CURRENT AFFAIRS 18 November 2018

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1.दिल्ली के मुख्य सचिव अंशु प्रकाश का तबादला

  • अंशु प्रकाश के दिल्ली सरकार के साथ संबंध अच्छे नहीं थे। नए मुख्य सचिव के साथ दिल्ली सरकार तालमेल बैठाने की कोशिश करेगी।
  • सरकार यह भी कोशिश करेगी कि अगला मुख्य सचिव उनकी पसंद का बने। दिल्ली का नया मुख्य सचिव कौन होगा, इसके लिए दिल्ली सरकार केंद्र के पास पसंद के अधिकारियों का पैनल भेजेगी। उसके आधार पर ही मुख्य सचिव की तैनाती होगी।

USE IN PAPER 2-CENTER GOVT VS STATE,BUREAUCRACY

2.कार्यस्थलों पर महिलाओं के अनुकूल नहीं हैं हालात

  • राष्ट्रीय महिला आयोग ने विचार-विमर्श के बाद कई ऐसे बिंदु तलाशे हैं जो कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न की रोकथाम वाली व्यवस्था में खामी छोड़ते हैं। समीक्षा में पाया गया कि कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न रोकने या उस पर नजर रखने के लिए कोई अधिकारी नियुक्त नहीं है। यौन उत्पीड़न के रोकथाम वाले तंत्र को अधिनियम में भी स्पष्ट नहीं किया गया है।

USE IN PAPER 1-SOCIETY,WOMEN,WORK FORCE

3.पड़ोसी देशों से भारत की सुरक्षा करेगा एस-400

  • एस-400 ट्रायंफ अगली पीढ़ी की वायु रक्षा प्रणाली है, जो 400 किमी की दूरी तक हवाई लक्ष्यों को नष्ट करने में सक्षम है।एस-400 एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम दुश्मन के विमान को आसमान से गिरा सकता है। एस-400 को रूस की सबसे आधुनिक लंबी दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल डिफेंस प्रणाली माना जाता है। यह दुश्मन के क्रूज, युद्धक विमान और बैलेस्टिक मिसाइलों को मार गिराने में सक्षम है। यह सिस्टम रूस के ही एस-300 का अपग्रेडेड वर्जन है। इस मिसाइल प्रणाली को अल्माज आंते ने तैयार किया है, जो रूस में 2007 के बाद से ही सेवा में है। यह एक ही राउंड में 36 वार करने में सक्षम है।
  • भारत सरकार नौसेना के लिए अमेरिका से 24 मल्टी रोल एमएच-60 रोमियो एंटी सबमरीन हेलीकॉप्टर खरीदने की तैयारी कर रही है। सूत्रों के मुताबिक, यह सौदा दो अरब डॉलर (करीब 144 अरब रुपये) का होगा। भारत को दशक भर से ज्यादा समय से इन हेलीकॉप्टर की जरूरत है।
  • 30 नवंबर और पहली दिसंबर को अर्जेटीना में जी-20 देशों के सम्मेलन से इतर प्रधानमंत्री मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मुलाकात की उम्मीद भी जताई जा रही है। हालांकि अभी किसी पक्ष ने मुलाकात की पुष्टि नहीं की है। सूत्रों के मुताबिक, एमएच-60 रोमियो डील में ऑफसेट रिक्वायरमेंट भी होने की उम्मीद है।

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4.वोटरों को लुभा रही चुनाव आयोग की प्रदर्शनी

  • प्रदेशों में मतदाताओं को मताधिकार के प्रति जागरूक किया जा सके, इसके लिए चुनाव आयोग एनीमेशन फिल्मों का भी इस्तेमाल कर रहा है। चुनाव के दौरान स्वीप गतिविधियों के तहत सात दिवसीय सरगम सप्ताह के लिए सात पोस्टरों, सात सरगम गीतों तथा चार एनीमेशन फिल्मों का मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने लोकार्पण किया है। सरगम सप्ताह के दौरान प्रदेशभर में प्रतिदिन एक पोस्टर प्रदर्शित किया जाएगा।

USE IN ELECTION,DEMOCRACY,VOTING RIGHT

5.सुप्रीम कोर्ट पहुंचा केंद्रीय जांच ब्यूरो का एक और अधिकारी

  • सीबीआइ के एक और वरिष्ठ अधिकारी अश्विनी कुमार गुप्ता ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली है। उनका आरोप है कि दुर्भावनापूर्ण उद्देश्य से उन्हें आइबी में वापस भेजने का आदेश जारी किया गया है।

USE IN BUREAUCRACY,JUDICIAL

6.यूजीसी ने छात्रों की शिकायतों के निस्तारण के लिए बनाए नियम

  • लोकपाल की नियुक्ति के लिए संशोधित मानदंडों के साथ ही यूजीसी ने शिकायत नियमों में सुधार किया है। इसे शीघ्र ही सार्वजनिक किया जाएगा।एक सर्वे से पता चला है कि दिल्ली स्थित केंद्रीय विश्वविद्यालयों सहित किसी भी यूनिवर्सिटी में लोकपाल की नियुक्ति नहीं की गई है। हम छात्रों की शिकायतों को हल करने के लिए जिस नई प्रक्रिया का सुझाव दे रहे हैं, उसमें तीसरे या चौथे स्तर पर लोकपाल आएगा।

