नौकरशाही पर सख्ती

This article discusses relevance of recent direction by government to submit details of assests by Bureaucracy and other steps should be taken


#Navbharat_Times
Recent direction by government
सरकार ने आईएएस अधिकारियों से कहा है कि वे अगला महीना खत्म होने से पहले यानी 31 जनवरी 2018 तक अपनी संपत्ति का ब्योरा जमा करा दें। ऐसा न करने वाले अधिकारियों के प्रमोशन या उनकी फॉरेन पोस्टिंग पर विचार नहीं किया जाएगा। 
    एक अर्से से सरकार प्रशासनिक अधिकारियों से अपनी संपत्ति का ब्योरा देने की अपील कर रही है, लेकिन अधिकारी इसकी अनदेखी कर रहे हैं। आखिरकार सरकार ने यह सख्त रुख अपनाया है जो निश्चय ही सही दिशा में उठाया गया कदम है। हां, इस सख्ती का असर क्या होता है, इसकी जानकारी 1 फरवरी 2018 को या इसके बाद ही मिल पाएगी, बशर्ते सरकार इसे सार्वजनिक करे। प्रमोशन और फॉरेन पोस्टिंग में आईएएस अधिकारियों की दिलचस्पी होती ही है, लेकिन संपत्ति का ब्योरा देकर फंसने की आशंका हो तो ऐसे कितने अधिकारी इस फेरे में आएंगे, कहना मुश्किल है।
    दूसरी बात, जो अधिकारी ब्योरा देंगे भी, उनका ब्योरा कितना सही या गलत है, यह कैसे जाना जा सकेगा, ताजा सरकारी निर्देश इस बारे में कुछ नहीं कहता। पहली नजर में ऐसा लग सकता है कि गलत आंकड़े देकर कोई भी अपने लिए मुसीबत क्यों मोल लेगा? लेकिन हमारा सरकारी तंत्र जैसा रूप ले चुका है, उसे देखते हुए यह आशंका बनी हुई है कि अधिकारियों द्वारा दिए गए संपत्ति के ब्योरे का इस्तेमाल ऊपर बैठे लोगों की पसंद या नापसंद के आधार पर किया जाए। नौकरशाही में फैले भ्रष्टाचार की समस्या गंभीर है, इस बात से तो कोई भी इनकार नहीं कर सकता, लेकिन इससे लड़ने के लिए अफसरशाही को प्रेरित करने का सबसे अच्छा तरीका यह था कि राजनीतिक नेतृत्व इस तरह की बंदिशें खुद पर लागू करके उसके सामने मिसाल पेश करता। यानी राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में लाया जाए, लोकपाल की नियुक्ति की जाए और सभी मंत्री आरोप लगने का इंतजार किए बगैर निश्चित अंतराल पर अपनी और अपने परिजनों की संपत्ति का ब्योरा पेश करें। मगर ऐसा कुछ नहीं हो रहा। 
जाहिर है, खुद को पारदर्शिता के दायरे में लाने को लेकर राजनीतिक नेतृत्व की कोई दिलचस्पी नहीं है। बावजूद इसके, संपत्ति के खुलासे से नौकरशाही के भ्रष्टाचार पर जितनी भी लगाम लग सके, उसका स्वागत किया जाना चाहिए।
 

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