शहरी विकास का बदरंग चेहरा

शहरी विकास का बदरंग चेहरा

#Dainik_Jagran

पृथ्वी परिवार पर अस्तित्व का संकट है। दक्षिण एशिया बढ़ते भूमंडलीय ताप का निशाना है। भारत इसी क्षेत्र का प्रमुख हिस्सा है।

Fact related to Climate Change and its effect

  • भारत में 2018 की पहली छमाही में ही 50 आंधी तूफान आ चुके हैं। संपदा की भारी क्षति के साथ 500 लोग मारे गए हैं। इसके पहले 2013-17 के मध्य चार साल में 22 तूफान ही आए थे। तूफानों की संख्या बढ़ी है। पिछले चार साल में 22, लेकिन बीते 6 माह में 50। हम तूफानों में घिरे हैं।
  • विश्व बैंक की दक्षिण एशियाई हॉट स्पॉट: तापमान के प्रभाव और जीवन स्तर का परिवर्तन शीर्षक से आई ताजा रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन से 2050 तक भारत के जीडीपी को 2.8 प्रतिशत की क्षति हो सकती है।
  • बढ़ते तापमान से सूखा, बाढ़ और तूफान बढ़ सकते हैं। एचएसबीसी बैंक ने भी जलवायु परिवर्तन से भारत को सबसे ज्यादा खतरा बताया था।
  • रिपोर्ट में उत्तरी, उत्तर पश्चिम के क्षेत्रों को सर्वाधिक संवेदनशील बताया गया।

बावजूद इसके इसी संवेदनशील क्षेत्र के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में हजारों पेड़ों के कटान की तैयारी है। फिलहाल अदालत ने इन पर रोक लगाई है। वहीं नोएडा में कूड़ा निस्तारण को लेकर जन आंदोलन जारी है। फिर भी हम भारत के लोग अपनी जीवनशैली में बदलाव को तैयार नहीं हैं।

वृक्ष वनस्पतियां पृथ्वी परिवार के अंग हैं। वृक्ष कट रहे हैं। वन क्षेत्र घट रहे हैं। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र पहले से ही गैस चैंबर बना हुआ है। आश्चर्य है कि इसी क्षेत्र में एक साथ 16,500 पेड़ों को हरी झंडी दिखाई गई।

सभ्यता के विकास के प्रथम चरण से ही नगर मानव जीवन का आकर्षण है। वैदिक काल के बाद का चरण ही सुंदर नगरीय हड़प्पा सभ्यता है, लेकिन आधुनिक नगर हताश करते हैं। नगर विकास की सुव्यवस्थित नीति बनानी चाहिए। दिल्ली, लखनऊ और कानपुर आदि महानगरों में शुद्ध वायु नहीं, शिमला में पीने को पानी नहीं। दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन महानगर का जीवन जलहीन हो रहा है। नगर अपने विस्तार में जल, जंगल और जमीन निगल रहे हैं। नगर क्षेत्र विस्तार की पर्यावरण मित्र नीति बनानी चाहिए। नगर की अंतिम सीमा के चारों ओर दो-तीन किलोमीटर क्षेत्र को संरक्षित वन क्षेत्र घोषित करना चाहिए। पेड़ प्रकृति से ही सभी जीवों के लिए प्राणवायु देते है। कथित विकास गुणात्मक मानवजीवन से दूर है।

जल, वायु, वनस्पति और सभी प्राणी आधुनिक जीवनशैली के हमले के शिकार हैं। 2005 में संयुक्त राष्ट्र का सहस्नाब्दि पर्यावरण आकलनआया था। इसके अनुसार:

  • पृथ्वी के प्राकृतिक घटक अव्यवस्थित हो गए हैं।
  • दुनिया की प्रमुख नदियों में पानी की मात्रा घट रही है।
  • भारत की सभी नदियां जलहीन हो रही हैं।
  • इसी आकलन में 12 प्रतिशत पक्षी और 25 प्रतिशत स्तनपायी जीव नष्ट होने के कगार पर थे। 2000 में पेरिस में अर्थचार्टर कमीशन ने पृथ्वी और पर्यावरण संरक्षण के 22 सूत्र निकाले थे, लेकिन परिणाम शून्य रहा।