USE IN PAPER 2GOVERNANCE,EDUCATION ,LOKPAL,GRIEVANCE SYSTEM

7.पंजाब की बसों पर पराली जागरूकता के विज्ञापन लगाने के नाम पर गोलमाल

            USE IN AWARENESS

8.यूपीपीएससी की भर्तियों के सीबीआइ जांच अधिकारी हटे

  • उत्तर प्रदेश लोकसेवा आयोग यानी यूपीपीएससी की पांच साल की भर्तियों में भ्रष्टाचार की जांच कर रहे सीबीआइ एसपी राजीव रंजन को हटा दिया गया है। जांच अधिकारी राजीव लंबे समय से सीबीआइ में प्रतिनियुक्ति पर थे। उन्हें मूल कैडर सिक्किम भेजा गया है

USE IN PAPER2-GOVERNANCE,CORRUPTION,CIVIL SERVICE

9.एपेक सम्मेलन से पहले ट्रेड वार पर भिड़े अमेरिका-चीन

  • संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएसए) और चीन में ट्रेड वार पर चल रहा गतिरोध एक बार फिर एपेक सम्मेलन से ठीक पहले खुलकर सामने आया। पापुआ न्यू गिनी की राजधानी पोर्ट मोर्सबी में एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (एपेक) का सम्मेलन शुरू होने से पहले एक बिजनेस फोरम में बोलते हुए चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग और अमेरिका के उप राष्ट्रपति माइक पेंस ने एक-दूसरे पर जमकर निशाना साधा। एक तरफ चिनफिंग ने अमेरिकी संरक्षणवाद को कोसा। दूसरी तरफ पेंस ने चीन के खिलाफ तब तक आयात शुल्क लगाते और बढ़ाते रहने बात की, जब तक कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था (चीन) अपने कारोबार के तौर-तरीकों में बदलाव नहीं कर लेती। दोनों देशों के इस रुख से अगले महीने अर्जेटीना में जी-20 सम्मेलन के दौरान अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और चिनफिंग की मुलाकात के और तल्ख होने की आशंका जताई जाने लगी है।
  • मलेशिया के प्रधानमंत्री महाथिर मोहम्मद ने कहा कि वैश्वीकरण और मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) जैसे कदमों के चलते आर्थिक विषमता पैदा हो रही है और दुनिया की एक आबादी विकास यात्र में पीछे छूट रही है। सम्मेलन में बोलते हुए मोहम्मद ने विकसित और विकासशील देशों के बीच कारोबार के लिहाज से बराबरी के मौके विकसित करने का आह्वान किया।

USE IN PAPER 2-IR US-CHINATRADE, 3-OIL CRICIS,ENERGY RESOURCE

10..प्रोजेक्टों को फंड नहीं दे रहे बैंक आरबीआइ ने भी बढ़ाई जटिलता

  • नितिन गडकरी ने कहा है कि निवेश के सुनहरे अवसरहोने के बावजूद बैंक दो लाख करोड़ रुपये के इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्टों को फंडिंग (फाइनेंशियल डिस्क्लोजर) नहीं कर रहे हैं। ऐसे में भारतीय रिजर्व बैंक ने भी स्थिति को और पेचीदा कर दिया है। रिजर्व बैंक के बोर्ड की 19 नवंबर को बैठक से पहले केंद्रीय मंत्री का यह बयान आया है। नकदी बैंकों के नियमन समेत कई मसलों पर आरबीआइ सरकार के बीच तनातनी बनी हुई है। दो लाख करोड़ रुपये के कम से कम 150 प्रोजेक्ट ऐसे हैं जिनके निवेशकों के लिए बैंकों से फंडिंग पाना (फाइनेंशियल डिस्क्लोजर) बेहद मुश्किल हो गया है।

USE IN PAPER 3-ECONOMY,BANKING,FISCAL DEFICIT

11.एच-4 वीजा को बचाने के पक्ष में उतरे अमेरिकी सांसद

  • ओबामा प्रशासन ने दिया था अधिकार : एच-4 के तहत रोजगार पाने का नियम ओबामा प्रशासन के दौर का है। यह नियम प्रभावी होने के बाद एक लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार पाने का अधिकार मिला। इनमें ज्यादातर महिलाएं हैं। यह नियम खत्म होने से सबसे ज्यादा भारतीय प्रभावित होंगे।
  • क्या है एच-4 वीजा
  • एच-4 वीजा एच-1बी धारकों के जीवन साथियों को जारी किया जाता है। यह एक तरह का वर्क परमिट है। इससे उनको नौकरी करने की इजाजत मिलती है। ट्रंप प्रशासन इसी नियम को खत्म करने की योजना बना रहा है।

