Recent visit of Tillerson to India signify many things for India and his speech has clear message to India to come on board to counter China and making a coalition of Democratic nation
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अमेरिकी विदेश सचिव रेक्स टिलरसन के भारत आने का मकसद ट्रंप प्रशासन के उस इरादे को थोड़ा और पुख्ता करना है कि वह दिल्ली के साथ रिश्तों में गर्मजोशी का इच्छुक है।
टिलरसन पिछले हफ्ते अपने एक भाषण में भारत-नीति पर विस्तार से अपनी बात कह चुके हैं। उसमें उनका जोर पिछले कुछेक सालों में भारत-अमेरिका रिश्तों के आए महत्वपूर्ण बदलावों व गर्मजोशी में हुए अभूतपूर्व इजाफे पर रहा था।
टिलरसन ने इस भाषण में भारत और चीन के कार्य-व्यवहार के अंतरविरोधों की भी बात की।
उनका तर्क था कि ‘चीन, भारत के साथ रिश्तों में आगे बढ़ते हुए भी कई बार गैर-जिम्मेदारी का परिचय देता है और अंतरराष्ट्रीय नियम-कानूनों को भी नजरअंदाज कर जाता है, जबकि भारत जैसे देश हमेशा दूसरे देशों की संप्रभुता की रक्षा करते हुए अपने दायरे में रहकर काम करते हैं।’
हालांकि रेक्स टिलरसन ने कहा कि अमेरिका, चीन के साथ रचनात्मक संबंध चाहता है, लेकिन वह यह भी साफ करने से नहीं चूके कि नियम आधारित मामलों में चीनी चुनौतियों की, या ऐसे मामलों की, जिसमें चीन पड़ोसी देशों की संप्रभुता से खिलवाड़ करता दिखे या अमेरिका व हमारे मित्र देशों के लिए खतरा बने, हम अनदेखी नहीं कर सकते।
भारत और अमेरिका को दुनिया के दोनों तरफ मजबूती से खड़े ‘स्थायित्व के दो स्तंभ’ बताते हुए टिलरसन ने तर्क दिया कि ‘भारत को बस विश्व स्तर पर एक विश्वसनीय साथी की जरूरत है। मैं स्पष्ट करना चाहता हूं कि वैश्विक स्थायित्व के प्रति हमारे साझा मूल्य और दृष्टिकोण के साथ शांति और समृद्धि की दिशा में भी अमेरिका हमेशा साथ है।’
भारत और अमेरिका के रिश्तों का आधार स्पष्ट करते हुए टिलरसन का कहना था कि ‘भारत-अमेरिका के बीच उभरती सामरिक साझेदारी का मतलब कानून और नियमों के प्रति सम्मान, अहस्तक्षेपकारी नीति, सार्वभौम मूल्य और मुक्त व्यापार बनाए रखने की साझा प्रतिबद्धता पर निर्भर रहना है।
What does this speech signify?
’ ऐसे वक्त में, जब ट्रंप प्रशासन की विदेश नीति और उसके नजरिये, अमेरिका फस्र्ट की उसकी अलगावकारी नीति को लेकर भारत में चिंताएं व्यक्त की जा रही हैं, टिलरसन का यह भाषण धुंधलके से परदा उठाते हुए बहुत कुछ स्पष्ट करने वाला है, जब वह इस क्षेत्र में अपनी चिंता और भारत के महत्व को हमेशा की तरह निर्णायक बताते हैं। टिलरसन की इस सप्ताह की भारत यात्रा के दौरान स्वाभाविक तौर पर क्षेत्रीय मुद्दे एजेंडे पर हावी होंगे और वाशिंगटन इस बात का आकलन करना चाहेगा कि नई दिल्ली अफगान-पाक और भारत-प्रशांत क्षेत्र में अपनी कैसी भूमिका तय करना चाह रही है?
