सांसद रंजीत रंजन ने शादियों में होने वाले खर्चों को नियंत्रित करने के लिए एक कानून बनाने की मांग की है। उन्होंने संसद के बजट सत्र में शादी बिल (जरूरी रजिस्ट्रेशन और फालतू खर्च रोकने) पेश किया है।
इन दिनों शादियां अपनी धन संपत्ति को दिखाने का एक साधन बन गया है। गरीब लोगों के ऊपर शादियों में ज्यादा खर्च करने का सामाजिक दबाव है। इस पर रोक जरूरी है क्योंकि ये समाज के लिए अच्छी बात नहीं है।
बिल का उद्देश्य
- मेहमानों की संख्या तय करना
- खाने की बरबादी रोकने के लिए परोसे जाने वाले व्यंजनों की संख्या तय करना।
- अगर कोई शादी में 5 लाख से ज्यादा खर्च कर रहा है तो 10 फीसदी वेल्फेयर फंड में दान करना। इस रकम से गरीब परिवारों की मदद की जाएगी।
क्या बिल पास होगा
ये एक प्राइवेट सदस्य का बिल है। इसको कैबिनेट की मंजूरी नहीं मिली है न ही सत्तापक्ष के किसी सदस्य ने इसे पटल पर रखा है। इसलिए इसका भविष्य अनिश्चित है।
प्रवत्ति का मसला
- यहां बिल पर सवाल उठाना और सांसद की पसंद पर हमला करने का मकसद नहीं है। पूरी चर्चा का मकसद ये है कि दिखावा कोई अपराध नहीं एक प्रवत्ति है। इसलिए इसको कानून बना कर नहीं रोका जा सकता है। इसको रोकना भी नहीं चाहिए। तो फिर लोग शादियों में ज्यादा खर्च न करें इसके लिए क्या किया जाए।
- इसका सिर्फ एक ही ऊपाय है लोगों की प्रवत्ति बदलने का उपाय किया जाए। हम सभी समाज में रहते हैं इसके नाते हमें शादियों में फालतू के दिखावे से बचना चाहिए।
- आप खुद की या बच्चे की या बहन की शादी में लाखों रुपए खर्च करके भी ये सुनिश्चित नहीं कर सकते हैं कि आपकी शादी में आया हर आदमी घर खुश गया होगा। हमारे समाज का सच यही है कि आप कितनी भी अच्छी शादी कर लें उसमें कमी निकालने वाले मिल ही जाएंगे। दूसरे शब्दों में आप कितना भी खर्च कर दें लोग उससे संतुष्ट नहीं होंगे।
प्रतिस्पर्धा न करें
शादी का समारोह सादा होगा तो आपका पैसा तो बचेगा ही आपको पता भी चल जाएगा कि सच्चे अर्थों में सादी शादी को कितने लोग पसंद करते हैं। हर किसी को ये जानना जरूरी है कि पड़ोस में रहने वाले अंबानी से प्रतिस्पर्धा करना आपके लिए बुरा हो सकता है। अगर लोग इस बारे में सोंचना शुरू कर दें तो समाज के कमजोर वर्ग पर आर्थिक दबाव कम हो जाएगा। अगर लोग शादियों में ज्यादा खर्च करने वालों की नकल करना बंद कर देंगे तो ये ट्रेंड कम हो जाएगा।
बजट स्थिति देखकर बनाएं
* आज की दुनिया में आप सिर्फ इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि आपके बच्चे किस तरह शादी करेंगे। उनकी अपनी प्राथमिकताएं होंगी। वो शायद परंपरागत तौर पर शादी ही न करना चाहें। नए जमाने की पीढ़ी नए अंदाज से चलती है। आप हर उस आदमी को शादी में बुलाना चाहेंगे जिसे आप जानते हैं लेकिन वो सिर्फ नजदीकी लोगों को बुलाना चाहेंगे। इन सभी संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए शादी का बजट हमेशा अपनी स्थिति देखकर ही बनाएं।
निष्कर्ष :- कानून के बदले ऐसे लोगों की कांउसलिंग की जाए तो शादियों में ज्यादा खर्च की प्रवत्ति पर लगाम लगाई जा सकती है। कोई भी कड़क नियम नैतिकता के मुद्दे को नहीं सुलझा सकता है।