PRELIMINARY,IR,US –INDIA BUSINESS

12.यूएनपी का आग्रह, श्रीलंका के यूजर्स की जानकारी सावर्जनिक करे फेसबुक

  • श्रीलंका के सबसे बड़े राजनीतिक दल यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) ने शनिवार को फेसबुक से अपने समर्थकों की पहचान सुरक्षित रखने का आग्रह किया है। अपदस्थ प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे पार्टी ने इसके पीछे अवैध सरकार से कार्रवाई का डर है।
  • यूएनपी ने कहा, ‘हमने फेसबुक से अनुरोध किया कि वह यूजर्स की जानकारी अवैध सरकार के किसी अधिकारी से साझा करे। खासकर, तब जबकि इसके लिए अदालत द्वारा उचित अनुमति दी गई हो।यूएनपी ने यह शिकायत भी की है कि विक्रमसिंघे के साथ एकजुटता दिखाने के लिए गुरुवार को आयोजित रैली से पहले फेसबुक ने उसका आधिकारिक पेज भी ब्लाक कर दिया।

USE INPAPER 2-GOVT. VS SOCIAL MEDIA ,PRIVACY ,DATA

13.,नियमों के पालन से बचेगी जान

  • हादसे वहीं होते हैं जहां नियम-कायदों को ताक पर रख दिया जाता है। एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि लोगों के बीच असुरक्षित सड़कों को लेकर इतना खौफ है कि 82 फीसद लोग सड़क पार करने में भी संकोच करते हैं। उन्हें लगता है कि कोई वाहन यकायक आकर उन्हें टक्कर मार सकता है। यह स्थिति तब उपजी है जब वे देख रहे हैं कि कैसे सड़कों पर लोग मनमाने तरीके से वाहन दौड़ाते हैं और नियमों की अनदेखी करते हैं।

  • लाइसेंस बनाने के नियम बनें कठोर
  • बिना लाइसेंस वाहन चलाना अपराध है। जिनका लाइसेंस बनता है उसमें से 59 फीसद टेस्ट भी नहीं देते। मोटर वाहन एक्ट 1988 के तहत बिना गियर वाले 50 सीसी की बाइक चलाने के लिए 16 साल का कोई भी व्यक्ति आवेदन कर सकता है। गियर वाली बाइक के लिए यह उम्र 18 वर्ष है। कमर्शियल वाहन चलाने के लिए 20 साल की उम्र का कोई भी व्यक्ति आवेदन कर सकता है।
  • कम जुर्माने से लोग हैं निडर
  • आपके वाहन के सामने किसी ने वाहन पार्क कर दिया और आप फंस गए तो पुलिस को बुला सकते हैं। उस पर 100 रुपये का जुर्माना हो सकता है। हार्न खराब होने,वाहन के अंदर सिगरेट पीने पर भी 100 रुपये का जुर्माना लग सकता है। कोलकाता में मुंबई में कार में टीवी लगाने पर 100 रुपये का जुर्माना हो सकता है।

  • कड़े नियम रोक सकते हैं हादसे
  • बाइक से कमर्शियल वाहनों तक का लाइसेंस पाने के लिए एजुकेशन की जरूरत सिर्फ दसवीं पास है। ऐसे में अप्रशिक्षित ड्राइवर सड़क पर लोगों की जान ले रहे हैं। इसलिए सरकार को चाहिए कि सभी वाहन चालकों को नियमित रूप से प्रशिक्षण देने और व्यावहारिक टेस्ट लेने के बाद ही लाइसेंस दे। शैक्षणिक योग्यता को और भी बढ़ाना चाहिए।

USE IN PAPR 2-GOVERNANCE,4-ETHICS

14.रश्मि रोबोट तैयार हिंदी-भोजपुरी में करती है बात

  • दुबई की नागरिकता हासिल करने वाली रोबोट सोफिया की भारतीय संस्करण रश्मि रोबोट पूरी तरह बनकर तैयार हो गई है। इसे बनाने में करीब ढाई साल का समय लगा है.

PRELIMINARY

15. भूजल दोहन से जलस्तर में कमी के साथ बढ़ रहा है कार्बन उत्सर्जन

  • शोध टीम के एक सदस्य डॉ. विमल मिश्र ने बताया कि भारत में भूजल में गिरावाट की पर्यावरणीय समस्या कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन से अधिक गंभीर है। इसीलिए भूजल के उपयोग का विनियमन करना आवश्यक है।
  • भूजल दोहन से कार्बन उत्सर्जन की चेतावनी हमेशा यह याद दिलाती रहती है कि हर एक मानवीय गतिविधि के कई प्रभाव हो सकते हैं। इसके कई अनापेक्षित परिणाम भी हो सकते हैं। सभी के लिए जल की एक समान उपलब्धता और गहराई से भूजल दोहन के कारण फ्लोराइड और आर्सेनिक में वृद्धि जैसे अन्य कारकों पर पैनी नजर बनाए रखने की भी आवश्यकता है।

