Impact of Climate Change : recent Context
मनुष्यों की अतियों से आहत और क्षुब्ध प्रकृति रह-रह कर पलटवार कर रही है। 2 मई को राजस्थान और उत्तर प्रदेश में मानसून से पहले टूटे बारिश के कहर और तूफान में जान-माल की भारी क्षति हुई। लगभग 200 व्यक्ति मारे गए। करोड़ों की संपत्ति नष्ट हो गई। मौसम विज्ञानियों ने आने वाले कुछ दिनों में राजस्थान से लेकर उत्तर-पूर्व के अनेक राज्यों में आंधी-तूफान तथा भारी वर्षा की चेतावनी दी है।
दरअसल, हमने चेतावनियों के बावजूद प्रकृति पर भीषण अत्याचार किए हैं।
- पर्यावरणविदों के ताजा परीक्षण के अनुसार ब्रह्मांड का तापमान सृष्टि के आरंभ से अब तक के सर्वोच्च शिखर पर है। सूर्य को छेदते हुए किसी तूफान के पृथ्वी पर टूटने की आशंका भी व्यक्त की गई है। स्थिति यह बन गई है कि मानसून से हफ्तों पहले भारी वर्षा और प्रचंड आंधियां चलने लगी हैं।
- जब फसल के लिए अच्छी बारिश की जरूरत होती है तब वह छितरकर कमजोर पड़ जाता है। उस पर सितम यह कि जब मानसून की विदाई का वक्त होता है तो अचानक भारी वर्षा की झड़ी लग जाती है। पिछले साल सितंबर में मानसून की विदाई के वक्त मुंबई और अन्य कुछ समुद्र तटीय क्षेत्रों में भारी वर्षा से तबाही मच गई।
उसी समय ‘द ह्यूमन डाइमेंशन ऑफ क्लाइमेट चेंज’ नाम से एक रिपोर्ट जारी हुई थी, जिसमें कहा गया था कि ऋतु चक्र में परिवर्तन हो रहा है। ऐसी ही स्थिति 2015 में चेन्नई में पैदा हुई थी। उसी वर्ष जम्मू-कश्मीर में बाढ़ और भूस्खलन से भयावह विनाश हुआ था। उससे दो वर्ष पूर्व केदारनाथ में वर्षा और भूस्खलन से पांच हजार से अधिक व्यक्तियों की अकाल मृत्यु हो गई थी। इसी वर्ष देश के समुद्र तटीय क्षेत्रों के कुछ हिस्से पानी में डूब जाने का खतरा सिर पर मंडराने लगा है। इनमें भारत के कोलकाता, मुंबई, चेन्नई और सूरत शामिल हैं।
राष्ट्रमंडल देशों के राष्ट्र प्रमुखों की हाल ही में हुई बैठक में उनसे आग्रह किया गया कि वे वैश्विक तापमान की वृद्धि दर 1.5 डिग्री तक सीमित रखने का संकल्प करें। यह भी बताया गया समुद्र की सतह बढ़ते जाने से अफ्रीकी और प्रशांत क्षेत्र के देशों में खेती करना दुष्कर होता जा रहा है। अमेरिका की मैसाच्यूसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नाेलॉजी(MIT) ने अपनी एक खोज रिपोर्ट में बताया है कि:
- गत डेढ़ दशक में भारत के उत्तरी और मध्यवर्ती क्षेत्रों में वर्षा बहुत असंयत और असंतुलित हो गई है।
- मौसम चक्र परिवर्तन का प्रत्यक्ष प्रभाव यह है कि पीने के पानी के लिए देश के असंख्य नगरों तथा गावों में त्राहि-त्राहि मचने लगी है। नदियां सूखने लगी हैं।
- वन्य क्षेत्रों में छोटे-छोटे नालों और पोखरों सहित जल के जो पारंपरिक स्रोत हैं, वे भी सूखते जा रहे हैं।
- पीने के पानी के अभाव में वन्य प्राणी कस्बों और शहरों की बस्तियों की तरफ भागने लगे हैं।
जब तक मनुष्यों में नदियों के संरक्षण का दायित्व बोध जाग्रत नहीं होता तब तक आसन्न जल संकट का समाधान संभव नहीं है। इस संदर्भ में महात्मा गांधी का एक प्रसंग याद हो आता है। साबरमती आश्रम में सवेरे-सवेरे महात्मा गांधी ने काका कालेलकर से एक लोटा पानी मंगाया। गांधी जी ने उस एक लोटा पानी से हाथ साफ किये, मुंह धोया, पैरों का प्रक्षालन किया और बचे हुए पानी से अपना छोटा-सा तौलिया भी धो लिया। यह सब देख काका कालेलकर बोले-बापू आपके साबरमती में तो पूरी नदी बह रही है तो फिर आप पानी की इतनी कंजूसी क्यों करते हैं? गांधी जी ने कहा-साबरमती पर मेरा नहीं, देश के करोड़ों व्यक्तियों का अधिकार है। यदि मैं अपनी आवश्यकता से अधिक पानी का उपयोग करता हूं तो मुझे चोरी लगती है।
