केरल में धर्म परिवर्तन कर अखिला से हादिया बनीं 24 वर्षीय मेडिकल स्टूडेंट की शादी का मुद्दा आजकल सुर्खियों में है | हादिया पिछले छह महीनों से अपने माता-पिता के घर में कैद है। हादिया के समर्थन में दिल्ली में प्रदर्शन भी हो रहा है और लोग सड़को में उतर आये हैं |
जानिए क्या है पूरा मुद्दा ?
हिंदू परिवार में जन्मीं हादिया का नाम अखिला अशोकन था। जब वह फीज़ियोथेरेपी की पढ़ाई कर रही थीं तो अपने मुस्लिम साथियों की संगत में उन्हें इस्लाम अच्छा लगने लगा। जिसके बाद उन्होंने अपने परिवार के खिलाफ जाकर इस्लाम धर्म को अपना लिया। उसके परिवार ने धर्म परिवर्तन के खिलाफ मुकदमा दायर कर दिया लेकिन अदालत ने उस वक्त हैबस कोर्पस की दो याचिकाओं को खारिज कर दिया और कहा कि उसे धर्म परिवर्तन का अधिकार है।
मामला तब बिगड़ गया जब उसने धर्म परिवर्तन कर शफी जहां से शादी कर ली। लड़की के पिता ने केरल हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल की थी और शादी तोड़ने की गुहार लगाई थी। याचिका में कहा गया था कि लड़की का जबरन धर्म परिवर्तन कराया गया और लड़के का लिंक आतंकी संगठन से है। कोर्ट ने कहा कि लड़की हिंदू परिवार से ताल्लुक रखती है और उसका पालन पोषण हिंदू रीति और परंपरा के हिसाब से हुआ है।
कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि ये शादी बहला फुसलाकर और दबाव में धर्म परिवर्तन कराकर हुई है। कोर्ट के मुताबिक, शादी लड़की के जीवन का अहम फैसला था और अभिभावक की उपस्थिति में होनी चाहिए थी। हाई कोर्ट ने यह कहते हुए शादी को खारिज कर दिया कि इस शादी की कानून की नजर में कोई अहमियत नहीं है और उसके अभिभावकों को उसकी कस्टडी दे दी। उसे अपने पति से संपर्क करने के लिए रोक दिया गया और उसे अपना काम छोड़ना पड़ा।
शादी को केरल हाई कोर्ट ने 'लव जिहाद' का नाम देकर अवैध करार दे दिया। इसके बाद जब इंसाफ की गुहार सुप्रीम कोर्ट में लगाई गई तो कोर्ट ने कथित लव जिहाद की जांच के आदेश दे दिए और मामला राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी को सौंप दिया है |
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार और एनआईए से जवाब तलब किया है | कोर्ट ने पूछा है कि एक बालिग महिला ने अपनी मर्जी से धर्म परिवर्तन और शादी कर ली है तो उसे अपने पति से अलग कैसे किया जा सकता है. NIA इस बात की जांच कर रही है कि क्या महिला के तार अंतर्राष्ट्रीय आतंकी संगठन से जुड़े हैं.
कोर्ट के इस फैसले से सबसे बड़ा झटका सामाजिक कार्यकर्ताओं को लगा है.जो यह मानते थे कि न्यायपालिका महिलाओं के हितों की रक्षा के लिए आखिरी उम्मीद है. सामाजिक कार्यकर्ताओं का ये मानना है की हर बालिग व्यक्ति को अपना धर्म चुनने का और अपनी मर्जी से शादी करने का पूरा अधिकार है |