भाषाई आधार पर राज्यों का गठन

Language has not acted as catalyst for division but it has united us.

UPSC Question: 

Has the formation of linguistic States strengthened the cause of Indian Unity?
क्या भाषाइ राज्यों के गठन नें भारतीय एकता के उद्देश्य को मजबूती प्रदान की है ?

#Satyagrah

इंग्लैंड की गवर्नर कॉउंसिल के मेंबर और लेखक जॉन स्ट्रेची ने 1882 में प्रकाशित अपनी क़िताबइंडियामें लिखा है, ‘हिंदुस्तान कोई एक देश नहीं है. यह कई देशों का महाद्वीप है. आप स्कॉटलैंड और स्पेन में समानता देख सकते हैं पर बंगाल और पंजाब बिलकुल अलग-अलग हैं.’ कुछ ऐसी ही किताबों की मदद से ब्रिटिश इंडिया के आईसीएस अफसरों को भारत समझाया जाता था और इसी से बनी समझ के आधार पर ईस्ट इंडिया कंपनी और ब्रिटिश सरकार 190 साल तक इस देश में जोड़- घटा- गुणा-भाग करती रही और जाते-जाते इसी आधार पर बंटवारा भी कर दिया गया. धर्म के आधार पर विभाजन के बाद भारत में एक और विभाजन हुआ था. इस बार इसका कारण भाषा बनी थी. साल था 1953 था और भाषा के आधार पर बनने वाला यह राज्य था आंध्र प्रदेश.

तब देश का राजनीतिक नक्शा

  • उस वक़्त देश में तीन श्रेणी के राज्य थे. पहली में वे नौ राज्य थे जो तत्कालीन ब्रिटिश सरकार में गवर्नर के अधीन थे और जो अब निर्वाचित गवर्नर और विधानपालिका द्वारा शासित थे. इनमें असम, बिहार, मध्य प्रदेश (मध्य प्रान्त और बिहार), मद्रास, उड़ीसा, पंजाब और उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और बॉम्बे आते थे.
  • दूसरी श्रेणी उन राज्यों की थी जो पहले रियासतदारों के अधीन थे और जिन्हें अब राज प्रमुख और विधानपालिकाएं संभाल रही थीं. इनमें, मैसूर, पटियाला, पूर्वी पंजाब, हैदराबाद,राजस्थान, सौराष्ट्र, त्रावनकोर थे.
  • तीसरी पंक्ति के राज्य वे थे जो पहले चीफ कमिश्नर या किसी राजा द्वारा शाषित थे और अब राष्ट्रपति की अनुशंसा पर बने चीफ कमिश्नरों द्वारा शासित थे. इनमें अजमेर, भोपाल, बिलासपुर, कुर्ग, दिल्ली, हिमाचल त्रिपुरा, कछ, मणिपुर और विन्ध्य प्रदेश थे.

और अंत में अंडमान निकोबार के द्वीप थे जो लेफ्टिनेंट गवर्नर द्वारा शासित थे.

भाषाई प्रान्तों पर महात्मा गांधी के विचार

  • कांग्रेस ने अपने मैनिफेस्टो में घोषणा की थी कि आजादी के बाद भाषा के आधार पर प्रान्तों का गठन किया जाएगा. यह बात सन 1917 की है और इसी साल मद्रास प्रेसीडेंसी के तहत आंध्र वृत्त का गठन हुआ था. कांग्रेस इसके ज़रिये अपने संगठन को मजबूत करना चाहती थी.
  • इस अवधारणा को महात्मा गांधी का भी आशीर्वाद था और आजादी के तुरंत बाद उन्होंने पत्र लिखकर इस को अमल में आते देखने की इच्छा ज़ाहिर की. पर पहले उन्होंने राष्ट्र के स्थिर होने देने पर ज़ोर दिया.

नेहरू और पटेल के विचार

 

  • आजादी से पहले जवाहरलाल नेहरु भी इस अवधारणा के पक्ष में थे पर बाद में उनके ख्याल कुछ बदल गए.
  • उनके मुताबिक़ हाल ही में देश का धर्म के आधार पर विभाजन हुआ है और दूसरा विभाजन, जो कि भाषा के आधार पर होगा, देश को तोड़ देगा. स्थिरता को नेहरू ने भी तरजीह दी.
  • सरदार वल्लभभाई पटेल भी कुछ ऐसी ही राय रखते थे. आख़िर, विभाजन से पैदा हुई पीड़ा को उनसे बेहतर कौन समझ सकता था. गांधी, नेहरु या फिर पटेल में आपसी मतभेद कई बार होते थे पर जहां बात राष्ट्र हित की जाती थी, कमोबेश ये लोग एक ही राय रखते थे.
  • जून 1948 में पटेल के कहने पर राजेन्द प्रसाद ने प्रांतीय भाषा कमीशन का गठन किया जिसमें रिटायर्ड जज (एसके डार), वकील और एक सेवानिवृत आईसीएस अफसर थे. इस कमीशन से इस मुद्दे पर राय मांगी गयी जो उसने छह महीने में ही दे दी. तब कमीशन कम समय में रिपोर्ट दे देते थे!

