29 October Newspaper Summary

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THECOREIAS

NEWSPAPER SUMMARY 29 October

1. मोदी और एबी की मुलाकात से संबंधों को मिली नई ऊंचाई

  • जापान दौरे पर पहुंचे प्रधानमंत्री और जापान के प्रधानमंत्री की मुलाकात से दोनों देशों के संबंधों को नई ऊंचाई मिली है। दोनों नेताओं के हावभाव और व्यवहार में गर्मजोशी साफ दिख रही थी। पीएम बनने के बाद से मोदी और एबी के बीच यह 12वीं मुलाकात है।
  • जापान के पीएम एबी ने यामानशी के होटल माउंट फुजी में मोदी का स्वागत किया।
  • प्रधानमंत्री मोदी 13वें भारत-जापान वार्षिक बैठक में हिस्सा लेने पहुंचे हैं।
  • जापान रवाना होने से पहले अपने संदेश में मोदी ने कहा था कि आर्थिक और प्रौद्योगिकी के आधुनिकीकरण में भारत के लिए जापान सबसे भरोसेमंद भागीदार है।
  • पिछले कुछ वर्षो में जापान के साथ रिश्तों में व्यापक बदलाव हुआ है।

Mains:  Paper II (International Relation)

2. श्रीलंका में दो पीएम, संकट गहराया

Use: Paper II (India and Neighbourhood Relation)

3. पाकिस्तान ने कश्मीर में कराई 1चार स्नाइपरों की घळ्सपैठ

  • नियंत्रण रेखा और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर भारतीय सैनिकों को स्नाइपरों से निशाना बनाने वाला पाकिस्तान अब स्नाइपर गन का इस्तेमाल कश्मीर के भीतरी हिस्सों में करवाने लगा है
  • स्नाइपर आतंकि  बड़ी चुनौती

Use: Paper II (Internal security)

4. खनन निगल गया अरावली की दस से अधिक पहाड़ियां

  • अरावली पहाड़ी क्षेत्र के साथ की गई छेड़छाड़ का खामियाजा पूरा एनसीआर भुगत रहा है। वायु प्रदूषण का स्तर दिन प्रतिदिन बढ़ने के पीछे एक मुख्य कारण अरावली पहाड़ी की हरियाली में कमी है।
  •  वैध और अवैध खनन की वजह से क्षेत्र की 10 से अधिक पहाड़ियां गायब हो गईं। इनमें से कुछ पहाड़ियों का नामोनिशान तक नहीं बचा है।
  • सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद भी अवैध खनन हो रहा है। आठवें दशक तक अरावली पहाड़ी क्षेत्र हरियाली का प्रतीक था। हर तरफ वन्य जीव दिखाई देते थे। कभी इलाके में बाघ भी थे।
  • अब तेंदुआ, लकड़बग्घा, हिरण, नील गाय, खरगोश सहित कुछ प्रकार के वन्य जीव ही रह गए हैं।
  • शहरीकरण की आंधी तेज होने का सबसे अधिक खामियाजा अरावली पहाड़ी क्षेत्र को भुगतना पड़ा। भू-माफियाओं से लेकर खनन माफियाओं ने जमकर क्षेत्र का दोहन किया।
  • अरावली पहाड़ी क्षेत्र वन क्षेत्र घोषित है, इसके बाद भी अनुमान के मुताबिक 15 हजार एकड़ से अधिक भूमि पर गैर वानिकी कार्य कर दिए गए। न केवल सैंकड़ों फार्म हाउस बन चुके हैं बल्कि स्कूल, गोशाला आदि काफी संख्या में बन चुके हैं।
  • यही नहीं कई सोसायटी तक विकसित कर दी गईं। इसकी वजह से हरियाली काफी कम हो गई। वैध एवं अवैध खनन की वजह से भी काफी हरियाली खत्म हो गई। साथ ही भूमिगत जल स्तर पर भी पाताल में चला गया।1होडल से लेकर नारनौल तक कई पहाड़ी गायब : अरावली पहाड़ी क्षेत्र की 10 से अधिक छोटी पहाड़ियां गायब हो चुकी हैं। होडल के पास पूरी पहाड़ी खनन की वजह से गायब हो गई। नारनौल में नांगल दरगु के नजदीक पहाड़ी खत्म हो गई। सोहना से आगे दो से तीन पहाड़ियां गायब हो गईं।
  •  अरावली की वजह से ही बार-बार भूकंप आने के बाद भी विशेष असर नहीं दिखाई देता। अरावली पहाड़ी क्षेत्र काफी ठोस है। पर्यावरण कार्यकर्ताओं का मानना है कि यदि अरावली पहाड़ी क्षेत्र के संरक्षण पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया गया तो दिल्ली-एनसीआर के लोगों को सांस लेना मुश्किल हो जाएगा।
  • साथ ही भूकंप से भारी नुकसान हो सकता है।खनन करके अरावली पहाड़ी क्षेत्र में 10 से अधिक पहाड़ियों का लगभग नामोनिशान मिटा दिया गया। 15 हजार एकड़ से अधिक भूमि पर गैर वानिकी कार्य कर दिए गए। इसके बाद भी शासन-प्रशासन गंभीर नहीं। समय रहते ध्यान नहीं दिया गया तो वह दिन दूर नहीं जब दिल्ली-एनसीआर के हर व्यक्ति को सांस लेने के लिए साथ में उपकरण लेकर चलना होगा।