ट्रंप प्रशासन की दक्षिण एशिया नीति (South Asia Policy) में पहले ही अफगानिस्तान में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका की बात को स्वीकार किया गया है और टिलरसन के भाषण ने व्यापक भारत-प्रशांत क्षेत्र में भारत की भूमिका को और महत्वपूर्ण बना दिया है। ऐसे समय में, जब भारत संपूर्ण एशियाई क्षेत्र में अपनी व्यापक भूमिका महसूस करते हुए, एक सशक्त रोल निभाने को तैयार है, तो वाशिंगटन चाहेगा कि इसकी शुरुआत भारत-प्रशांत क्षेत्र में भारत की अधिक से अधिक सक्रियता और सहयोग के रूप में हो।
टिलरसन की इस बात को भी अहमियत दिए जाने की जरूरत है कि ‘अमेरिका, भारत और जापान के त्रिपक्षीय और महत्वपूर्ण मजबूत संबंधों का हम पहले से ही लाभ उठा रहे हैं। जैसा कि हम देख रहे हैं कि भविष्य में साझा उद्देश्यों और हर नई शुरुआत में मजबूती के लिए हमें ऑस्ट्रेलिया सहित अन्य देशों को भी अपने साथ जोड़ने पर सोचना चाहिए। इसकी आज जरूरत है।’
Indian ViewPoint
दिल्ली ने भारत-अमेरिका रिश्तों पर टिलरसन के ‘सकारात्मक मूल्यांकन’ की ‘सराहना’ की है और कहा है कि वह द्विपक्षीय संबंधों के भविष्य की दिशा में ‘उनके आशावाद’ के साथ है, लेकिन चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स की राय इस मामले में स्वाभाविक रूप से तल्खी भरी है। उसकी राय में भारत को इसका अनुभव नहीं है और उसे अंदाज भी नहीं है कि अमेरिका के आर्थिक, तकनीकी, सैन्य और राजनीतिक वादों के पूरे होने के लिए भारत को कितना इंतजार करना होगा? टिलरसन द्वारा तैयार की गई वाशिंगटन की दक्षिण एशिया नीति में बीजिंग से संतुलन साधने के लिए नई दिल्ली को मजबूत करने का इरादा भले दिखाई देता हो, चीन भारत-अमेरिका द्विपक्षीय संबंधों की मजबूती के खिलाफ नहीं है, लेकिन वह ऐसे किसी कदम को भी बर्दाश्त नहीं करेगा, जो उसके खिलाफ जाता हुआ दिखेगा।
टिलरसन की यह यात्रा वाशिंगटन और नई दिल्ली को वैश्विक राजनीति में तेजी से हो रहे बदलाव के हालात में इस क्षेत्र में अपनी-अपनी प्राथमिकताओं के आकलन का अवसर भी देगी। भारत के लिए अगर यह आकलन करने का अवसर है कि ट्रंप प्रशासन पाकिस्तान और चीन पर अपनी अब तक की लफ्फाजी को कितना मूर्त रूप देने को तत्पर दिखता है, तो अमेरिका के लिए यह उसके बदलते रुख पर मोदी सरकार की प्रतिक्रिया के आकलन का वक्त होगा। अभी यह देखा जाना बाकी है कि भारत इस पूरी प्रक्रिया में अपनी एक व्यापक क्षेत्रीय और वैश्विक भूमिका कैसे तय करता है और किस तरह से उसका लाभ उठाता है। मोदी सरकार तेजी से बढ़ रही एक ताकत के साथ शक्ति संतुलन का जरिया बनने से भारत को दूर रखना चाहती है, तो ट्रंप प्रशासन भारत की हर महत्वाकांक्षा को आकार देने के लिए हरसंभव मदद करने को तत्पर दिखना चाहता है और लगातार इसके संकेत भी दे रहा है। जॉर्ज डब्ल्यू बुश के कार्यकाल के बाद के दोनों अमेरिकी प्रशासन भारत के वैश्विक विस्तार को लेकर खासे सकारात्मक रहे हैं। लेकिन यह नई दिल्ली थी, जो अपने दक्षिण एशियाई खोल से बाहर नहीं आना चाहती थी। मोदी सरकार अब भारत को एक शक्तिशाली वैश्विक खिलाड़ी के रूप में उभरते देखने के लिए प्रतिबद्ध दिखाई दे रही है। ऐसे में, अपनी उम्मीदों को पंख लगाने का यही सही वक्त है।