यह प्रसंग कोई आठ दशक पुराना है। इसमें झलकता है जल संवर्धन और नदियों के सम्मान और पर्यावरण-संरक्षण की भावना भारतीय परम्परा में प्राचीन काल से रची-बसी रही है। गौतम बुद्ध ने तो नदी की तुलना जीवन से करते हुए कहा था-यह जीवन भी तो इस नदी के समान है। नदी का जो जल इस पल मेरे सामने है, अगले ही पल वह आगे बढ़ जाएगा, पीछे का पानी सामने आएगा। अतीत वर्तमान बनेगा और वर्तमान भविष्य की गोद में चला जाएगा। इस नदी के जितने जल को मैंने अपने पात्र में भर लिया, वह इस नदी का जल है। जॉर्ज लुइस बोर्खेस ने कहा था-समय कोई नदी है जो मुझे साथ बहाती है, लेकिन मैं ही नदी हूं।
नदियों की चर्चा दो बड़े कारणों से चली है। पहला यह कि हमारी एक पूरी विराट नदी जिसे हमारे पुराणों में महानद कहा गया है और जो शिव के स्नानकुंड मानसरोवर से निकली है, उसका अपहरण करने की योजना चीन बना चुका है। दूसरा कारण यह है कि गत दो-तीन वर्षों से मानसून के बदले हुए तेवरों से देश के अनेक भाग भीषण जल संकट से जूझ रहे हैं। पूर्व राष्ट्रपति और वैज्ञानिक ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने चेतावनी के लहजे में कहा था कि सन् 2050 में जल संकट इतना विकट हो जाएगा कि एक व्यक्ति को एक दिन में केवल एक गिलास पेयजल उपलब्ध हो सकेगा। गत पांच दशकों से बड़े बांधों के निर्माण के विरोध में प्रकृति प्रेमी और पर्यावरणविद् सत्याग्रह करते आ रहे हैं। उत्तराखंड में सुंदरलाल बहुगुणा, चंडीप्रसाद भट्ट से लेकर मेधा पाटकर और अरुन्धति राय समय-समय पर बड़े बांधों के निर्माण के विरुद्ध आंदोलन चलाते रहे हैं परंतु सरकारें उनके दूरगामी प्रभाव का संज्ञान लेने के बजाय उन्हें जबरदस्ती दबाने में ही जुटी रहीं।
MIND MAP: जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदा (Climate Change and Disaster management)
ऐसे प्रयासों को नदियों की हत्या के रूप में लेते हुए सुप्रसिद्ध विद्वान पैट्रिक मधुली ने अपनी पुस्तक ‘द सायलेंस्ड रिवर्स’ में लिखा है कि नदियों को लेकर विश्वभर में राजनीति की जाती रही है। यह राजनीति नदियों का गला घोट रही है। पुस्तक पर एक टिप्पणी में स्वर्गीय कैलाश बाजपेयी ने लिखा था, ‘हर बहने वाली नदी का पृथ्वी के साथ एक रागात्मक संबंध होता है, बिल्कुल वैसा जैसा घोंसला बुनती एक गर्भवती चिड़िया का वृक्ष की शाखाओं से। सन् 1954 में जब भाखड़ा नंगल बांध को जवाहर लाल नेहरू ने देखा तो उसे आधुनिक मंदिर कहा। बिना यह सोचे कि एक दिन यह बांध विपत्ति का कारण भी बन सकता है।
जैन तथा बौद्ध चिंतन ग्रंथों से उद्धरण देते हुए जार्ज सेशन्स का कहना था कि पृथ्वी ही नहीं, जीव मात्र के प्रति आदरभाव भारत की संस्कृति में इसलिए था क्योंकि यहां की सभ्यता मूल रूप से शाकाहारी थी। यहां मनुष्य सवेरे आंख खुलते ही इस प्रार्थना के साथ धरती पर पांव रखता था:
समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डले ।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्वमे ॥
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चार दशक पहले एक अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका में प्रकाशित एक शोध पत्र के अनुसार वृक्षों की बड़ी संख्या में कटाई के कारण सिंधु नदी घाटी की सभ्यता नष्ट हुई थी। हाल ही में आईआईटी खड़गपुर के वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में इस तथ्य की पुष्टि की है कि सिंधु नदी घाटी सभ्यता का विनाश निरंतर 900 वर्षों तक सूखा पड़ने के कारण हुआ।
इधर जब स्थितियां विकराल होने लगी हैं तो नदियों के संरक्षण के साथ ही उनके तटों पर बड़ी संख्या में वृक्षारोपण के अभियान चलाने की घोषणाएं होने लगी हैं। परंतु सच यह है कि एक भरे-पूरे वृक्ष के कटने से हरीतिमा का जो क्षरण होता है, उसे सैकड़ों पौधों को पूरा करने में लंबा समय लगता है। इसलिए जरूरी है वर्तमान बची-खुची हरीतिमा के संरक्षण और संवर्धन का अभियान युद्धस्तर पर नागरिकों द्वारा ही स्वतः स्फूर्त चलाया जाए।
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