भारत में दुनिया की सत्रह प्रतिशत आबादी निवास करती है, लेकिन जल उपलब्धता चार प्रतिशत है। इसकी एक बड़ी वजह गिरता भूजल-स्तर है। लेकिन अफसोस कि भूजल-स्तर लगातार गिरने के बावजूद भारत में जल संरक्षण की कोई समुचित प्रणाली आज तक विकसित नहीं की जा सकी है।
India: Ground water Assessment
- यूनेस्को की एक रिपोर्ट के मुताबिक दस वर्षों में भूजल स्तर पैंसठ प्रतिशत तक गिर गया है।
- भूजल दोहन के मामले में भारत दुनिया में पहले नंबर पर है। यहां अस्सी प्रतिशत से अधिक जल आपूर्ति भूजल से होती है।
- सरकारी आंकड़ों में भी माना गया है कि भारत में भूजल के ज्यादातर हिस्सों का इस्तेमाल हो चुका है।
Water Use in India
भारत में सालाना मीठे पानी की जितनी खपत है उतना जल संचय नहीं हो पा रहा है। विश्व बैंक के चार साल के आंकड़ों के अनुसार घरेलू, कृषि और औद्योगिक उपयोग के लिए प्रतिवर्ष 761 मिलियन यानी 76100 करोड़ घनमीटर पानी का इस्तेमाल होता है।
Causes for Water Problem
- पानी की समस्या गहराने का बड़ा कारण आधे से ज्यादा पानी का प्रदूषित हो जाना है।
- मुख्य रूप से उद्योग और सीवेज के साथ ही उर्वरकों के अति प्रयोग के कारण हमारा भूजल प्रदूषित हो रहा है, जिससे डायरिया, टाइफाइड और वायरल हेपेटाइटिस-बी जैसी बीमारियां फैलने का खतरा रहता है।
- केंद्रीय भू-जल बोर्ड के एक अध्ययन के मुताबिक दुनिया का हर दसवां प्यासा व्यक्ति भारत के गांवों में निवास करता है। यह हमारे लिए चिंता का विषय होना चाहिए कि हम पानी जैसी सर्वाधिक मूलभूत जरूरत की चीज भी अपनी समूची आबादी को उपलब्ध नहीं करा पा रहे हैं
Socio Economic Consequences of Water Problem
स्त्री-सशक्तीकरण के दावों और बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ के नारे के बरक्स ग्रामीण भारत में पानी जुटाने का काम मुख्य रूप से लड़कियों और महिलाओं को ही करना पड़ता है। पानी की समस्या बेहतर प्रबंधन के अभाव में अधिक विकराल होती जा रही है। प्रकृति ने तो हमें प्रचुर मात्रा में पानी का उपहार दिया है। लेकिन उसकी आपूर्ति के उपयुक्त नेटवर्क के अभाव में हम प्यासे रहने को अभिशप्त हैं। उत्तर प्रदेश में 89 फीसद, बिहार में 78 फीसद, उत्तराखंड में 75 फीसद और महाराष्ट्र में 74 फीसद कुएं जल-स्तर घटने की वजह से समस्या बने हुए हैं। 1983 में तैंतीस फुट खुदाई पर जो जल प्राप्त हो जाता था वह 2011 तक 132 फुट नीचे चला गया।
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Future Crisis of water
गिरता भू-जल स्तर किसी एक देश की नहीं, विश्वव्यापी समस्या है। इस बारे में कार्य कर रही संस्था ‘वाटर एड’ का मानना है कि 2050 तक दुनिया की चालीस प्रतिशत आबादी जल संकट की चपेट में होगी। लगातार बढ़ते वैश्विक तापमान और मौसम में अप्रत्याशित बदलाव की वजह से नदी, तालाब, झरने सूख रहे हैं। जल क्षेत्र की प्रमुख परामर्शदाता कंपनी ईए के एक अध्ययन के मुताबिक 2025 तक भारत घोर जल संकट वाला देश बन जाएगा। विशेषज्ञ आज भी जल संकट की स्थिति को कम खतरनाक नहीं मानते हैं। ‘वाटर एड’ ने मौसम के मिजाज में अप्रत्याशित बदलाव को इसकी प्रमुख वजह बताया है। इस बदलाव में या तो तूफान आ जाता है अथवा बाढ़ की स्थिति निर्मित हो जाती है या फिर सूखा पड़ जाता है जिससे नदी, तालाब, झरने सूख जाते हैं। मौसम के अप्रत्याशित बदलाव की स्थिति तब और खतरनाक बन जाती है जबकि इसके कारण बीमारियां पनपने लगती हैं। हर साल गंदे पानी की निकासी और पर्याप्त साफ-सफाई के अभाव में 3 लाख 15 हजार से ज्यादा बच्चे काल के गाल में समा जाते हैं। दुनिया भर में कुपोषण के आधे से ज्यादा मामलों की वजह दूषित पानी है। लगातार बढ़ती आबादी एक अलग खतरे की ओर संकेत है। 