USE IN PAPER 1-GEOGRAPHY,3-POLLUTION,CARBON

16. कीटनाशकों के नियंत्रित प्रयोग का रास्ता तलाशा

  • फसलों में रसायनों के सही मात्र में उपयोग और उनकी बर्बादी को रोकने के लिए छिड़काव की नियंत्रित विधियों की जरूरत होती है। भारतीय शोधकर्ताओं ने अब एक ऐसा ईको-फ्रेंडली फॉमरूला तैयार किया है, जिसकी मदद से खेतों में रसायनों का छिड़काव नियंत्रित तरीके से किया जा सकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि सेल्युलोज नैनो फाइबर इस काम में मददगार साबित हो सकते हैं।
  • वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआइआर) की पुणो स्थित नेशनल केमिकल लैबोरेटरी (एनसीएल) के शोधकर्ताओं ने गन्ने की पेराई के बाद बचे अपशिष्ट, मक्का स्टार्च और यूरिया फॉर्मेल्डहाइड को मिलाकर खास नैनो-कंपोजिट दाने (ग्रैंयूल्स) बनाए हैं। ग्रेंयूल्स के भीतर एक कीट प्रतिरोधी रसायन डिमेथिल फाथेलेट (डीएमपी) और परजीवी रोधी दवा एक्टो-पैरासिटाइडिस को समाहित किया गया है। इस नए नियंत्रित रिलीज फॉमरूलेशन सिस्टम की मदद से वांछित समय में कीटनाशकों को रिलीज किया जा सकता है और उन्हें जरूरत के अनुसार सही जगह तक पहुंचाया जा सकता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि फसल पैदावार बढ़ाने और पर्यावरण प्रदूषण कम करने में भी इससे मदद मिल सकती है।
  • नियंत्रित रिलीज प्रणाली की दिशा में एक कदम : स्टार्च, जिलेटिन, प्राकृतिक रबड़ और पॉलियूरिया, पॉलीयूरेथेन, पॉली विनाइल अल्कोहल एवं इपोक्सी रेजिन जैसे सिंथेटिक पॉलिमर आदि इन प्रणालियों को तैयार करने के लिए उपयोग किए जाते हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार, सूक्ष्म प्लास्टिक कणों की बढ़ती समस्या की वजह से रसायनों के छिड़काव के लिए जैविक रूप से अपघटित होने लायक माइक्रो-कैप्सूल आधारित नियंत्रित रिलीज प्रणालियों का निर्माण जरूरी है। एनसीएल के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई यह प्रणाली इसी दिशा में उठाया गया एक कदम है।
  • इस तरह काम करती है प्रणाली
  • प्रमुख शोधकर्ता डॉ. काधिरवन शन्मुग्नाथन ने बताया कि जब इन गेंयूल्स का उपयोग खेतों में किया जाता है तो इसमें मौजूद स्टार्च पानी को सोखकर फूल जाता है और इस तरह रसायनों का रिसाव नियंत्रित ढंग से होता है। इस प्रणाली में उपयोग किए गए ó के अपशिष्टों के सूक्ष्म रेशों (सेल्युलोज नैनो-फाइबर्स) की वजह से इसकी क्षमता काफी बढ़ जाती है। सिर्फ स्टार्च का उपयोग करने पर डीएमपी के रिलीज होने की शुरुआती दर अधिक होती है और करीब आधी डीएमपी रिलीज हो जाने के बाद यह दर धीरे-धीरे कम होने लगती है। शन्मुग्नाथन ने बताया कि सेल्युलोज नैनो-फाइबर युक्त इस नई प्रणाली में डीएमपी के रिलीज होने की दर शुरू में कम होती है और 90 प्रतिशत तक डीएमपी रिलीज हो जाती है। सेल्युलोज फाइबर्स के जल को सोखने की प्रकृति के कारण ऐसा होता है। नैनो फाइबर स्टार्च ग्रेनेयूल्स के छिद्रों के आकार और डीएमपी रिलीज को नियंत्रित करते हैं।

PRELIMINARY

MAINS-PAPER 1-GEOGRAPHY,3-AGRICUTURE,FARMER INCOME

  • EDITORIAL

1.विकास को चाहिए और अधिक रफ्तार

          RATING AGENCY AND INDIA

  • विश्व की अग्रणी क्रेडिट रेटिंग एजेंसी फिच ने भारत की रेटिंग को जिस तरह 12 वर्ष बाद भी नहीं बदला उससे देश के नीति-नियंताओं को चिंतित होना चाहिए।जीएसटी जैसा व्यापक कदम उठाने और दीवालिया कानून बनाने के बाद भी फिच ने भारत की रेटिंग में बदलाव की जरूरत क्यों नहीं महसूस की? हालांकि फिच ने भारत के विकास में स्थायित्व देखते हुए यह आकलन किया है कि इस वित्त वर्ष में विकास दर 7.8 फीसद रहेगी, लेकिन रेटिंग बदलने के पीछे उसने जो तर्क दिए उसकी सरकार के आर्थिक रणनीतिकार अनदेखी नहीं कर सकते। फिच का मानना है कि भारत की राजकोषीय कमजोरी रेटिंग सुधार में बाधा बन रही है। उसके अनुसार चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में जीएसटी संग्रह कम रहने और आगामी चुनावों के मद्देनजर खर्च पर नियंत्रण में कठिनाई से राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के 3.3 प्रतिशत पर रखने के लक्ष्य को हासिल करने में परेशानी आएगी। फिच का यह भी मानना है कि अन्य देशों की तुलना में भारतीय अर्थव्यवस्था कुछ संरचनात्मक कमजोरी प्रदर्शित कर रही है।सरकार के प्रयासों से भारत ने विश्व बैंक की कारोबारी सुगमता संबंधी सूची में एक ऊंची छलांग लगाई है, लेकिन विदेशी निवेश में अभी भी अपेक्षित वृद्धि नहीं हो पा रही है। इस पर गंभीरता से विचार होना चाहिए कि एक बड़ा बाजार होते हुए भी विदेशी कंपनियां भारत में निवेश के लिए तेजी से आगे क्यों नहीं रही हैं?

