- भारतीय निर्यातकों में आक्रामकता और इनोवेशन की कमी भारत और चीन के बीच बढ़ते व्यापार असंतुलन की प्रमुख वजह रही है।
- बीते एक दशक में दोनों देशों के बीच यह असंतुलन तेजी से इसलिए भी बढ़ा क्योंकि भारतीय निर्यातक चीन को कॉटन और आयरन ओर जैसे कच्चे माल के निर्यात पर ही निर्भर रहे।
- वक्त की मांग के अनुरूप चीन के बाजार में वैल्यू एडेड उत्पादों की सप्लाई करने की कोशिश ही नहीं हुई। दोनों देशों के बीच परंपरागत तौर पर व्यापार संतुलन चीन के पक्ष में ही रहा है। चीन की दूरदर्शिता ने इसे लगातार अपने पक्ष में बनाए रखा।
- जबकि भारत की तरफ से कभी भी चीन के घरेलू बाजार में उत्पादों की मांग पर ध्यान नहीं दिया गया। यही वजह है कि 2012-13 और 2015-16 में चीन को किए जाने वाले भारतीय निर्यात में तेज गिरावट देखने को मिली।
- इसके मुकाबले चीनी निर्यातकों ने भारतीय बाजार की जरूरत को समझा और खिलौनों से लेकर बिजली के सजावटी सामान, देवी देवताओं की मूर्तियों से लेकर घर की सजावट में काम आने वाले उत्पादों से भारत के बाजारों को पाट दिया। इसके चलते 2011-12 में भारत के कुल निर्यात में जहां चीन को होने वाले निर्यात की हिस्सेदारी करीब छह फीसद थी वो 2015-16 में घटकर 3.4 फीसद रह गई।
- पूरी दुनिया को सस्ती मशीनरी, ऑटोमोबाइल उत्पाद और इलेक्ट्रॉनिक सामान सप्लाई करने वाले चीन को भारत उसके लिए कमोडिटी उत्पादों के रूप में कच्चा माल ही उपलब्ध कराता रहा। यही चीन को भारतीय निर्यात की सबसे बड़ी कमजोरी बन गई और जब पूरी दुनिया में कमोडिटी के दाम गिरे तो चीन की अर्थव्यवस्था भी लड़खड़ाई जिसका खामियाजा भारत को भी उठाना पड़ा।
- ऐसे वक्त में भी भारतीय निर्यातक चीन को निर्यात किये जाने वाले उत्पादों में विविधता नहीं ला पाए। चीन को निर्यात होने वाली वस्तुओं की सूची में नए उत्पादों का अभाव भारतीय निर्यात को और नीचे ले गया।" इसके उलट चीन से भारत को होने वाला आयात निरंतर बढ़ता रहा।
- जिस वर्ष 2015-16 में चीन को होने वाला भारतीय निर्यात 25 फीसद गिरा, उसी अवधि में चीन से भारत में होने वाले अपने उत्पादों के आयात में 2.14 फीसद की वृद्धि हासिल दर्ज की गई। इससे बीते वर्ष 2014-15 में भी चीन से भारत को होने वाले आयात में 18 फीसद की वृद्धि हुई थी।
- जबकि चीन को भारतीय निर्यात 20 फीसद गिरा था। यही वजह है कि भारत और चीन के बीच व्यापार का असंतुलन 50 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। दूसरी तरफ चीन विश्व व्यापार को बढ़ाने के लिए बने क्षेत्रीय समूहों का लाभ उठाने में भी सफल रहा।
- छह देशों वाले एशिया पैसिफिक टे्रड एग्र्रीमेंट (आप्टा) में भारत और चीन दोनों ही सदस्य हैं। इस समझौते के तहत सभी सदस्य देश एक दूसरे को व्यापार के संबंध में विशेष रियायतें प्रदान करते हैं जिनमें टैक्स छूट भी शामिल हैं।