भ्रष्टाचार की जड़ों तक जाने की जरूरत

Corruption is in our DNA and to root out it not just administrative measure but a social movement have to be launched.

 
#Dainik_Jagran
हाल के एक सर्वे में भारत को एशिया प्रशांत क्षेत्र के 16 देशों में सर्वाधिक भ्रष्टदेश बताया गया है। देश का शायद ही कोई नागरिक होगा जिसने अपने किसी न किसी जायज काम के लिए सरकारी बाबू की जेब गरम न की हो। जन्म से लेकर मृत्यु प्रमाण-पत्र बनवाने तक, स्कूल से टीसी कटवाना हो या अपनी नौकरी के बाद पेंशन पानी हो, हर जगह रिश्वत का बोलबाला है। सरकारी दफ्तरों में घूस के बिना फाइल एक इंच भी आगे नहीं खिसकती। 
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल का वैश्विक रिश्वत बैरोमीटर (जीसीबी) इस साल मार्च में जारी किया गया था, लेकिन फोब्र्स के ट्वीट के बाद वह फिर से चर्चा में आया। मीडिया में इसे लेकर तरह-तरह की बातें सामने आ रही हैं।

What is  Global Corruption Barometer 

    Global Corruption Barometer दुनियाभर के देशों में जनसाधारण से रिश्वत के लेन-देन पर उनकी राय लेता है। 
    यह ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के करप्शन परसेप्शन इंडेक्स (सीपीआई) से भिन्न है। सीपीआई सरकारी क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार का सर्वे है।
     सीपीआई यानी भ्रष्टाचार सूचकांक में भारत 168 देशों में 76वें पायदान पर है। सीपीआई 13 स्नोतों के आधार पर सूचकांक तैयार करता है। 
कई लोगों का मत है कि अंतरराष्ट्रीय संस्थानों द्वारा किए गए सर्वे देश में भ्रष्टाचार की तस्वीर सही तरीके से पेश नहीं करते और उनसे नीतिगत प्रतिक्रिया प्रभावित होती है। यदि उनके तर्क को मान भी लें तो भी इससे कोई इन्कार नहीं कर सकता कि रिश्वतखोरी आम लोगों की जिंदगी का अभिन्न हिस्सा बन गई है। सत्ता की कुर्सी पर आसीन सरकारी कर्मचारी छोटे से छोटे काम के लिए खुलेआम घूस मांगते हैं, फिर चाहे एफआइआर दर्ज करानी हो या ड्राइविंग लाइसेंस बनवाना हो, आम आदमी घूसखोरी से दो-चार होता है। सवाल है कि एक राष्ट्र के रूप हम इतने भ्रष्ट क्यों हैं? अगस्ता वेस्टलैंड से लेकर छत्तीसगढ़ का पीडीएस घोटाला, बिहार का चारा घोटाला, कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला, सत्यम, कोयला, 2जी। यह सूची लंबी है। ये घोटाले सार्वजनिक हुए और मीडिया में चर्चा का विषय बने, लेकिन रोजमर्रा के कामकाज में व्याप्त भ्रष्टाचार सुर्खियां नहीं बटोर पाता। कहा जाता है कि भ्रष्टाचार तो हिंदुस्तानियों के डीएनए में है। क्या यह वाकई सच है?
 
Reason for Corruption
भ्रष्टाचार के कई कारण गिनाए जाते हैं। जैसे:

  • भ्रष्टाचार के खिलाफ बने कानूनों पर अमल नहीं होता। 
  • कानून को लागू करने वाली एजेंसियां भ्रष्टाचार को कम करने के प्रति सजग नहीं हैं। 
  • इसके अलावा कमजोर और लचर प्रशासन भी भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है। 
  • न्यायपालिका और नौकरशाही में जवाबदेही की कमी, राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी भी भ्रष्टाचार बढ़ाने में सहायक हैं।
  • भ्रष्टाचार का एक बड़ा कारण समूहवाद की संस्कृति का पनपना भी है। 