2030 तक दुनिया की आबादी 850 करोड़ और 2050 तक 970 करोड़ हो जाने का अनुमान है। पर पानी की बढ़ने वाली खपत को लेकर कोई तैयारी नजर नहीं आ रही है। परिवारों की आय बढ़ने और सेवाओं तथा उद्योग क्षेत्र के विस्तार के कारण पानी की घरेलू और औद्योगिक मांग बढ़ती जा रही है। देश में सिंचाई का करीब सत्तर प्रतिशत और घरेलू जल आपूर्ति का अस्सी प्रतिशत हिस्सा भूजल से ही पूरा हो रहा है। पानी की समस्या विकराल होने की एक बड़ी वजह यह है कि हमारे देश में पानी का दोहन मनमाने रूप से होता है। साथ ही, अपव्यय और कुप्रबंधन भी बड़ी वजहें हैं। इसी का नतीजा है कि ‘डार्क जोन’ (ऐसी जगह जहां से पानी निकाल पाना संभव न हो) बढ़ते जा रहे हैं। पानी के अविवेकपूर्ण इस्तेमाल के नजारे चारों तरफ दिखते हैं। लेकिन इस पर रोक के लिए सुविचारित नीति बनाने की फिक्र किसी को नहीं है। पानी के संरक्षण के सिलसिले में एक तर्क यह भी दिया जाता है कि पानी का व्यवसायीकरण करने से ही लोग पानी की कीमत समझेंगे और उसकी बरबादी रुकेगी। लेकिन पानी की उपलब्धता को क्रयशक्ति से जोड़ना ठीक नहीं होगा। पानी सबकी और हर समय की जरूरत है। यह सबके अस्तित्व के लिए जरूरी है। लिहाजा, पानी का दुरुपयोग रोकने के दूसरे तरीके ही अपनाए जाने चाहिए।
What to be done
भूजल स्तर में कमी के लिए केवल बारिश काम होना कारक नहीं है बल्कि प्राकृतिक स्रोतों का सूखना और अनियंत्रित विकास भी कहीं न कहीं गिरते भूजल स्तर के लिए जिम्मेदार हैं। पूर्व के वर्षों में जो पानी जमीन के नीचे पहुंच कर भूजल-स्तर को बरकरार रखता था, आज वह बेकार चला जाता है। रेन वाटर हार्वेस्टिंग पर अमल न होना भी भूजल स्तर में आ रही गिरावट की एक महत्त्वपूर्ण वजह है। फिर, पानी का जहरीला होना उससे भी बड़ी चिंता का विषय है। ‘वाटर एड’ के शोध की रिपोर्ट से भी इस बात की पुष्टि हुई है कि देश के साढ़े चार सौ से ज्यादा जिलों में भूजल बेहद प्रदूषित हो चुका है। इन जिलों के भूजल में फ्लोराइड, आर्सेनिक, आयरन, सीसा, नाइट्रेड सोडियम और क्रोमियम जैसे घातक रसायन मिले पाए गए हैं। आजादी के समय देश में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता सात हजार क्यूबिक मीटर थी। यह कम होकर 2001 में दो हजार क्यूबिक मीटर रह गई। अब तो देश की आबादी भी सवा सौ करोड़ से अधिक है। भू-वैज्ञानिकों के मुताबिक वर्ष 2025-26 तक यह उपलब्धता घट कर बारह सौ क्यूबिक मीटर रह जाएगी। विश्व बैंक का कहना है कि भारत में अड़तालीस फीसद अंचलों में पानी की समस्या है जिसमें चौबीस फीसद का पानी जहरीला हो चुका है। भूवैज्ञानिक अध्ययन के मुताबिक जल संरक्षण का उपाय सोख्ता (सीख पिट्स) का निर्माण है। सामान्य आकार के तीन हजार सोख्ता का यदि निर्माण किया जाए तो तीस करोड़ लीटर पानी बचाया जा सकता है।
कई विकासशील देशों में सरकार और आम जन की भागीदारी से पीने के पानी की उपलब्धता बढ़ने के उदाहरण सामने आए हैं। हमारे देश में वर्षा जल संचय की परंपरा सदियों से चली आ रही है। राजस्थान में बारिश के पानी को सुरक्षित रखने का काम बिना किसी सरकारी मदद के सामाजिक स्तर पर सदियों से हो रहा है। मंदिरों के पास तालाब, कुएं, बावड़ी बनवाने की परंपरा पुराने जमाने से चली आ रही है। लेकिन आज धरती से हम जितना जल ले रहे हैं उसकी तुलना में लौटा बहुत कम रहे हैं। रोजमर्रा की जिंदगी में पानी के अपव्यय को रोक कर भी हम पानी को बचा सकते हैं। पानी के प्रति हमें अपनी सोच बदलनी होगी। पानी को प्रकृति का प्रचुरता में उपलब्ध निशुल्क उपहार मानने के बजाय अपनी जरूरत की सीमित वस्तु के रूप में देखना होगा।