एशिया में पार्लियामेंट में महिलाओं का रिप्रेजेंटटेशन सिर्फ 0.5%बढ़ा है,लेकिन भारत अकेला ऐसा देश है जो 2016 में इस मामले में पिछड़ गया। एक ग्लोबल इंटर-पार्लियामेंट्री इंस्टीट्यूशन की रिपोर्ट में यह कहा गया है। 8 मार्च को इंटरनेशनल वुमंस डे है।
स्ट्रॉन्ग पॉलिटिकल कमिटमेंट की जरूरत...
- इंटर-पार्लियामेंट्री यूनियन(IPU)ने'वुमन इन पार्लियामेंट इन 2016: द इयर इन रिव्यू'टाइटल से यह रिपोर्ट जारी की है। इसमें कहा गया है कि पार्लियामेंट में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए और दुनियाभर में पिछले दशक में हासिल अहम प्रोग्रेस के साथ कदम मिलाने के लिए ज्यादा एम्बिशस(ambitious)मेजर्स और स्ट्रॉन्ग पॉलिटिकल कमिटमेंट की जरूरत है।
-रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि डिसीजन मेकिंग प्रॉसेस में हर जगह महिलाओं की आवाज शामिल करने के लिए नए सिरे से मुहिम छेड़नी होगी। पिछले वर्षों की तरह महिलाओं के पॉलिटिकल एम्पॉवरमेंट को हल्के में नहीं लिया जा सकता।
2016 में भागीदारी 19.3%बढ़ी
-रिपोर्ट के मुताबिक एशिया में पार्लियामेंट में महिलाओं का रिप्रेजेंटटेशन 0.5%बढ़ा है। 2015 में यह 18.8%था जो 2016 में बढ़कर 19.3%हो गया। हालांकि यह बढ़ोतरी मामूली रही,लेकिन चुनाव कराने वाले सभी देशों मसलन ईरान,जापान,लाओस,मंगोलिया,फिलीपींस,साउथ कोरिया और वियतनाम में यह दर्ज की गई और सिर्फ भारत इस मामले में एक्सेप्शनल रहा।
-वर्ल्डवाइड एवरेज देखा जाए तो 2016 के आखिर में इसमें भी बढ़ोतरी दर्ज की गई,जो 23.3%थी जबकि 2015 में यह 22.6%थी।
संसद में पेश हुआ बिल,पर पास न हो सका
-रिपोर्ट के मुताबिक एशिया में केवल भारत इस मामले में पिछड़ गया। 1994 में लोकल चुनावों में महिलाओं के लिए सीटों के रिजर्वेशन की सक्सेसफुली शुरुआत की गई। हालांकि 2008 में एक प्रपोज्ड कॉन्स्टिट्यूशनल अमेंडमेंट(संशोधन)बिल पेश किया गया,जिसका मकसद नेशनल लेवल पर महिलाओं के लिए रिजर्वेशन तय करना था,लेकिन संसद में हुई चर्चा में इस टॉपिक पर गतिरोध बना रहा।
-जून और जुलाई 2016 में राज्यसभा में डायरेक्ट और इनडायरेक्ट चुनावों के साथ ही गवर्नमेंट अप्वाइंटमेंट्स में 24 महिलाएं ही(कुल 244 मेंबर्स में)चुनकर आईं। महिलाओं की संख्या 1.7%गिरकर 11.1%रह गई। जबकि 2015 में इनकी संख्या 12.8%थी।