साइबर ठगी पर लगाम से ही बनेगी बात

 

  • देश में तीन साल पहले जिस डिजिटल इंडिया नामक अभियान की जोरदार शुरुआत हुई थी, उसका एक उद्देश्य रुपये-पैसे के लेनदेन के डिजिटल उपायों में बढ़ोतरी करना भी था। सोचा गया था कि नकदी की जगह धन के हर तरह के ट्रांजेक्शन (लेनदेन) का यह तरीका देश को एक नए मुकाम पर ले जाएगा, लेकिन यह क्रांति आम जनता को फायदा पहुंचाने के बजाय जिस तरह से हर दूसरे व्यक्ति को चूना लगाने की तरफ मुड़ गई है- इसे देखकर हर कोई हैरान है।
  • इधर दिल्ली-एनसीआर में कुछ ही दिनों के अंदर एटीएम कार्ड फ्रॉड की सैकड़ों शिकायतें मिलने का मामला ही चर्चा में नहीं है, बल्कि पश्चिम बंगाल से लेकर देश के दूरदराज के क्षेत्रों में हर दिन एटीएम फ्रॉड, बीपीओ के जरिये देश-विदेश में ठगी, क्लोनिंग के जरिये क्रेडिट कार्ड से बिना जानकारी धन-निकासी और बड़ी कंपनियों के अकाउंट वेबसाइट की हैकिंग और फिरौती वसूली की घटनाएं हो रही हैं।
  • ये घटनाएं हमें यह सोचने को मजबूर कर रही हैं कि हमारी डिजिटल क्रांति आखिर किस राह जा रही है और यह आम लोगों के फायदे की जगह नुकसान का सबब क्यों बन गई है।
  • किस्म-किस्म की साइबर ठगी : इधर दिल्ली में एटीएम कार्ड की क्लोनिंग करके सैकड़ों लोगों के अकाउंट से हजारों-लाखों रुपये उड़ाने का मामला चर्चा में है। दावा किया जा रहा है कि इस तरह की धोखाधड़ी अक्सर रात में 12 बजे के आसपास होती है, क्योंकि ज्यादातर लोग उस वक्त नींद में होने के कारण खाते से धन निकासी का ईमेल और एसएमएम देख नहीं पाते हैं। सुबह होने पर जब वे यह संदेश देखते हैं, तब तक खाते से कई बार पैसे निकाले जा चुके होते हैं। गौरतलब है कि इस किस्म की साइबर ठगी के शिकार हुए लोग डिजिटल सुरक्षा के उपायों से पूरी तरह अनभिज्ञ नहीं कहे जा सकते हैं।
  • इनमें से अधिकांश लोग पढ़े-लिखे हैं, लेकिन एटीएम मशीनों में ठगों द्वारा चोरीछिपे ग्राहकों के कार्ड की सूचनाएं पढ़ने के लिए लगाई गई डिवाइसों (स्कीमर) के कारण अथवा अनजाने में फोन पर मांगी जाने वाली सूचना देने पर वे जालसाजी के शिकार हो जाते हैं।
  • कई मामलों में साबित हुआ है कि साइबर क्राइम करने वाले जालसाज लोगों से फोन पर उनके खाते के बारे में आने वाले ओटीपी (वन टाइम पासवर्ड) मांगते हैं और लोग उन्हें बैंककर्मी मानते हुए उन पर भरोसा करके वे सारी सूचनाएं आराम से दे देते हैं। इसके बाद जब उनके साथ फ्रॉड होता है तो उन्हें अपनी गलती का अहसास होता है, लेकिन सभी मामलों में ऐसा नहीं है।
  • जालसाजी की बहुत सी घटनाओं से साबित हुआ है कि उपभोक्ता ने सारी सावधानियां बरतीं, लेकिन हैकिंग अथवा एटीएम मशीनों में अपराधियों द्वारा लगाई गई स्कीमर जैसी डिवाइसों से उनके कार्ड की सूचनाएं (कार्ड नंबर, सीवीवी और पासवर्ड) पढ़ ली गईं, जिनका बाद में दुरुपयोग किया गया।
  • बैंकिंग से जुड़े सुरक्षात्मक उपायों की साइबर अपराधियों ने हवा निकालकर रख दी है और वे डिजिटल उपाय करने वाले महारथियों से दो कदम आगे के जानकार साबित हो रहे हैं। इनके घोटाले के तौर-तरीकों को देखकर आज कोई इसे लेकर आश्वस्त नहीं हो सकता है कि जहां कहीं भी पैसे और सामान के लेनदेन का कोई डिजिटल उपाय काम में लाया जा रहा है, वह फूलप्रूफ है और उसमें धांधली की कोई गुंजाइश नहीं है। ऐसी हरकतें पूरे डिजिटल इंडिया अभियान को संकट में डाल रही हैं।

निशाने पर सिर्फ बैंक नहीं : यह भी उल्लेखनीय है कि साइबर फ्रॉड की घटनाएं महज बैंकिंग तक सीमित नहीं हैं। पेट्रोल पंपों में चिप लगाकर कमतौली करने और फर्जी बीपीओ खड़े करके देश और विदेश में कुछ युवाओं ने अपनी कथित प्रतिभा का इस्तेमाल लोगों को ठगने में किया है।

