सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार पीड़िता को दी गर्भपात की इजाजत (मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेगनेंसी एक्ट 1971 में बदलाव)

 सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए महाराष्ट्र की एक बलात्कार पीड़ित महिला को गर्भपात की इजाजत दे दी. कोर्ट ने एमटीपी एक्ट की धारा 5 के तहत महिला को यह इजाजत दी. बताया जा रहा है कि महिला के गर्भ में पलने वाला यह भ्रूण 24 हफ्ते का है.

=>परिस्थितिजन्य होगा गर्भपात का फैसला :- 

★ कोर्ट ने यह फैसला केईएम मेडिकल कॉलेज की सात सदस्यीय कमेटी की रिपोर्ट के मद्देनजर लिया है. समिति ने कोर्ट के सामने अपनी रिपोर्ट पेश करते हुए कहा था कि गर्भपात से पीड़ित महिला की जान कोई खतरा नहीं है.

★ सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अगर महिला की जान को खतरा है तो 20 हफ्ते बाद भी गर्भपात कराया जा सकता है. इसके साथ ही समिति ने कोर्ट को यह भी बताया कि चिकित्सीय असामान्यताओं के कारण यह भ्रूण जन्म लेने के बाद भी बच नहीं पाएगा और अगर महिला इस अविकसित भ्रूण को जन्म देने का फैसला करती है, तो उसकी जान को भी खतरा हो सकता है.

- समिति की रिपोर्ट से अपनी सहमति जताते हुए सरकार ने भी कोर्ट से कहा, "इस मामले में केंद्र के एमपीटी एक्ट की धारा 5 के तहत गर्भपात की इजाजत दी जा सकती है, क्योंकि समिति की रिपोर्ट में बताया गया है कि इससे पीड़िता की जान को कोई खतरा नहीं है."

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★ मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेगनेंसी एक्ट 1971 के मुताबिक 20 हफ़्ते से ज़्यादा गर्भवती महिला का गर्भपात नहीं हो सकता है।
- लेकिन इसके बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने समिति की रिपोर्ट और अटॉर्नी जनरल की दलीलों से सहमत होते हुए एमटीपी एक्ट की धारा पांच के तहत पीड़िता को गर्भपात की इजाजत दे दी.

- गौरतलब है कि 24 हफ्ते के भ्रूण के गर्भपात की मांग करने वाली महिला की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी किया था. कोर्ट ने कहा कि मेडिकल रिपोर्ट देखने के बाद ही वह मामले में आदेश देगा.

- खुद को रेप पीड़ित बताने वाली महिला का कहना है कि उसका भ्रूण सामान्य नहीं है और आनुवांशि‍क बीमारी से पीड़ि‍त है. आंतों की समस्या के साथ ही भ्रूण का मस्तिष्क भी विकसित नहीं हो रहा है. ऐसे में बच्चे के पैदा होते ही मर जाने की आशंका है.

=>क्या है यह केस :-
- इससे पहले 2 जून 2016 को डॉक्टरों ने उसका गर्भपात करने से इनकार कर दिया क्योंकि उसे गर्भधारण किए 20 हफ्ते से ज़्यादा हो चुके थे. महिला ने अपनी याचिका में कहा है कि 1971 में जब कानून बना था तो उस समय 20 हफ्ते का नियम सही था, लेकिन अब समय बदल गया है और 26 हफ़्ते बाद भी गर्भपात हो सकता है.

- पीड़िता की दलील को सुनते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्वास्थ्य सचिव, नरेश दयाल (पूर्व सचिव, आईसीएमआर) और डॉक्टर एनके गांगुली की एक समिति बनाई थी, जिसने इस केस में गर्भपात को जायज ठहराया था.

also refer to: https://gshindi.com/category/women-social-issues-national-issues-indian-polity/garabhapaata-kaanauuna-kae-khailaapha 

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