केंद्र सरकार मुस्लिम समुदाय में प्रचलित तीन तलाक को अतार्किक, अनुचित और महिलाओं के साथ भेदभाव मानती है। सरकार सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक का विरोध करेगी।
Background:
- मुसलमानों में तीन तलाक और चार शादियों के चलन के खिलाफ कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं। इस मामले की शुरुआत मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों पर सुप्रीम कोर्ट के स्वयं संज्ञान लेने से हुई थी। कोर्ट ने इस पर अन्य पक्षकारों के साथ केंद्र सरकार का भी पक्ष पूछा है।
- सरकार को इस माह के अंत तक अपना नजरिया स्पष्ट करना
है। सरकार मानती है कि तीन तलाक का प्रचलन महिलाओं के अधिकारों के खिलाफ है। पिछले सप्ताह इस मुद्दे पर गठित मंत्रिसमूह की बैठक में इस पर विस्तृत चर्चा हुई। - मंत्रिसमूह का मानना था कि तीन तलाक के मुद्दे को समान नागरिक संहिता से ना जोड़कर महिला अधिकारों के नजरिए से देखा जाना चाहिए।
सरकार का मत :
- सरकार मानती है कि धार्मिक विश्वास का पालन करना अलग बात है और इसे मौलिक अधिकारों के तहत संविधान में संरक्षण भी मिला हुआ है लेकिन तीन तलाक अलग मुद्दा है।
- यह महिलाओं के अधिकारों और गरिमा से जुड़ा मामला है जो संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 (समानता और सम्मान से जीवन जीने का मौलिक अधिकार) के तहत आता है। जो चीज मौलिक अधिकारों के विरुद्ध हो उसे हटाया जा सकता है।
- सरकार कोर्ट में कहेगी कि जब 20 मुस्लिम देश जिसमें बांग्लादेश, पाकिस्तान और सऊदी अरब शामिल हैं, पर्सनल लॉ को रेगुलेट कर चुके हैं और वे इसे शरीयत के खिलाफ नहीं मानते तो फिर भारत जो धर्मनिरपेक्ष देश है और जहां संविधान सर्वोच्च है वहां ऐसा कैसे हो सकता है?
- सरकार मानती है कि तीन तलाक शरीयत की गलत व्याख्या है।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का तर्क :
इस बारे में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड पहले ही अपना जवाब दाखिल कर चुका है। बोर्ड ने तीन तलाक और चार शादियों की तरफदारी की है। बोर्ड का कहना है, एक बार में तीन तलाक बोलना गलत और पाप के समान है लेकिन यह वैधानिक है। यह पर्सनल लॉ से जुड़ा मामला है और कोर्ट इसमें दखल नहीं दे सकता।