वक्त की जरूरत है लोक सेवा आयोगों में सुधार

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सन्दर्भ :

सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला, जब तमिलनाडु लोक सेवा आयोग के सदस्यों के चयन और नियुक्ति पर मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले पर शीर्ष अदालत ने रोक लगाने से इंकार कर दिया। हालांकि विभिन्न सीमाओं के कारण सर्वोच्च न्यायालय ने लोक सेवा आयोग संस्था के गठन और उसकी निष्पक्षता एवं उच्च गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए कोई निर्णय नहीं दिया।  हैं। मौजूदा मामले में तमिलनाडु सरकार ने मनमाने ढंग से तमिलनाडु लोक सेवा आयोग के 11 सदस्यों की नियुक्ति एक ही दिन में कर दी थी। इसके खिलाफ दायर याचिका पर मद्रास उच्च न्यायालय ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि एक ही दिन में संपन्न इस प्रक्रिया को बिलकुल मनमाने और बिना किसी गंभीर विचार-विमर्श के ही अंजाम दिया गया

राज्य सरकार की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले को ही बरकरार रखा। सुप्रीम कोर्ट ने फटकारते हुए यह तक कहा कि इस व्यवस्था का क्या होगा जहां दसवीं कक्षा तक पढ़ा व्यक्ति भी इन लोक सेवा आयोगों का सदस्य बन सकता है। सदस्य बनने के बाद वह शीर्ष अधिकारियों की भर्ती के लिए अभ्यर्थियों का साक्षात्कार लेगा।

नौकरशाही भारतीय राज्य व्यवस्था का अपरिहार्य अंग है। मगर नौकरशाही उतनी ही विवादास्पद भी है। बौद्धिक गलियारों में अक्सर नौकरशाही को लेकर मीनमेख निकाली जाती है, लेकिन कमियां निकालने वाले उसके लिए जिम्मेदार कारणों की तह तक नहीं जाते।

क्या लोक सेवा आयोग भी जिम्मेदार है

नौकरशाही को अक्षम बनाने में चयन, प्रोन्नति के अलावा उनके चयन का माध्यम बनने वाले लोक सेवा आयोग मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं। मगर इस पहलू को लेकर जाने-अजनाने में एक अजीब सी चुप्पी छाई रहती है।

क्या संवैधानिक शुन्यता इसके लिए जिम्मेदार है

लोक सेवा आयोग ही वह संस्था है जो देश में सरकार की रीढ़ यानी नौकरशाही का चयन करती है। केंद्रीय स्तर पर संघ लोक सेवा आयोग यानी यूपीएससी है। उसी तरह विभिन्न राज्यों के अपने लोक सेवा आयोग हैं जो राज्य स्तर के अधिकारियों का चयन करते हैं। अहम बात यह है कि ये संस्थाएं संवैधानिक निकाय भी हैं। भारतीय संविधान के 14वें भाग के अनुच्छेद 315 से 323 में संघ और राज्य लोक सेवा आयोगों से संबंधित प्रावधान हैं जिनमें इनके गठन, सदस्यों की नियुक्ति और सेवा शर्तो आदि का उल्लेख है। मगर लोक सेवा आयोग से संबंधित कई बिंदुओं पर संविधान मौन है।

  • इस बात पर संविधान चुप है कि इन आयोगों में किन लोगों की सदस्यों के रूप में नियुक्ति होगी और उसके लिए क्या प्रक्रिया अपनाई जाएगी।
  • संविधान में यह उल्लेख नहीं है कि संघ और राज्य लोक सेवा आयोगों में कितने सदस्य होंगे। इसका भी जिक्र नहीं कि इनके सदस्यों की योग्यता और अर्हता क्या होगी।
  • संघ लोक सेवा आयोग के संदर्भ में यह राष्ट्रपति और राज्य लोक सेवा आयोग के परिप्रेक्ष्य में यह राज्यपाल के विवेक पर छोड़ दिया गया है।
  • हकीकत में ये नियुक्तियां केंद्रीय मंत्रिमंडल या राज्य मंत्रिमंडल की मर्जी पर निर्भर हैं।
  • तमाम सरकारें इसी बात का नाजायज फायदा उठा रही