  • दो साल पहले महाराष्ट्र के सागर उर्फ सैगी नामक युवा ने जिस प्रकार रातोंरात बीपीओ फर्जीवाड़े के तहत विदेशियों को करोड़ों का चूना लगाया, उससे साबित हो गया है कि अगर कोई तकनीक की जानकारी का बेजा इस्तेमाल करना चाहे तो शुरुआत में ही उसे रोकने और उसकी धरपकड़ के ज्यादा इंतजाम अपने देश में नहीं हैं। हालांकि ऐसा पूरी दुनिया में हो रहा है।
  • माना जाता है कि वर्ष 2015 में पूरी दुनिया में करीब 56 लाख साइबर हमले हुए, जिनसे दो करोड़ से ज्यादा लोग प्रभावित हुए। साल भर पहले अपने देश में भी कुछ ऐसा ही हादसा घटित हुआ था, जब एक सरकारी बैंक ने अपने छह लाख उपभोक्ताओं के एटीएम कार्ड पहले तो ब्लॉक कर दिए, फिर उन्हें ग्राहकों से वापस मंगा लिया।
  • इस घटना के पीछे एटीएम कार्डो की क्लोनिंग को जिम्मेदार बताया जा रहा है, जिसके तहत क्लोन कार्डो की मदद से उपभोक्ताओं के खाते से धननिकासी की जा रही थी। देश में मौजूद करीब 2 लाख एटीएम के विशाल आंकड़े को देखते हुए यह संभव नहीं लगता है कि उनके जरिये वित्तीय लेनदेन करने वाला हर ग्राहक इतना सजग होगा कि वह पैसे निकालते वक्त हर सावधानी बरतेगा। मुमकिन भी है कि कई मामलों में ग्राहक समय पर और सही विधि से शिकायत करने में चूक जाएं और अंतत: उन्हें इसका घाटा उठाना पड़े।
  • यही वजह है कि आज दुनिया में कोई भी बैंक तमाम उपाय करने के बावजूद इसकी गारंटी देने में समर्थ नहीं है कि उसके उपभोक्ताओं का पैसा पूरी तरह महफूज रहेगा, बल्कि इस संबंध में बैंक धोखाधड़ी की ज्यादातर जिम्मेदारी अपने उपभोक्ताओं पर ही डालने की कोशिश करते हैं।
  • बैंकिंग का सारा कामकाज घर बैठे कराने से लेकर कई तरह के वित्तीय लेनदेन का जो इंतजाम उपभोक्ताओं को इंटरनेट से जोड़कर किया गया है, उसने सुविधा के साथ-साथ कई मुसीबतें भी पैदा कर दी है।
  • इंटरनेट, मोबाइल और एटीएम के मार्फत बैंकिंग के इंतजाम करते हुए एक तरफ बैंकों ने अपने दफ्तरों का आकार और कर्मचारी संख्या में कटौती की है तो दूसरी तरह ग्राहकों को इसके लिए हतोत्साहित किया है कि हर वाणिज्यिक काम के लिए बैंकों की शाखा में जाएं।
  • हालांकि हर बैंक दावा करता है कि उसने अपने सर्वरों तक हैकरों की पहुंच के रास्ते में कई बाधाएं कायम की है, लेकिन दुनिया भर के हैकरों ने कंप्यूटरों के नेटवर्क और सर्वरों में सेंधमारी करके साबित कर दिया है कि अगर बैंक सरकारें डाल-डाल हैं, तो वे पात-पात हैं।
  • साइबर विशेषज्ञों का अभाव : डिजिटल धोखाधड़ी पर हमारा ध्यान जाने की कुछ वजहें अहम हैं। असल में पैसे के लेनदेन और सामानों की खरीद-फरोख्त के वक्त अगर बीच में कोई मशीनी इंतजाम है तो उसे बेईमान मानना कोई अक्लमंदी नहीं माना जाता, पर कोई लेनदेन करते समय हमारा ध्यान इस ओर नहीं जाता है कि अंतत: इस मशीनी प्रबंध के किसी एक सिरे पर गड़बड़ी करने वाला कोई इंसान मौजूद हो सकता है।
  • यही वजह है कि साइबर हैकरों की तरफ हमारा ध्यान तभी जाता है जब वे कोई बड़ी वारदात को अंजाम दे चुके होते हैं। अक्सर यह देरी काफी नुकसानदेह साबित होती है। यह समस्या इसलिए ज्यादा गंभीर और बड़ी है, क्योंकि ऐसी गड़बड़ियों को रोकने में सक्षम विशेषज्ञों का अभाव है।
  • हमारे देश में फिलहाल बमुश्किल छह-सात हजार साइबर विशेषज्ञ होंगे, जबकि पड़ोसी मुल्क चीन में सवा लाख और अमेरिका में एक लाख से ज्यादा लोग साइबर विशेषज्ञ के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। ब्रिटेन आदि मुल्कों में ऐसी धोखाधड़ी रोकने के लिए बाकायदा साइबर आर्मी गठित की जा चुकी है।
  • अगर वित्तीय लेनदेन के साधानों को आम उपभोक्ताओं के हित सुरक्षित रखने वाला बनाना है और उन्हें डिजिटल धोखों से महफूज करना है तो इस मोर्चे पर तेजी से काम करने की जरूरत है। ध्यान रखना होगा कि लंबे अरसे से प्रतिभावान आइटी पेशेवरों की बदौलत भारत की गिनती आइटी क्षेत्र की महारथी देश के रूप में होती रही है।
  • ऐसे में यदि डिजिटल अपराधी हमारी इस साख को बट्टा लगाने में सफल हो जाते हैं तो इस नाकामी के बड़े गहरे अर्थ लगाए जाएंगे। इससे लोगों का बैंकिंग व्यवस्था से ही भरोसा उठने का बड़ा खतरा है, बल्कि यह भी सकता है कि हमारे आइटी पेशेवरों की प्रतिष्ठा पर आंच आने लगे और आइटी-बीपीओ से संबंधी कामकाज उन मुल्कों में जाने लगे, जहां की साइबर सुरक्षा चुस्त-दुरुस्त मानी जाती है।

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