ने माना कि मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने के साथ ही इस पर व्यापक जागरूकता कार्यक्रम चलाने भी जरूरी हैं.

वर्मा समिति की संस्तुतियों को तत्कालीन केंद्र सरकार ने जल्द ही कानून का रूप दे दिया था लेकिन समिति की सारी बातों को इसमें शामिल नहीं किया गया. मैरिटल रेप पर समिति की संस्तुति को सरकार ने नकार दिया था और 375 में मौजूद अपवाद को लगभग वैसा ही बनाए रखा.

कई लोग यह भी सवाल करते हैं कि मैरिटल रेप को लागू करने पर इसके दुरुपयोग की संभावनाएं बहुत होंगी और इस बारे में वर्मा समिति ने भी कोई टिप्पणी नहीं की है. इस सवाल के जवाब मेंऑल इंडिया प्रोग्रेसिव विमेंस एसोसिएशनकी सचिव कविता कृष्णन कहती हैं, ‘मैरिटल रेप का बहुत दुरुपयोग होगा, इससे विवाह की संस्था कमज़ोर हो जाएगी, लड़के शादी करने से डरने लगेंगे आदि, इस तरह की जितनी भी बातें कही जा रही हैं, वो सिर्फ इस मुद्दे को कमज़ोर करने के लिए हैं. पित्रसत्तात्मक व्यवस्था को जब भी चुनौती मिली है, ऐसी बातें कही ही गई हैं.’

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