Use: Paper III (Environment)

Prelims: Delhi & Pollution

5. खतरे में बुग्यालों की दुर्लभ वनस्पति

  • हिमालयी बुग्यालों (मखमली घास के मैदान) में भी जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं।
  • डीआरडीओ दिल्ली के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. एसपी सिंह के शोध में यह बात सामने आई है। शोध के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण अब बुग्यालों में भी निचले क्षेत्र के पेड़ उगने लगे हैं।
  •  इससे बुग्यालों में पाई जाने वाली दुर्लभ वनस्पतियां खतरे की जद में आ गई हैं। इस पर ठोस कार्ययोजना बनाकर ही रोक लगाई जा सकती है।
  •  पहले मानवीय दखल के चलते बुग्यालों की दुर्लभ वनस्पति खतरे की जद में थी, लेकिन अब बुग्यालों में उगने वाले निचले क्षेत्र के पेड़-पौधों ने वहां संपूर्ण परिवेश के लिए खतरा पैदा कर दिया है।
  • Geographical location: समुद्रतल से नौ हजार से 12 हजार फीट से अधिक ऊंचाई पर स्थित बुग्यालों में दुर्लभ औषधीय वनस्पतियां पाई जाती हैं। ये कई तरह की असाध्य बीमारियों के उपचार में काम आती हैं। अब इन वनस्पतियों का अस्तित्व भी मौसम परिवर्तन के कारण खतरे में पड़ गया है। इससे वहां पाए जाने वाले वन्य जीवों की दिनचर्या पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। अगर इसी तेजी के साथ निचले क्षेत्र को पेड़-पौधे बुग्यालों में उगते रहे तो बुग्यालों का अस्तित्व मिटने में देर नहीं लगने वाली।

Mains: Paper III (Ecology)

Prelims: बुग्याल

6. मोबाइल और इंटरनेट से बढ़ती दोस्ती डाल रही हमारे रिश्तों के बीच दरार

  • जिंदगी में बढ़ती मोबाइल और इंटरनेट की दखलंदाजी रिश्तों में दरार डाल रही है। खाना खाने का समय हो या सोने से पहले का।
  • हमेशा हाथ में मोबाइल और इंटरनेट सफिर्ंग हमारी आदत बन चुकी है। इसी इंटरनेट सिंड्रोम की वजह से सात जन्मों तक बंधने वाले बंधन की डोर टूट रही है। एक साथ पूरा जीवन बिताने के वादे करने वाले couple पल भर में एक-दूसरे से अलग होने का निर्णय ले रहे हैं।
  •  ऐसा भी नहीं है कि यह किसी एक वर्ग में हो रहा है। यह ज्यादातर घरों की कहानी बन गई है। आए दिन ऐसे मामले सामने आने से मनोवैज्ञानिक व मनोचिकित्सक भी हैरान हैं।
  • Mains: Paper III (Society)

