सांसद रंजीता रंजन ने शादी में फिजूलखर्ची रोकने के लिए जो निजी सदस्य विधेयक तैयार किया है उसकी भावना का स्वागत किया जाना चाहिए लेकिन, उस चुनौती को नज़रंदाज नहीं किया जाना चाहिए जो दहेज विरोधी तमाम कानूनों को ठीक से लागू किए जाने के बारे में भारतीय समाज के सामने लंबे समय से उपस्थित है। हालांकि, शादी में होने वाली फिजूलखर्ची को दहेज से अलग करके नहीं देखा जाना चाहिए। दहेज में दबाव और मांग का तत्व होता है और फिजूलखर्ची में सब कुछ मनमर्जी से किया जाता है।
- शादी में दहेज की मांग और उसके लिए बहू को प्रताड़ित करना और जिंदा जला देना यह सब भारतीय समाज की दशकों पुरानी बुराइयां हैं। उनके लिए कानून बनें और उन्हें लागू करने के साथ उनका दुरुपयोग भी हुआ है।
- शादी में फिजूलखर्ची भी उतनी ही पुरानी प्रथा है जो भौतिकवाद बढ़ने और बाजारवाद के आगमन से साथ न सिर्फ सर्वव्यापी बल्कि फूहड़ भी हो गई है। हाल ही में कर्नाटक के खनन माफिया और भाजपा के पूर्व मंत्री जी. जनार्दन रेड्डी की बेटी की शादी में 550 करोड़ रुपए का खर्च चर्चा का विषय रहा। अनुमान है कि सिर्फ निमंत्रण-पत्र बांटने में पांच करोड़ रुपए खर्च किए गए।
- राजनीति, व्यवसाय, अफसरशाही और विभिन्न संपन्न तबकों में फिजूलखर्ची चलन बन गया है। दिल्ली के आसपास के कुछ नवधनाढ्य शादियों में दूल्हे को हेलिकॉप्टर से उतारते हैं। विवाह सिर्फ संपत्ति के प्रदर्शन का कार्यक्रम ही नहीं बन गया है बल्कि सत्ता के प्रदर्शन के साथ बाजारवाद का उत्सव भी हो गया है।
- अगर महंगी शादियां होंगी तो सामान बिकेगा और लोगों को रोजगार व कारोबार मिलेगा, उदारीकरण का यह सिद्धांत चारों तरफ सिर चढ़कर बोल रहा है।
- ऐसी बहुत सारी शादियां हुई हैं, जिनमें मीडिया और सरकार न सिर्फ बढ़-चढ़कर सहयोग देते हैं बल्कि उसमें शामिल होते हैं, क्योंकि वैसी शादियों में शामिल होना चुनाव में टिकट पाने, अच्छा ठेका पाने और अच्छी पोस्टिंग पाने की गारंटी हो जाती है।
अगर संसद रंजीता के विधेयक पर विचार करती है तो यह एक शुभ शुरुआत होगी फिर भी उस भावना को आगे ले जाने के लिए समाज के उन तमाम संगठनों और नागरिकों को आगे लाने के साथ सम्मान देना होगा जो सादगी को सामाजिक जीवन का आदर्श मानते हैं और सादा जीवन और उच्च विचार जैसे सिद्धांत में यकीन करते हैं।