Dhar Commisionn Views: डार कमीशन ने स्वीकारा कि यह जनभावना से जुडा मुद्दा जरूर है पर उसने इसे यह कहकर ख़ारिज कर दिया कि यह देश हित में नहीं है. इससे जनता के साथ-साथ कई राजनैतिक लोग भी आहत हो गए. तब फिर कांग्रेस के जयपुर अधिवेशन मेंजेवीपीकमेटी बनायी गयी. नेहरू और पटेल के अलावा पट्टाभि सीतारमैय्या इसके सदस्य थे. इसने भी भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन को विभाजनकारी बताकर ख़ारिज कर दिया.

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का बयान

  • विद्वान सी राजगोपालाचारी यानी राजाजी भी इस मुद्दे पर पटेल और नेहरू के साथ खड़े थे. राजाजी ने तो, दक्षिण के लोगों के विपरीत जाकर, हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने में नेहरू का साथ दिया था. 1937 में जब राजाजी मद्रास प्रेसिडेंसी के अध्यक्ष थे तब उन्होंने कई सारे दक्षिण के स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य किया . उन पर लिखी गयी जीवनी में राममोहन गांधी बताते हैं कि राजाजी हिंदी को केले के पत्ते पर चटनी के माफ़िक मानते थे-चखो या छोड़ दो, कोई ख़ास फ़र्क नहीं पड़ेगा.
  • राजाजी का सेंस ऑफ़ ह्यूमर भी कमाल का था. साठ के दशक में जब हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने पर देश भर में बवाल मचा हुआ था तब एक पत्रकार ने जब उनसेउत्तर-दक्षिण मतभेदमसले पर राय मांगी. उन्होंने चिरपरिचित अंदाज़ में कहा किसारी ग़लती जियोग्राफरों की है जिन्होंने नक़्शे में उत्तर को दक्षिण के ऊपर रख दिया है. उल्टा कर दीजिये, सब ठीक हो जाएगा.’

बीआर अंबेडकर की राय

अंबेडकर ने डार कमीशन को भाषा के आधार पर राज्यों के गठन के हक़ में अपनी राय दी. उन्होंनेएक राज्य एक भाषा का सिद्धांत रखा.’ अंबेडकर महाराष्ट्र का गठन चाहते थे जिसकी राजधानी मुंबई (तब बॉम्बे) हो. हालांकि, कुछ उद्योगपति जैसे जेआरडी टाटा या पुरुषोत्तम दास मुंबई को भाषा के आधार पर महाराष्ट्र में जाने नहीं देना चाहते थे.

Who raised voice first

पचास के दशक में देश में भाषा के आधार पर तीन जगहों पर राज्यों के गठन के लिए आंदोलन शुरू हुआ. ये तीन भाषाएं थीं -पंजाबी, मराठी और तेलुगू.

 

  • 1952 के पहले आम चुनाव में यूं तो कांग्रेस भारी मतों से जीती थी. पार्टी लोकसभा की 489 में से 324 सीटें जीतने में कामयाब रही. उधर राज्यों की विधानसभा में भी उसका प्रदर्शन शानदार रहा. कुल 3280 सीटों में से कांग्रेस ने 2247 पर जीत हासिल की. हैरत की बात यह है कि राज्यों में कांग्रेस की जीत केंद्र से बड़ी थी.
  • हालांकि मद्रास प्रांत में कुछ ख़ास कमाल नहीं हुआ था. मद्रास में जवाहरलाल नेहरू को अपने ख़िलाफ़ लोग खड़े हुए मिले. अन्य मांगों के अलावा, प्रमुख मांग थी- ‘हमें आंध्र चाहिए.’ लेकिन नेहरू इसके लिए राज़ी नहीं थे. नतीजा यह हुआ कि विधानसभा की कुल 145 सीटों में से कांग्रेस को महज़ 43 सीट ही मिली थीं. अन्य सीटें उन पार्टियों को मिलीं जो आंध्र आंदोलन को हवा दे रही थीं. चुनावों का परिणाम तस्वीर बयान कर रहा था, नेहरू फिर भी इसकी अनदेखी कर रहे थे.

विशालांध्र के लिए आंदोलन और नेहरू की बेरुख़ी

बात तो उठ चुकी थी, लिहाज़ा देशभर में प्रदर्शन होने लगे. हर भाषा के लोग अलग राज्य की मांग करने लगे. इनमें से सबसे ज़्यादा मुखर आंदोलन तेलुगू भाषाई लोगों का था और इनकी अगुवाई करने वाले थे कांग्रेस पार्टी के सीताराम स्वामी. वे प्रभावशाली व्यक्ति थे. आंध्र की मांग को लेकर उन्होंने भूख हड़ताल भी की जो विनोबा भावे के कहने पर तोड़ी. विशालान्ध्र की मांग तेज़ होने लगी थी.

