वर्ष 2014 के मध्य में OPEC (पेट्रोलियम पदार्थ निर्यात करने वाले देशों का संगठन) और दुनिया भर की तेल कंपनियों, जिनकी अगुवाई अमेरिका कर रहा था, के बीच मतभेद शुरू हो गया था. इस मनमुटाव के पीछे रणनीति थी तेल की कीमतों को जितना नीचे हो सके उतना लाते हुए उत्पादन को एक ऐसे स्तर पर बनाए रखना जहां से अपने प्रतिद्वंदी को दिवालिया होने के लिये मजबूर किया जा सके.
★ लेकिन मौजूदा दौर को देखकर ऐसा लगता है कि अब समय बदल गया है. ऐसा समय आ गया है जब कई अमेरिकी कंपनियां मैदान छोड़कर भाग रही हैं और खुद को दिवालिया घोषित कर रही हैं.
=>परिप्रेक्ष्य :-
- अमेरिका में आई शेल गैस क्रांति दुनियाभर की तेल आपूर्ति के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने में कारगर साबित हुई है. अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के 2014 के आंकड़ों के अनुसार अमेरिका, रूस और सउदी अरब को पछाड़कर तेल और गैस का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक बन गया
- हालांकि अमेरिकी शेल गैस क्रांति के साथ सबसे बड़ी समस्या उसकी उत्पादन की लागत को लेकर थी. वर्ष 2014 में माना जाता था कि गैस के उत्पादन के लिये फ्रेकिंग तकनीक से उत्पादित होने वाली शेल गैस की कीमत 60 डाॅलर प्रति बैरल के आसपास थी, और अमेरिका और ओपेक के बीच तेल और गैस को लेकर चले इस मतभेद के दौरान कच्चे तेल के दाम जनवरी 2016 में गिरकर 28 डाॅलर प्रति बैरल पर आ गए जो 2003 के बाद सबसे कम है.
- ऐसे समय में जब कच्चे तेल के दाम 90-100 डाॅलर प्रति बैरल के आसपास थे और शेल गैस बाजार पर छाने को तैयार थी तब अमेरिकी तेल और गैस कंपनियों ने बेहद महंगी तेल की खुदाई के काम को करने के लिये कई बिलियन डाॅलर का कर्ज लिया.
- अपने कर्ज और बांड की परिपक्वता को चुकाने में असमर्थ कई कंपनियां अब भुगतान की तारीखों को बदलवाते हुए उन्हें आगे बढ़वाकर ऋण का पुनगर्ठन करने के प्रयासों में हैं.
★ कच्चे तेल के दाम जनवरी 2016 में गिरकर 28 Dollar प्रति बैरल पर आ गए जो 2003 के बाद सबसे कम है।
★ तेल के लगातार गिरते दामों के चलते अमेरिकी शेल कंपनियां वर्ष 2015 में खुदाई की नई परियोजनाओं को रोकने के लिए मजबूर हुईं. तक अमेरिका के रिंग्स की संख्या महीने-दर-महीने गिरकर 760 से 31 रिग्स तक आ गई.
=>क्या निकट भविष्य में कच्चे तेल के दाम बढ़ेंगे?
★ अमेरिका में तेजी से दिवालिया घोषित हो रही तेल कंपनियों की संख्या को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि बहुत ही जल्द तेल की कीमतों में जबर्दस्त उछाल देखने को मिलेगा.
=>क्या यह ऑयल शीतयुद्ध का अंत होगा?
★जरूरी नहीं है. 2014 में ऐसा माना जाता था कि शेल गैस और तेल का दाम तभी व्यवहार्य होगा जब कच्चा तेल 50 dollar प्रति बैरल की दर पर बेचा जाए. बीते करीब डेढ़ वर्षों में अधिकतर कंपनियां एक ही क्षेत्र में कई कुओं की खुदाई कर अपनी उत्पादन लागत को कम करने में सफल रही हैं.
★लेकिन इसके बावजूद कई कंपनियां दिवालिया भी हुई हैं और कई दिवालिया घोषित होने की कगार पर हैं.
क्या है शेल गैस
यह धऱती के अंदर करीब 3 हजार मीटर की गहराई में पाई जाती है। शेल का अर्थ होता है चट्टान जिससे कभी कभी तेल भी मिलता है। इसी चट्टान की खुदाई से जो गैस निकलती है उसे ही शेल गैस कहते हैं। शेल दरअसल पेट्रोलियम की चट्टानें हैं यानी ये ऐसी चट्टाने हैं जोपेट्रोलियम की स्रोत हैं। इन चट्टानों पर उच्च ताप और दबाव पड़ने से ही एक प्राकृतिक गैस उत्पन्न होती है जो एलपीजी की तुलना में कहीं क्लीन है।
कैसे निकाली जाती है गैस
अमूमन गैस निकालने के लिए जमीन में सीधी ड्रिलिंग की जाती है लेकिन इस गैस के लिए जमीन की गहराई में उसेक समानांतर ड्रिलिंग करनी होती है इस ड्रिलिंग के दौरान पानी की जबर्दस्त धार छोड़ी जाती है। यह टेक्नोलॉजी बेहद मुश्किल और खर्चीली है। जाहिर है उत्पादन थोड़ा महंगा हो जाता है। लेकिन अन्य गैसों की बढ़ती कीमतों को देखकर अब यह भी काफी सस्ती है।
भारत और शैल गैस
भारत में शेल गैस के भंडार बड़े पैमाने पर हैं। गंगा के मैदानी इलाकों असम, राजस्थान, गुजरात तथा तटवर्ती इलाकों में इसके भंडार हैं।