         INITIATIVE OF GOI

  • दीवालिया कानून प्रभावी अवश्य है, लेकिन उसके जरिये एनपीए की आंशिक वसूली ही हो पा रही है। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि फिच का यह मानना है कि कर्ज कारोबार में वृद्धि कम होने से बैंकिंग और गैर बैंकिंग वित्तीय क्षेत्र के लिए समस्याएं बढ़ेंगी। सरकार को इन समस्याओं से पार पाना होगा और साथ ही यह भी ध्यान रखना होगा कि देशी-विदेश निवेश में वृद्धि के बगैर तो उद्योग-धंधों में तेजी आने वाली है और ही रोजगार के उतने नए अवसर पैदा होने वाले हैं जितने आवश्यक हैं। भारत मौजूदा विकास दर से संतुष्ट नहीं हो सकता, क्योंकि इस विकास दर से करोड़ों गरीबों को गरीबी रेखा से ऊपर नहीं लाया जा सकता। दरअसल यह बात सभी दलों को समझनी होगी कि भारत जैसे विकासशील देश जहां पर गरीब और मध्यम वर्ग की तादाद बहुत बड़ी है वहां आर्थिक क्षेत्र में हालात पूरी तरह बदलने के लिए अभी लंबा रास्ता तय करना बाकी है। गरीबी उन्मूलन के लिए सरकार को सामाजिक योजनाओं में कहीं अधिक पैसा खर्च करने की जरूरत है। बात चाहे शिक्षा के क्षेत्र की हो या स्वास्थ्य के क्षेत्र की हो या फिर कृषि या उद्योग-व्यापार के क्षेत्र की, इन सभी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर निवेश की आवश्यकता है और पर्याप्त निवेश तब संभव होगा जब आर्थिक विकास दर नौ-साढ़े नौ प्रतिशत की दर से आगे बढ़े और वह लंबे समय तक कायम भी रहे। इसके लिए आर्थिक नीतियों पर राजनीतिक आम सहमति के साथ ही यह भी जरूरी है कि भारत और उसके आसपास शांति का माहौल रहे।

DEVLOPMENT AND PEACE

  • क्षेत्रीय और वैश्विक शांति तभी संभव है जब भारत के साथ अन्य देश भी उसके प्रति प्रतिबद्ध भी हों। इस मामले में केवल चीन का रवैया ही चिंताजनक नहीं है जिसकी विस्तारवादी नीतियों से उसके तमाम पड़ोसी देश त्रस्त हैं। चीन की तरह ही अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश जिस तरह पाकिस्तान की आतंकवाद को पालने-पोसने वाली नीतियों की अनदेखी कर रहे हैं उससे दक्षिण एशिया में शांति की उम्मीद नहीं की जा सकती और यदि दक्षिण एशिया में शांति नहीं आती तो उससे अन्य देशों के साथ भारत भी प्रभावित होगा और इसका असर देश के आर्थिक परिदृश्य पर भी पड़ेगा।

CHALLENGES OF NEIGHBOUR

  • आज भारत को चीन और पाकिस्तान की ओर से पेश की जा रही चुनौतियों का सामना करने के लिए अपने सैन्य साधनों पर कहीं अधिक धन खर्च करना पड़ रहा है। बेहतर हो कि विश्व के प्रमुख देश जो दक्षिण एशिया अथवा पूर्वी एशिया में शांति की वकालत करते हैं वे उन देशों के प्रति सख्ती दिखाएं जो शांति के लिए खतरा हैं।संयुक्त राष्ट्र की तमाम कोशिशों के बाद भी दुनिया में गरीबी उन्मूलन का अभियान गति नहीं पकड़ पा रहा है तो इसके लिए प्रमुख राष्ट्र ही उत्तरदायी हैं। वे खुद तो सैन्य साजो-सामान पर अपना खर्च बढ़ा ही रहे हैं, विकासशील देशों को भी इसके लिए विवश कर रहे हैं।