चुनाव परिणाम से उत्साहित होकर सीताराम स्वामी ने पूरे प्रान्त का दौरा किया और आंध्र आंदोलन को जिंदा रखा. दो लोग अभी भी उनकी बात को नहीं मान रहे थे. पहले,मद्रास के मुख्यमंत्री राजाजी और दुसरे, नेहरू. और इस पर तो कतई नहीं कि अगर आंध्र बना भी तो उसे मद्रास मिलेगा. इस बात ने तेलूगूभाषियों को और भी आहात कर दिया. आपको बताते चलें कि तेलुगू हिंदी के बाद सबसे ज़्यादा बोले जाने वाली दो भाषाओं में से एक है. यही स्थिति तब भी थी.

खैर, इधर कम्युनिस्ट पार्टी के पी सुन्दरैय्या ने राज्य सभा में आंध्र प्रदेश के गठन के लिए बिल पेश कर दिया और अपने भाषण में कहा कि भाषा के आधार पर बने राज्यों से देश को मज़बूती ही मिलेगी. लेकिन जवाहरलाल नेहरू का रुख इनकार का ही था.

गांधी के अनुयायी पोट्टी श्रीरामुलु का सत्याग्रह

नेहरू की बेरुख़ी ने आंदोलन को बहुत तेज़ कर दिया. 19 अक्टूबर, 1952 को गांधी के अनन्य अनुयायी और सत्याग्रही पोट्टी श्रीरामुलु ने मद्रास में भूख हड़ताल का ऐलान कर दिया. आजादी के पहले श्रीरामुलु ने दलितों को मंदिरों में प्रवेश की अनुमति देने के लिए एक बार भूख हड़ताल की थी जो गांधी की समझाइश पर ही ख़त्म हुई थी. उनके जुनून से गांधी भी हैरान थे. 1952 में गांधी नहीं थे जो समझाते. पोट्टी श्रीरामुलु एक एक दिन करके आगे बढ़ते गए.

भूख हड़ताल के पचासवें दिन, यानी सात दिसंबर के बाद से श्रीरामुलु की हालत तेजीसे बिगड़ने लगी और उधर राज्यसभा में गतिविधियां तेज़ हो गईं. केंद्र में भी तत्कालीन उपराष्ट्रपति, श्रम मंत्री, वीवी गिरी आदि सभी ने उनतक टेलीग्राम या नुमाइंदे भेजकर समझाने की कोशिश की. वे नहीं माने.

10 दिसंबर को हैदराबाद के मुख्यमंत्री बी रामकृष्ण राव ने श्रीरामुलु भूख हड़ताल और मरणासन्न स्थिति से देश में हालत बिगड़ जाने का वास्ता दिया. उन्होंने श्रीरामुलु को यकीन दिलाया कि वे नेहरू को मना लेंगे और उन्हें भूख हड़ताल खत्म कर देनी चाहिए. वे तब भी नहीं माने. आख़िरकार, 15 दिसंबर को उनकी हालत बेहद ख़राब हो गयी और उनकी मृत्यु हो गयी. इसके बाद तो पूरे दक्षिण में हालात ख़राब हो गए. आंदोलन, धरने और आगज़नी के चलते स्थिति यह हो गई कि दो दिन में ही नेहरू ने आंध्र के बनने की मांग मंज़ूर कर ली. ‘इंडिया आफ्टर गांधीमें रामचंद्र गुहा लिखते हैं कि इन पूरे दिनों में नेहरू ने लगभग पूरे देश का दौरा किया और 132 सभाएं कीं जिनमें भाषा के अलावा वे हर विषय पर बोले.

आखिरकार राज्य पुनर्गठन कमेटी बनायी गयी और एक अक्टूबर 1953 को मद्रास राज्य में से 14 जिलों को हटाकर आंध्र प्रदेश बनाया गया. बाद में कुछ और जिले इसमें मिलाए गए. कमेटी की सिफारिशों और जनता के भावनात्मक जुड़ाव को देखते हुए महाराष्ट्र और बाद में अन्य राज्य भी अस्तित्व में आने लगे. हालांकि तमाम कोशिशों के बाद भी पंजाब पर नेहरू मेहरबान नहीं हुए. 1966 में पंजाब का गठन हुआ पर तब तक वहां देर हो चुकी थी. पंजाब में असंतोष का माहौल पनप गया था जो बाद में आतंकवाद का कारण बना.

भाषाई आधार पर राज्य बनाने को जवाहरलाल नेहरू विघटन का कारण समझते रहे जबकि महात्मा गांधी इसे देश को जोड़ने की सबसे मज़बूत कड़ी मानते थे. रामचंद गुहा लिखते हैं, ‘भाषाई राज्यों ने देश के संघीय ढांचे को मजबूत ही किया है.’ गांधी को हम अभी पूरी तरह से समझ नहीं पाए हैं. वक़्त लगेगा...पढ़ना पड़ेगा, उनकी तरह जीना पड़ेगा.’

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