पृथ्वी की ताप बढ़त को अधिकतम 2 डिग्री सेल्सियस तक रोकने पर भी सहमति बनी। बीते 150 वर्ष में 0.80 सेल्सियस की वृद्धि पहले ही हो चुकी है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने आगे 2020 तक के उत्र्सजन अनुमान बताए। यह तापवृद्धि 2.0 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य के अनुरूप नहीं हैं। खतरनाक उत्सर्जन बढ़े हैं। 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने टिकाऊ विकास के 17 सूत्र लक्ष्य तय किए थे। पर्यावरण भी इनमें महत्वपूर्ण सूत्र है। भारत ने टिकाऊ विकास लक्ष्यों पर काम किया है तो भी बहुत कुछ अभी शेष है।
भारत भूमंडलीय खतरे में है। यही भारत प्राचीन इतिहास में जलवायु और पर्यावरण संरक्षण का संवेदनशील भूखंड था। धरती से लेकर आकाश तक पर्यावरण की शुद्धता भारतीय बेचैनी थी। पृथ्वी और जल को माता बताने की घोषणा ऋग्वैदिक पूर्वजों ने की। उन्होंने पृथ्वी को माता और आकाश को पिता कहा। अथर्ववेद के कवि ऋषि ने माता भूमि: पुत्रो अहम् पृथिव्याकी घोषणा की थी। जल का मुख्य स्नोत वर्षा है।

मूलभूत प्रश्न है कि आखिरकार क्या वन उपवन उजाड़कर, कंक्रीट के महलों से ही जीवन आनंद ले सकते हैं? ऐसे टिकाऊ विकास में हम कहां टिकाऊ हैं। हमारा जीवन रूग्ण क्षणभंगुर और विकास टिकाऊ? दुनिया प्रकृति विरोधी विकास के नाम पर ही नष्ट होने के कगार पर है। विकास की परिभाषा क्या है? क्या हम विषभरी वायु में मर जाने के बदले विकास चाहते हैं? हम विकास के नाम पर औद्योगिक कचरे के आर्सेनिक, लेड आदि रसायनों से भरी जलवायु को पीने के लिए विवश क्यों है?

पृथ्वी असाधारण संरचना है। मैकडनल ने वैदिक मिथोलोजीमें पृथ्वी पर यह टिप्पणी की, ‘ऋग्वेद के अनुसार वह पर्वतों का भार वहन करती है। वन वृक्षों का आधार है। वही वर्षा करती है।अमेरिकी विद्वान ब्लूमफील्ड ने अथर्ववेद का अनुवाद किया और पृथ्वी सूक्त की प्रशंसा की पृथ्वी ऊंची है, ढलान और मैदान भी हैं। यह वनस्पतियों का आधार है।अथर्वा कहते हैं, ‘पृथ्वी का गुण गंध है। यह गंध सबमें है, वनस्पतियों में है। यह पृथ्वी संसार की धारक व संरक्षक है। वह वर्षा देव की पत्नी है। यह विश्वंभरा है। पृथ्वी पर जन्मे सभी प्राणी दीर्घायु रहें। हम पृथ्वी को कष्ट न दें। यह माता है।पृथ्वी, जल, वनस्पतियां, सभी जीव पर्यावरण चक्र के घटक हैं और जीवन के संरक्षक भी। वायु भी महत्वपूर्ण हैं। ऋग्वेद में वायु को ही प्रत्यक्ष ब्रह्म या ईश्वर बताया गया है। वायु से ही आयु है। विश्व पर्यावरण के सूत्र भारत की ही धरती पर खोजे गए थे, लेकिन जनगणमन की प्राचीन संवेदनशीलता खो गई। इसीलिए आज का भारत भूमंडलीय ताप के खतरे में है।

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