As a society we accepted corruption


    सोसायटी के रूप में हमने भ्रष्टाचार को स्वीकार कर लिया है। लोगों ने यह मान लिया है कि कोई भी सरकारी काम बिना घूस दिए नहीं हो सकता। इस प्रकार भ्रष्टाचार ने समाज में अपनी जड़ें बहुत गहरी कर ली हैं। यह बीमारी पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। किसी समाज की संस्कृति और उसकी सोच व्यक्तियों के निजी व्यवहार और चाल-चलन पर निर्भर करती है। संस्थागत ढांचा भी व्यक्तियों की सोच पर खड़ा होता है। एक और महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि भ्रष्टाचार कम जोखिम वाला अत्यंत लाभकारी खेल माना जाता है। रिश्वत लेने और देने वाले, दोनों समझते हैं कि उन पर किसी तरह का कोई कानूनी शिकंजा नहीं है और वे किसी तरह की सजा के भागी नहीं होंगे। कानूनों को लागू करने में लचीलापन उन्हें भ्रष्ट गतिविधियों में संलिप्त होने के लिए प्रेरित करता है और इसी वजह से भ्रष्टाचार लगातार अपने पांव पसारता जाता है
    रोजमर्रा की जिंदगी में भौतिकतावाद इस कदर हावी हो गया है कि हम अमीर और ताकतवर व्यक्ति को बहुत आदर के साथ देखते हैं। यह नहीं देखते कि उसने अपार संपत्ति कैसे अर्जित की? हम सिर्फ यह देखते हैं कि वह कितना ताकतवर और धनी है। जब घर के सदस्य घर केमुखिया पर दबाव डालते हैं कि वह उनकी हर इच्छा पूरी करे तो कई बार वह नैतिक-अनैतिक में भेद करना छोड़ देता है। लंबे समय तक भ्रष्ट वातावरण में रहने वाला व्यक्ति भी कुछ समय बाद भ्रष्टाचार की ओर अपने कदम बढ़ा देता है।
 सवाल यह है कि क्या हम भ्रष्टाचार की गहरी जड़ों को नष्ट कर सकते हैं और क्या अपना डीएनए बदल सकते हैं? 
पिछले दिनों किए गए एक शोध से पता चला है कि विचार और धारणाओं के आधार पर व्यक्ति के जीन बदलते रहते हैं। प्रत्येक शख्स और उसके साथ-साथ समाज को यह स्वीकार करना होगा कि रिश्वत लेना या देना एक गलत और अनैतिक कृत्य है। इसकी शुरुआत स्कूलों से की जा सकती है जहां बच्चों को पढ़ाया जाए कि उन्हें भ्रष्टाचार से दूर रहना चाहिए और इसकी निंदा करनी चाहिए। परिवार के सदस्यों को भी घर के कमाने वाले शख्स का सहयोग करना चाहिए ताकि उस पर रिश्वत लेने का दबाव घर से न बने। भ्रष्टाचार व्यक्तिगत मामला है। व्यक्तिगत और संगठन के स्तर पर लोग तय कर सकते हैं कि कुछ भी हो जाए न तो हम रिश्वत देंगे और न लेंगे। इस तरह समाज में एक अलग तरह का समूह पैदा होगा जो कायदे-कानून की धज्जियां उड़ाकर अपनी झोली भरने वालों से अलग होगा। अनैतिक कमाई की जड़ लालच है। लालच ही व्यक्ति को अनैतिकता की ओर धकेलता है।
एक तीसरी तरह के लोग भी हैं जिनके लिए भ्रष्टाचार बिजनेस है। भ्रष्टाचार को लेकर वे अक्सर नैतिक दुविधा में रहते हैं। इस तरह के लोगों पर यह सवाल हमेशा हावी रहता है कि नैतिक मूल्य ज्यादा जरूरी हैं या लाभ? ऐसे कारोबारी संगठनों को यह समझना होगा कि भ्रष्टाचार में अपने हाथ काले करना अनैतिक और गैर-कानूनी है। हमारा समाज भ्रष्टाचार से मुक्त तभी हो सकता है जब एक व्यक्ति अपनी सोच के अनुसार काम करे और समाज में बुराई के रूप आ गए गलत संस्कारों को निकाल फेंके। ध्यान रहे कि प्राचीन भारतीय मूल्य यही कहते हैैं कि जो वस्तु तुम्हारी नहीं है उसे हासिल करना चोरी है। हमारे तमाम ग्रंथ तो उपहार कबूल न करने तक की बात कहते हैं। इन मूल सिद्धांतों की अवहेलना भौतिक लाभ दिला सकती है, लेकिन इससे व्यक्ति के चरित्र और उसकी छवि पर विपरीत असर पड़ता है।
 

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