POVERTY AND UNO

  • यह तेज गति से विकास का सिलसिला कायम हो पाने का ही परिणाम है कि संयुक्त राष्ट्र मानव विकास सूचकांक में भारत कहीं पीछे है। संयुक्त राष्ट्र मानव विकास सूचकांक के पैमाने को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखा जाए तो भारत अभी उन पैमानों को बमुश्किल छूता भर है। जब सामाजिक सुधारों और निर्धनता निवारण की योजनाओं में आज जितना धन खर्च हो रहा है उसका दो-तीन गुना खर्च करने की स्थिति बने। आज सामाजिक सुधारों और जन कल्याण के लिए जितना धन चाहिए उतना नहीं मिल पा रहा है तो इसीलिए कि भारत की आर्थिक विकास दर दुनिया में सबसे तेज होने के बाद भी वांछित जरूरतों को पूरा करने के हिसाब से कम है।

POLITICAL WILL

  • गरीबी निवारण के लिए उच्च विकास दर आवश्यक है। इस उच्च विकास दर की चिंता केवल सत्तारूढ़ दल को ही नहीं, अन्य राजनीतिक दलों को भी करनी होगी, क्योंकि तभी वह माहौल बन पाएगा जिसमें देश का तेजी से उद्योगीकरण भी संभव हो पाएगा और कृषि क्षेत्र का उत्थान भी।

2.वृहद, वित्तीय नियामकीय स्तर पर तालमेल जरूरी

    BANKING & FINANCE

  • चा महीने पहले मैंने एक आलेख में वृहद आर्थिक घटनाओं और उससे संबंधित दबावों को लेकर कुछ चेतावनी दी थीं। इनमें बढ़ती तेल कीमतों तथा अंतरराष्टï्रीय कारोबारी जंग के नकारात्मक प्रभाव और भारत समेत कुछ उभरते देशों में पूंजी की आवक बंद होने के साथ-साथ देश की वृहद आर्थिक स्थिति में मध्यम अवधि में आने वाली कुछ बड़ी कमजोरियों की बात शामिल थीं। इस आलेख में मैंने खासतौर पर देश के सरकारी बैंकों में लंबे समय से चले रहे संकट और विदेश व्यापार में भारी गिरावट की बात भी कही थी जो काफी हद तक देश के वस्तु निर्यात में आए ठहराव की वजह से था। ये दोनों कारक आज भी देश की वृहद आर्थिक स्थिरता पर दबाव बनाए हुए हैं। केंद्र और राज्य का सम्मिलित राजस्व घाटा अब जीडीपी के 7 फीसदी के स्तर पर है। छोटे उपक्रमों और असंगठित क्षेत्र के उत्पादन, रोजगार और निर्यात पर नोटबंदी ने बुरा असर डाला है। बीते कुछ महीनों में दो नए विपरीत हालात पैदा हुए हैं जिन्होंने देश के आर्थिक प्रबंधकों की चिंता बढ़ा दी है।

           IL&FS

  • इनमें पहली घटना है इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग ऐंड फाइनैंशियल सर्विसेज (आईएलऐंडएफएस) समूह द्वारा ऋण अदायगी के कई मामलों में चूक कर जाना। इस महत्त्वपूर्ण समूह में कुल मिलाकर 350 कंपनियां हैं। इन चूकों की वजह से समूह की एएए श्रेणी की रेटिंग कुछ ही सप्ताह में गिरकर जंक श्रेणी में गई। समूह पर करीब 90,000 करोड़ रुपये से ऊपर का कर्ज है ऐसे में वित्तीय क्षेत्र को इसने बड़ा झटका दिया है। अन्य गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) पर इसका असर दिखने भी लगा है। उनमें से कई को अब अपना काम चलाने के लिए धन जुटाना मुश्किल हो रहा है। यही कारण है कि आवास वित्त कंपनियों समेत एनबीएफसी का ऋण जो हाल के वर्षों में 25 प्रतिशत सालाना तक की दर से बढ़ रहा था और बैंकिंग ऋण के एक चौथाई के बराबर हो गया था, उसमें दोबारा गिरावट आने लगी है। इसका असर आर्थिक गतिविधियों पर भी पड़ा है। इनमें से कई अब मध्यम और लंबी अवधि के ऋण की जरूरतों को पूरा करने के लिए अल्पावधि के ऋण ले रही हैं। एनबीएफसी क्षेत्र में काफी दबाव है।

IMAGE CRACK SBI-LIC

  • आईएलऐंडएफएस से मची उथलपुथल ने जीवन बीमा निगम और भारतीय स्टेट बैंक जैसे इसमें स्वामित्व रखने वाले संस्थानों की प्रतिष्ठा और क्षमता पर भी कीचड़ उछालने का काम किया है। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी, सांविधिक अंकेक्षक और नियामक, रिजर्व बैंक आदि सभी इस दायरे में हैं। आरबीआई ने आईएलऐंडएफएस फाइनैंशियल सर्विसेज लिमिटेड नामक एक प्रमुख अनुषंगी एनबीएफसी को 5,000 करोड़ रुपये से अधिक के बकाया ऋण और निवेश के साथ लगातार तीन वित्त वर्ष तक काम करने दिया। यह स्वयं आरबीआई के दिशानिर्देश के मुताबिक तय सीमा से 20 गुना अधिक है।

