राह से भटकते युवा

#Dainik_Jagaran

Today’s Youth

इसे सोशल मीडिया का कुप्रभाव कहें या फिर मां-बाप से बच्चों को मिलने वाले संस्कारों की कमी कि आज की युवा पीढ़ी अपने पथ से भटकती हुई प्रतीत हो रही है।

  • गुस्से से लबरेज इस पीढ़ी में संयम कम होता जा रहा है।
  •  शायद यह खान-पान का भी असर है कि छोटी-छोटी बात पर ही युवा पीढ़ी पूरी तरह से आगबबूला हो जाती है और बिना कुछ सोचे समङो ऐसे कदम उठा रही है कि जिससे मां-बाप को संताप ङोलना पड़ता है।

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एक ऐसा ही मामला पंजाब में सामने आया जिसमें पहले दो बहनों ने घर से भागने के लिए योजनागत तरीके से अफवाह फैला दी कि सेल्फी लेते वक्त दोनों की नहर में गिरकर मौत हो गई है जबकि वे पहुंच गईं दिल्ली। वहां जब उनके पास पैसे खत्म हो गए तो वह अपना मोबाइल फोन बेचकर अमृतसर में अपने घर पहुंची।

दरअसल दोनों लड़कियां फिल्मी कहानियों की तरह रातोंरात स्टार बनने के लिए नौकरी की तलाश में घर से भागी थीं लेकिन जब उन्हें हकीकत के थपेड़ों का सामना करना पड़ा तो उन्हें सिवाय घर के रास्ते के कोई और रास्ता दिखाई नहीं दिया।

Why this tendency

  • यह सब इसलिए हो रहा है कि वर्तमान में इंसान की जिन्दगी पैसों की दौड़ में इतनी तेज भागने लगी है कि उसके पास अपने बच्चों के पास बैठकर बात करने का भी वक्त नहीं है।
  • एकल परिवारों में मां-बाप के बाहर नौकरी पर जाते ही बच्चे खुद को घर पर अकेला महसूस करते हैं और उनके खाली दिमाग में कई तरह की खुरापात आने लगती हैं। यही कारण है कि बच्चों में गुस्सा बढ़ रहा है और किसी कक्षा में फेल हो जाने पर वह मां-बाप की जरा सी डांट पर खुद को फंदे पर लटकाकर परिजनों को जिन्दगी भर रोने के लिए छोड़ जाते हैं।

Joint family & Value system

पहले संयुक्त परिवार होते थे तो बच्चे घरों में बड़े-बुजुर्गो से संस्कार सीखते थे और उनमें सहनशीलता होती थी। परंतु आज की पीढ़ी पूरी तरह से सोशल मीडिया और टीवी में डूबी हुई है। जो वह वहां से सीखती है उसे ही अपने जीवन में अपनाने की कोशिश करती है। यह कहना भी गलत नहीं होगा कि बच्चों के इस तरह के आचरण के लिए कहीं कहीं उनके माता-पिता भी दोषी हैं। वह अपने बच्चों को मोबाइल तो थमा देते हैं परंतु यह चेक करना भूल जाते हैं कि वह मोबाइल का सदुपयोग कर रहे हैं या फिर दुरुपयोग। परिजनों को चाहिए कि वह बच्चों के लिए समय निकालें, उनके साथ बैठें उन्हें उनके जीवन में अच्छी बुरी बातों का बोध कराएं। बच्चों की बात को सुनें और उनकी समस्याओं का निवारण करें।

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