भारत में आदिवासी कुपोषण की चपेट में हैं। डाउन टू अर्थ पत्रिका के शोध कार्य बताते हैं कि कुपोषण के कारण बैगा, उरांव तथा संथालो में बौनेपन की समस्या बढ़ रही हैं। लगभग साठ फीसदी से आदिवासी अधिक बच्चे कुपोषित पैदा होते हैं।
मध्य प्रदेश के जिलो में आदिवासियों में कुपोषण का स्तर बढ़ता ही जा रहा हैं। कुपोषण के कारण मध्य प्रदेश को ' भारत का इथोपिया ' कहा जाता हैं। श्योपुर जिला इस समस्या से गंभीर रूप से पीड़ित हैं। इन क्षेत्रो ( श्योपुर, मंडला, सिवनी , अनूपपुर , अलीराजपुर , झाबुआ , बैतूल, बालाघाट ) में किये गए शोध कार्यो से कुछ महत्वपूर्ण और रोचक निष्कर्ष प्राप्त होते हैं -
1.माताओ में कुपोषण , जन्म लेने वाले बच्चे में कुपोषण का मूल कारण हैं। आंकड़े बताते हैं कि बच्चे को जन्म देने के दो तीन दिन तक कुपोषण के कारण आदिवासी माओं में दूध का स्त्रवण नहीं होता हैं , यही से बच्चे के कुपोषण का चक्र शुरू हो जाता हैं , इसके बाद दूध की मात्रा कम होने से बच्चे को पर्याप्त मात्रा में पोषण नहीं मिलता। इसके साथ ही आदिवासी इलाको में " खुले में शौच " अधिक प्रचलित होने के कारण महामारियां अधिक फैलती हैं , जो बच्चे के विकास को शुरूआती समय में रोक कर आगे के लिए उसके शरीर को कमजोर बना देती हैं।
2. यह आश्चर्यजनक हैं कि जंगलो से जुड़े होने के बाद भी आदिवासियों में कुपोषण बढ़ रहा हैं। दरअसल हमारे विकास प्रक्रम में हमने आदिवासियों को वनों से दूर कर दिया हैं ; वन अधिकार अधिनियम में हमने आदिवासियों को अधिकार दिए तो हैं लेकिन वे उन्हें प्राप्त नहीं हुए हैं। आदिवासियों के वनों से दूर जाने और वनों के उपयोग करने को लेकर उनके अधिकारों , रोजमर्रा के कार्यो में हस्तक्षेप ने उनकी " खाद्य आदतों " को बदल दिया हैं।
3. " खाद्य आदतों में बदलाव " ही उनमे कुपोषण का मुख्य कारण हैं। आदिवासी अपने भोजन में हरी पत्तियो , जड़ो , कंद , कोदो , फूलो , शहद , मोटे अनाजो को शामिल करते हैं ; ये सभी अपेक्षाकृत अधिक पौष्टिक होते हैं। लेकिन अब देखने में आया हैं कि वनों से उनके अलगाव व उनके अधिकारों में हस्तक्षेप के कारण आदिवासियों को इस प्रकार के खाद्य पदार्थ प्राप्त नहीं होते हैं। साथ ही उनकी आहार आदतों को ध्यान में रखे बिना " सार्वजानिक वितरण प्रणाली " से उन्हें गेहू , चावल जैसे कम पोषणीय पदार्थ दिए जाते हैं ; इससे उनकी आहार आदतों में अधिक पौष्टिक पदार्थो की जगह कम पौष्टिक पदार्थ आ गए हैं और यही उनमे बढ़ रहे कुपोषण का मूल कारण हैं।
4. हमारे पोषण कार्यक्रमो में आदिवासियों की " आहार आदतों " का ध्यान नहीं रखा गया हैं , इससे ये और अधिक असफल हो गयी हैं। हमारे कार्यक्रमो में अन्य समस्याओ ( साफ़ सफाई , पूर्ति, भ्रष्टाचार आदि ) के साथ साथ " आहार आदतों " का ध्यान न रखने की समस्या भी हैं। खाद्य सुरक्षा अधिनियम " पोषण " देने की जगह मात्र " पेट भरने " वाला कानून हैं , इसमें पौष्टिक तत्वो दाल , मोटे अनाज आदि का ध्यान नहीं रखा गया हैं।
हमें समस्या से निपटने के लिए पहला - अपने पोषण कार्यक्रमो में " आहार आदतों " को ध्यान में रखना चाहिए। पौष्टिक तत्वो का समावेश करना चाहिए। दूसरा माताओ पर ध्यान देना होगा ; ये क्षेत्र कम लागत पर अधिक लाभ दे सकता हैं। तीसरा , खुले में शौच का निर्मूलन करना होगा। साथ ही हमें ये सभी पारंपरिक तरीको से करना होगा ताकि हमारे कदम आदिवासी की समस्याओ के साथ प्रभावी तरीके से निपट सके।
साभार : स्नेह दीप