     GOI ACTION

  • नुकसान को कम करने और कामकाज जारी रखने के लिए 1 अक्टूबर को सरकार ने दखल दिया और आईएलऐंडएफएस के पुराने बोर्ड को भंग करके वरिष्ठ बैंक उदय कोटक की अध्यक्षता में एक नया बोर्ड गठित किया। बहरहाल, यह समूह जितने बड़े पैमाने पर काम करता है, जितना जटिल इसका ढांचा है और यह अतीत में जिस अस्पष्टता से काम करता आया है उसे देखते हुए यह सवाल बरकरार है कि नुकसान पर कब और कितना नियंत्रण किया जा सकेगा? दूसरी नकारात्मक घटना है सरकार और आरबीआई के बीच का सार्वजनिक विवाद। यह अत्यंत खतरनाक बात है। भारत समेत कई देशों में सरकार और केंद्रीय बैंक के बीच एक हद तक टकराव देखने को मिलता है। यह भी मानना होगा कि सरकार और आरबीआई के बीच सहयोग के लंबे दौर भी हमने देखे हैं। इस दौरान तमाम आर्थिक, बैंकिंग और वित्तीय सुधार सामने आए और देश संकट से उबरने में कामयाब रहा। उदाहरण के लिए मैं सन 1991 से 2008 के बीच के वर्षों की याद दिलाना चाहूंगा। दोनों के बीच लाभदायक सहयोग के चार तत्त्व हैं: वित्त मंत्रालय की शीर्ष टीम और आरबीआई के बीच निरंतर और करीबी संवाद, प्रधानमंत्री कार्यालय का सहयोग और उसकी सक्रिय भूमिका, यदाकदा असहमति के बावजूद प्रमुख लोगों के बीच साझा मान की भावना और आरबीआई की स्वायत्तता कायम रखने को लेकर सरकार की पूर्ण प्रतिबद्धता।

   RBI &MEDIA

  • फिलहाल दोनों के बीच जो दूरी नजर रही है और जो मीडिया तथा अन्य माध्यमों से सार्वजनिक हुई है, वह कतई उचित नहीं है। ऐसे हालात रातोरात नहीं बने हैं। इसकी पृष्ठभूमि दो वर्ष से तैयार हो रही थी। इस दौरान ऊपर वर्णित सकारात्मक चीजें कम होती गईं जबकि कुछ अन्य जटिल चीजें जुड़ती चली गईं। इनमें सरकारी बैंकों की खस्ता हालत, एनबीएफसी के ऋण को लेकर उपजी नई चुनौतियां, आरबीआई के शीर्ष नेतृत्व की संचार की कमी, सरकार के राजकोष पर बढ़ता दबाव, रोजगार वृद्धि में धीमेपन के स्पष्ट संकेत, कमजोर बाहरी क्षेत्र और आसन्न चुनाव आदि शामिल रहे। इस लिहाज से देखें तो सरकार आरबीआई के मुद्रा भंडार का इस्तेमाल करना चाहती है। आरबीआई इसके खिलाफ है और वित्तीय स्थिरता के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को देखते हुए इसे समझा जा सकता है।

  • अगर वित्त मंत्रालय और आरबीआई के बीच निरंतर संवाद कायम रहता तो अब तक किसी किसी प्रकार का समझौता हो जाता। अभी भी ऐसा हो जाए तो यह अर्थव्यवस्था और देश के लिए बेहतर होगा। बहरहाल, कई प्रमुख मुद्दों पर औपचारिक पत्रों के आदान-प्रदान के बाद आरबीआई अधिनियम की धारा 7 का उल्लेख हुआ, 23 अक्टूबर को आरबीआई की बैठक बेनतीजा रही और 26 अक्टूबर को आरबीआई के डिप्टी गवर्नर ने एक अत्यंत मुखर भाषण देते हुए आरबीआई की स्वायत्तता में सरकार के हस्तक्षेप के खिलाफ चेतावनी दी। इससे किसी भी समुचित नतीजे पर पहुंचना मुश्किल हो गया। 19 नवंबर को आरबीआई की अगली बैठक में और भी काफी कुछ हो सकता है। अंदाजा लगाएं तो आरबीआई गवर्नर के इस्तीफे, आरबीआई बोर्ड का सरकार की मांग को मान लेना या सरकार द्वारा औपचारिक रूप से धारा 7 का प्रयोग करना तथा अनिच्छुक होने पर भी आरबीआई का उसे मानने पर बाध्य होना आदि कई नतीजे देखने को मिल सकते हैं। वैश्विक अस्थिरता और वृहद आर्थिकी पर पड़ रहे दबाव के बीच यह कोई बहुत सकारात्मक स्थिति नहीं है।

  • वृहद आर्थिकी, वित्तीय और नियामकीय मुद्दों का यह मिश्रण काफी घातक है। इससे अहम चुनावों के पहले देश के आर्थिक और राजनीतिक प्रबंधकों के समक्ष कड़ी चुनौती उत्पन्न हो गई है। वे इन चीजों से कैसे निपटते हैं इस पर ही देश में उत्पादन, आय और रोजगार वृद्धि का भविष्य निर्भर करता है।

3.रेटिंग एजेंसियों की रेटिंग

  SEBI.

  • भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने पारदर्शिता एवं जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए पिछले दो वर्षों में क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के खुलासे से संबंधित सख्त नियम जारी किए हैं। पिछले हफ्ते घोषित नए मानक भी इसी प्रक्रिया का हिस्सा हैं और इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग ऐंड फाइनैंशियल सर्विसेज (आईएलऐंडएफएस) संकट का नतीजा है। इस संकट के सामने आने के बाद आईएलऐंडएफएस की रेटिंग महज 45 दिनों में ही निवेश योग्य 'एएए' से गिराकर 'डी' कर दी गई। तीव्र गिरावट ने इस समूह के बॉन्ड खरीदने वाले निवेशकों और म्युचुअल फंडों को भी प्रभावित किया। इस वाकये के बाद आमराय यही बनी कि रेटिंग एजेंसियां आईएलऐंडएफएस समूह की एक अनुषंगी इकाई के भुगतान में चूक करने के बाद खतरे के बारे में चेतावनी देने का अपना काम पूरा कर पाने में नाकाम रहीं।
  • सेबी ने अब रेटिंग की समीक्षा के दौरान एजेंसियों से जारीकर्ता की तरलता स्थिति में आई गिरावट का विश्लेषण करने और परिसंपत्ति एवं देनदारी के बीच असंतुलन का ध्यान रखने को कहा है। रेटिंग एजेंसियों को परिपक्वता अवधि संबंधी बाध्यताओं पर खरा उतरने के लिए बाह्य समर्थन के किसी भी संबंध का खुलासा करने के अलावा तरलता पर एक विशेष खंड भी जारी करना होगा। इससे तरल निवेश या नकदी संतुलन, गैर-प्रयुक्त ऋण सीमा तक पहुंच, तरलता कवरेज अनुपात और ऋण बाध्यता को पूरा करने के लिए पर्याप्त नकद प्रवाह जैसे मानकों का पता चल पाएगा। निवेशकों को रेटिंग के ऐतिहासिक प्रदर्शन के बारे में बताने के लिए एजेंसियों को विभिन्न रेटिंग श्रेणियों से परे रेटिंग संक्रमण की औसत दरों के बारे में बताना होगा। सेबी ने कहा है कि अगर एक अनुषंगी कंपनी को मूल कंपनी या सरकार से कोई मदद मिलती है तो रेटिंग एजेंसी को समयबद्ध कर्ज भुगतान में मदद करने वाली मूल कंपनी या सरकार का उल्लेख करना होगा।

  • ये खुलासे पारदर्शिता लाने में मदद करेंगे लेकिन इसकी संभावना कम है कि समुचित निवारक उपाय के बगैर ये संकट की पुनरावृत्ति को रोक पाएं। इस समस्या के केंद्र में 'जारीकर्ता भुगतान करता है' मॉडल है। इस मॉडल में हितों के टकराव का मुद्दा भी शामिल है क्योंकि रेटिंग एजेंसियों की तरफ से जारी रेटिंग को देखकर निवेशक पैसे लगाते हैं लेकिन इन एजेंसियों को जारीकर्ता कंपनियां ही रेटिंग शुल्क एवं अन्य सेवाओं के मद में भुगतान करती हैं। हालांकि रेटिंग एजेंसियां कहती हैं कि उनके रेटिंग एवं गैर-रेटिंग व्यवसाय में फर्क के लिए पर्याप्त बंदोबस्त होते हैं लेकिन इससे सवाल तो खड़े होते ही हैं। इससे बचने का एक तरीका यह हो सकता है कि लापरवाही या दोषपूर्ण रेटिंग के चलते निवेशकों को नुकसान होने पर उन्हें मुआवजा देने के प्रावधान को लेकर रेटिंग एजेंसियों की कानूनी जवाबदेही बढ़ाई जाए। इसके लिए समुचित उपाय करने होंगे क्योंकि रेटिंग एजेंसियां ऐसे किसी भी कानून को इस आधार पर चुनौती दे सकती हैं कि वे महज आकलन पेश करती हैं। सुधारों के पैकेज के एक हिस्से के तौर पर इस समस्या से निपटना समझदारी होगी। इनमें रेटिंग एजेंसियों को ऑडिट फर्मों की तरह मानकर ग्राहकों की संख्या को सीमित करना और हरेक तीन साल पर रेटिंग एजेंसी बदलने को अनिवार्य करना जैसे प्रावधान किए जा सकते हैं।

  • सुधार पैकेज में रेटिंग एजेंसियों के लिए अपना रेटिंग कारोबार अन्य गतिविधियों से पूरी तरह अलग करने का भी प्रावधान रखा जाना चाहिए ताकि हितों के संघर्ष से बचा जा सके। सेबी को इस सुझाव पर भी गौर करना चाहिए कि नियामकों को रेटिंग एजेंसियों की मंजूरी के लिए एक अलग केंद्रीकृत प्लेटफॉर्म बनाना चाहिए। अधिक खुलासे होने से एक हद तक मदद मिल सकती है लेकिन उससे जमानत पर गिरवी रखने के ढांचे से जुड़ी समस्या का शायद ही समाधान निकलेगा।

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