कुछ उदाहरण

तमिलनाडु लोक लोक सेवा आयोग मसला अपनी तरह का पहला मामला नहीं है। अतीत में भी विभिन्न राज्यों में लोक सेवा आयोग गाहे-बगाहे ऐसे विवादों में फंसते रहे हैं। राज्य सरकारों ने अपने पसंदीदा लोगों को इनका सदस्य बनाया। फिर उन सदस्यों ने अयोग्य और अवांछित लोगों की नियुक्तियां कीं।

  •  झारखंड लोक सेवा आयोग में ऐसे सदस्य मनोनीत किये गए जिन्होंने विभिन्न मंत्रियों, विधायकों और उच्च अधिकारियों के रिश्तेदारों की नियुक्तियां कीं। बाद में उन नियुक्तियों को अदालत ने रद किया।
  •  असम, हरियाणा या जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों के लोक सेवा आयोग भी ऐसे मामलों को लेकर विवादित रहे हैं।
  • पिछले कुछ समय से उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग को लेकर भी यह आरोप लगता रहा है कि इसमें ऐसे जाति विशेष के सदस्य और अध्यक्ष नियुक्त किये गए जिन्होंने एक जाति विशेष के लोगों को चयन में खासी वरीयता दी।

नियमो में परिवर्तन की जरुरत

संविधान बनाते समय संविधान सभा ने यह अपेक्षा की थी कि इन आयोगों में सुयोग्य और ईमानदार लोगों की नियुक्ति की जाएगी, ताकि सिविल सेवकों के चयन में भी ये गुण परिलक्षित हों। शायद इसलिए ही इनके सदस्यों की कोई अर्हता और योग्यता निर्धारित नही की गई थी। सिर्फ एक पैमाना तय किया गया कि आधे सदस्य ऐसे होंगे जिनके पास केंद्र या राज्य सरकारों में दस साल के कार्य का अनुभव हो। सदस्यों की निष्पक्षता और स्वतंत्रता के लिए संविधान में कुछ प्रावधान हैं, लेकिन ये आज नाकाफी साबित हो रहे हैं। समय आ गया है कि भारतीय राज्य व्यवस्था की रीढ़ नौकरशाही के सुयोग्य चयन के लिए इन लोक सेवा आयोगों में अविलंब कुछ परिवर्तन किए जाएं।

  • इनके सदस्यों के लिए योग्यता और अर्हता निर्धारित की जाए।
  • सदस्यों की संख्या भी निश्चित की जाए।
  •  केंद्र और राज्यों की मनमानी खत्म करते हुए नियुक्ति प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाए। उचित रूप से आवेदन मंगाकर चयन समिति सदस्यों का चयन करे।
  •  संघ लोक सेवा आयोग के लिए चयन समिति में प्रधानमंत्री के अतिरिक्त नेता-प्रतिपक्ष और देश के मुख्य न्यायाधीश को भी शामिल किया जाए।
  • इसी तरह राज्य लोक सेवा आयोगों के लिए चयन समिति में मुख्यमंत्री के अतिरिक्त राज्य के नेता प्रतिपक्ष और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को जगह दी जाए। अं
  • त में आयोग को समावेशी और ज्यादा वर्गो को प्रतिनिधित्व देने वाला बनाया जाए, ताकि सदस्यों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ी जातियों और अल्पसंख्यकों के अलावा महिलाओं का समुचित प्रतिनिधित्व हो।

 इन सुधारों के लिए संविधान संशोधन की दरकार होगी। इसके लिए प्रमुख राजनीतिक दलों को दृढ़ इच्छाशक्ति दर्शानी होगी।

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