7.भारत-अमेरिका सब्सिडी विवाद पर डब्ल्यूटीओ ने किया समिति का गठन

  • निर्यात सब्सिडी की कुछ योजनाओं पर संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएसए) और भारत के बीच
  • वार्ता स्तर पर विवाद नहीं सुलझने के बाद विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की विवाद निपटारा शाखा ने एक समिति गठित कर दी है।

Background:

अमेरिका ने भारत की कुछ निर्यात प्रोत्साहन योजनाओं पर लगाए गए आरोपों की जांच के लिए विवाद समिति गठित करने की मांग की थी। इस वर्ष मार्च में अमेरिका ने निर्यात सब्सिडी को लेकर भारत के खिलाफ डब्ल्यूटीओ की विवाद निपटारा प्रक्रिया में शिकायत की थी। अमेरिका का आरोप है कि भारत के इन प्रोत्साहनों से अमेरिकी कंपनियों को नुकसान हो रहा है।

मर्चेडाइज एक्सपोर्ट्स फ्रॉम इंडिया स्कीम जैसी भारत की निर्यात सब्सिडी योजनाओं को अमेरिका ने डब्ल्यूटीओ में चुनौती दी है। अमेरिका का कहना है कि इन योजनाओं के कारण असमान परिस्थितियां पैदा होती हैं, जिनसे अमेरिकी कंपनियों को नुकसान होता है। वार्ता प्रक्रिया के दौरान अमेरिका ने आरोप लगाया था कि भारत ने सब्सिडी देना जारी रखा है और इनका आकार और दायरा भी बढ़ा दिया है। दूसरी ओर भारत ने इस बात पर नाराजगी जताई थी कि अमेरिका ने इस मामले में समिति गठित करने का अनुरोध किया। गौरतलब है कि डब्ल्यूटीओ के तहत वार्ता की मांग करना विवाद निपटारा प्रक्रिया का पहला कदम है। यदि दो देश वार्ता प्रक्रिया के जरिए समझौते पर नहीं पहुंच पाते हैं, तो शिकायतकर्ता मामले की जांच के लिए डब्ल्यूटीओ के तहत विवाद निपटारा समिति के लिए अनुरोध कर सकता है।

डब्ल्यूटीओ में क्या हैं एम्बर बॉक्स व ग्रीन बॉक्स?

विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की शब्दावली में सब्सिडी को रोड ट्रैफिक लाइट के रंगों की तर्ज पर तीन बॉक्स - ग्रीन, एम्बर और रेड के रूप में पहचाना गया है।

