शनि शिंगणापुर मंदिर विवाद: आस्था का हक

- अहमदनगर में शनि शिंगणापुर मंदिर के गर्भगृह में परंपरा के इतर महिलाओं की पूजा-अर्चना के अधिकार पर विवाद जारी है।

** सर्वविदित है कि देश में जाति, धर्म व लिंगभेद से परे समता का अधिकार संविधान ने दिया है। महिलाओं ने देश में कई यूरोपीय देशों से पहले सामाजिक व लोकतांत्रिक अधिकार हासिल किये। 
- देश के प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति के रूप में महिलाओं की शानदार पारी का जिक्र करने की अावश्यकता नहीं है। *****जहां तक धर्म में सामाजिक न्याय की बात है तो उसका निर्धारण सदियों से चली आ रही धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं के आधार पर निर्धारित होता है।

- हो सकता है देशकाल परिस्थितियों के अनुरूप कुछ वर्जनाएं तय की गई हों। मगर 21वीं सदी में उन्हें स्वीकार करने का कोई औचित्य नजर नहीं आता। शिंगणापुर के शनि मंदिर के गर्भगृह में नाभि से ऊपर वस्त्र न पहनकर पूजा करने का विधान रहा है, जिसके चलते महिलाओं को इस पूजा से वंचित रखा गया।
- कहा जा सकता है कि अगर श्रद्धा सच्ची है तो वस्त्रावस्था के भेद से क्या फर्क पड़ता है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में ऐसे दुराग्रहों से बचा जाना चाहिए। यूं तो देश के सारे शनि मंदिर महिलाओं के लिए खुले हैं, मगर कोई बंद क्यों हो? समतामूलक समाज वक्त का तकाजा भी है।

- इस सारे प्रकरण में जिस तरह से राजनीति हुई और धर्मगुरुओं द्वारा बयानबाजी की जा रही है, वह चिंता की बात है। एक समाज में परंपराओं और वर्तमान का द्वंद्व सामने आता है तो उसे समाज व बुद्धिजीवियों द्वारा मिल बैठकर सुलझाया जाना चाहिए। हर छोटे-बड़े मुद्दे में राजनीतिक लाभ-हानि का गणित तलाशना न समाज के हित में है और न ही लोकतंत्र के हित में।
- छोटे से मामले का तिल का ताड़ बनाने की प्रवृत्ति लगातार राजनीतिक हितों की पूर्ति का साधन बनती जा रही है।

** धर्म और राजनीति के घालमेल के नकारात्मक परिणाम भी तेजी से उभरने लगे हैं। यद्यपि महाराष्ट्र सरकार ने महिलाओं के अधिकारों की वकालत की है, मगर रूढि़यों को समाप्त करने का रास्ता उसे नहीं सूझ रहा है। 
- हालांकि मंदिर प्रशासन नियम-कायदों में बदलाव को तैयार नहीं है मगर सरकार को परंपरा में बदलाव के लिए कोई व्यावहारिक समाधान तो निकालना ही चाहिए। किसी व्यक्ति को पूजा के निजी अधिकार से किसी परंपरा के नाम पर वंचित नहीं किया जाना चाहिए।

- इस मामले में मंदिर प्रशासन को भी लचीला रवैया अपनाने की जरूरत है। प्रबंधन को एहसास होना चाहिए कि उनके विभाजक आधार तर्कशीलता की कसौटी पर खरे नहीं उतरते।

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