ईज आफ डूईंग बिजनेस पर टिकी मेक इन इंडिया की रफ्तार

 क्या मेक इन इंडिया देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में मैन्यूफैक्चरिंग की हिस्सेदारी को पांच साल में 25 फीसद तक ले जाने में सफल होगी? पिछले एक साल में जो 700 से अधिक प्रस्ताव आ चुके हैं क्या वे जमीन पर दिखेंगे?

इस महत्वाकांक्षी कार्यक्रम को दो साल पूरे होने को हैं, इसलिए सवाल लाजिमी है।
★ फिलहाल देश में औद्योगिक इकाइयां स्थापित करने के प्रस्ताव भी आ रहे हैं। लेकिन शुरुआती संकेत इसकी सफलता के लिए सरकार के ईज आफ डूईंग बिजनेस की दिशा में उठाए जा रहे कदमों पर निर्भर मानते हैं।

★केंद्र की सत्ता में आने के बाद राजग सरकार ने अर्थव्यवस्था की हालत सुधारने की दिशा में जिन प्रयासों को चिन्हित किया है, उनमें कारोबार करना आसान बनाने को सबसे ज्यादा महत्व दिया जा रहा है। बीते दो साल में सरकार ने ऐसे कई कदम उठाए हैं जिसने इंडिया इंक में सरकारी सिस्टम के प्रति भरोसा कायम किया है। फिर वह चाहे प्रस्तावों की मंजूरी में लगने वाले समय में कमी की बात हो या फिर पर्यावरणीय स्वीकृतियां प्राप्त करने में आने वाली अड़चनें, प्रत्येक क्षेत्र में सरकार उद्योगों के अनुकूल माहौल तैयार करने में जुटी है।

★इनमें से कई कदम तो उठा भी लिए गए हैं। यही वजह है कि उद्योग जगत को लगता है कि देश में कारोबार करने का माहौल बन रहा है। इसका नतीजा यह हुआ है कि पहली जनवरी 2015 के बाद से देश में मेक इन इंडिया के तहत 700 से अधिक प्रस्ताव आ चुके हैं। बीते दो साल में कारोबार करना आसान बनाने की जो प्रक्रिया मोदी सरकार ने शुरू की है, वह बदस्तूर अभी भी जारी है।

★नियमों को सरल बनाने के साथ-साथ अब सरकार उद्योगों के विभिन्न नियामकों और अधिकरणों के साथ होने वाले विवाद को निपटाने में लगने वाले समय में कमी लाने की तैयारी कर रही है। दिलचस्प तथ्य यह है कि देश के कई राज्य भी केंद्र की इस मुहिम में कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं। इसलिए जिन प्रदेशों खासकर पश्चिम और दक्षिण भारत के राज्यों ने ईज आफ डूईंग बिजनेस के मंत्र को समझा और अपनाया है वे मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत निवेशकों के आकर्षण का केंद्र बन रहे हैं।

★उद्योग जगत भी मान रहा है कि कई राज्यों ने इस दिशा में बेहतरीन काम किया है। यही वजह है कि इन क्षेत्रों के राज्य मेक इन इंडिया के शीर्ष राज्यों की सूची में स्थान बनाने में सफल रहे हैं। उद्योग जगत भी यह मानता है कि बीते पांच से दस वर्षों में औद्योगिक रफ्तार में कमी आने की एक मुख्य वजह फैसलों में देरी के साथ-साथ प्रक्रियागत अड़चनें और जटिलताएं रहीं। औद्योगिक इकाई का प्रस्ताव सरकार को देने के बाद स्वीकृतियां प्राप्त करने से लेकर इकाई स्थापित करने में बेहद लंबा समय लगता था।

★साथ ही पर्यावरणीय मंजूरी प्राप्त करने के बाद इकाई की स्थापना के लिए समय भी कम मिलता था। लेकिन बीते दो साल में प्रक्रिया संबंधी जटिलताओं को दूर करके नियमों को सरल बनाया गया है और अधिकांश काम ऑनलाइन होने से समय भी कम लगता है। 

★पर्यावरण लाइसेंस की अवधि को भी पांच साल से बढ़ाकर सात साल कर दिया गया है। उद्योग के लिए यह बड़ी राहत है। हालांकि सरकार के इन प्रयासों को अभी शुरुआत के तौर पर ही देखा जा रहा है। दरअसल कारोबार करना आसान बनाने पर ही मेक इन इंडिया की सफलता निर्भर करती है। सरकार के ईज आफ डूईंग बिजनेस प्रयासों का आकलन कर रहे विश्व बैंक ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा भी है कि सही दिशा में उठाया गया यह पहला कदम है।

★अभी सुधारों की दिशा में काफी काम होना बाकी है। इसके बावजूद उद्योग जगत इस बात पर संतोष व्यक्त कर सकता है कि ईज आफ डूईंग बिजनेस में जितने सुधारों की आवश्यकता है बीते दो साल में उसका 32 फीसद प्राप्त कर लिया गया है। इस दिशा में सबसे अधिक काम राज्यों को करना है।

=>सुधार जो हुए पूर्ण :-

  • बिजनेस शुरू करते वक्त ईएसआइसी व ईपीएफओ में तुरंत रजिस्ट्रेशन
  • पंजीकरण के लिए ऑनलाइन श्रम सुविधा पोर्टल की शुरुआत
  • 36 उद्योगों के लिए पर्यावरण मंजूरी की अनिवार्यता खत्म
  • खनन से जुड़े उद्योगों के लिए वन मंजूरी सर्टिफिकेट के नियम उदार
  •  सौ हेक्टेयर से कम वन भूमि पर बने खनन उद्योगों में निरीक्षण की अनिवार्यता खत्म
  • पर्यावरणीय मंजूरी की वैधता पांच साल से बढ़कर सात साल हुई
  • पर्यावरणीय समेत अधिकांश मंजूरियों के लिए ऑनलाइन आवेदन 
  • नए उद्योगों के लिए 14 सरकारी सेवाएं सिंगल विंडो पोर्टल ई-बिज के अधीननए बिजली कनेक्शन के लिए एनओसी की अनिवार्यता समाप्त
  • आयात-निर्यात के लिए आवश्यक दस्तावेजों की संख्या सात से घटकर तीन हुई
  • औद्योगिक लाइसेंस, मेमोरेंडम आदि के लिए फार्मों का सरलीकरण
  • कई प्रकार के रक्षा उत्पादों के लिए लाइसेंस की आवश्यकता खत्म

=>जिन सुधारों पर काम जारी

  1. न्यूनतम पेड अप कैपिटल और कॉमन सील की अनिवार्यता खत्म होगी
  2. कंपनी शुरू करते ही पैन, टैन, ईएसआइसी व ईपीएफओ लेने का एकीकृत सिस्टम
  3. आयात-निर्यात के लिए सिंगल विंडो क्लियरेंस

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