  • Green Box: लाइट जब ग्रीन होती है तो आपको ट्रैफिक सिग्नल पार करने की अनुमति होती है। ठीक इसी तरह डब्ल्यूटीओ में भी सब्सिडी का एक ‘ग्रीन बॉक्स’ है। इसका मतलब यह हुआ ‘ग्रीन बॉक्स’ में शामिल सब्सिडी को जारी रखा जा सकता है। डब्ल्यूटीओ का मानना है कि ऐसी सब्सिडी जारी रहने से व्यापार में बाधा उत्पन्न नहीं होगी, इसलिए इसे जारी रखा जा सकता है। घरेलू खाद्य मदद, शोध, अनुसंधान व प्रशिक्षण के लिए अनुदान और पर्यावरण संरक्षण के लिए सहायता इसी श्रेणी में आते हैं। सरकारों पर ऐसी सब्सिडी देने पर कोई रोक नहीं है।
  • Amber Box: ट्रैफिक की दूसरी लाइट एम्बर कलर (पीलेपन के साथ नारंगी रंग) की होती है। एम्बर लाइट का मतलब होता है गति धीमी करना। इसी तर्ज पर डब्ल्यूटीओ में सब्सिडी का एम्बर बॉक्स रखा गया है जिसका मतलब है कि इस बॉक्स में आने वाली सब्सिडी को धीरे-धीरे कम करना है। मिनिमम सपोर्ट प्राइस (एमएसपी) और उत्पादन की मात्र बढ़ाने से संबंधित सब्सिडी एम्बर बॉक्स में आती हैं। एम्बर बॉक्स में शामिल मदों में सब्सिडी के लिए एक सीमा तय की गयी है जिसे ‘डी मिनिमिस’ कहते हैं। इसका मतलब यह है कि ‘डी मिनिमिस’ से ऊपर की सब्सिडी को घटाना है। विकसित देशों को एम्बर बॉक्स के तहत आने वाले मदों की सब्सिडी घटाकर वर्ष 1986-88 के दौरान उनके कृषि उत्पादन स्तर के पांच प्रतिशत तथा विकासशील देशों में 10 प्रतिशत तक लानी हैं। अमेरिका, जापान, आस्ट्रेलिया और ब्राजील सहित डब्ल्यूटीओ के 32 सदस्य देश हैं, जिन्हें एम्बर बॉक्स की सब्सिडी कम करनी है।
  • Red Box: ट्रैफिक की तीसरी लाइट रेड होती है। जहां रेड सिग्नल होता है वहां से आगे जाने की इजाजत नहीं होती। ठीक इसी तरह डब्ल्यूटीओ के ‘रेड बॉक्स’ में शामिल सब्सिडी को जारी रखने की अनुमति नहीं होती। हालांकि कृषि पर डब्ल्यूटीओ का जो समझौता है उसमें ‘रेड बॉक्स’ का प्रावधान नहीं है। 1डब्ल्यूटीओ में सब्सिडी की एक और श्रेणी है जिसे ब्लू बॉक्स कहते हैं। ये ऐसी सब्सिडी हैं जो उत्पादन से संबंधित होती हैं। एम्बर बॉक्स की तरह । फर्क बस इतना है कि इसके तहत कुछ शर्ते लगा दी जाती हैं ताकि व्यापार में बाधा को कम किया जा सके। उदाहरण के लिए सब्सिडी पाने वाले किसानों को यदि उत्पादन सीमित करना है तो उसके तहत आने वाली सब्सिडी ब्लू बॉक्स में आएगी।

Other Subsidies to Developing world

इसके अलावा विकासशील देशों के लिए ‘एसएंडडी बॉक्स’ या डेवलपमेंट बॉक्स के रूप में सब्सिडी के संबंध में छूट दी गयी है। इसमें विकासशील देशों में कृषि के लिए दी जाने वाली निवेश सब्सिडी शामिल है। साथ ही गरीब किसानों को अवैध नार्कोटिक्स फसलों को छोड़कर दूसरी फसलें उगाने के लिए दी जाने वाली सब्सिडी भी इसमें शामिल है।

Mains: Paper II & III (WTO, India US Relation)

Prelims: WTO (Dispute Settlement Mechaism)

8. Pollution

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Use: Paper III (Ecology)

EDITORIALS

1. निर्णायक साबित होने वाली दोस्ती

एशिया के सबसे संपन्न-समृद्ध लोकतंत्र और सबसे बड़े लोकतंत्र उस ‘मुक्त एवं Open Indo Pacific रणनीति’ के अहम हिस्से हैं जिसे अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप शासन मजबूती से आगे बढ़ा रहा है। वास्तव में तो एबी ही इस रणनीति के असल शिल्पकार हैं जिसकी अवधारणा उन्होंने औपचारिक रूप से दो साल पहले नैरोबी में अफ्रीकी नेताओं को संबोधित करते हुए सामने रखी थी।

Indo Pacific  Policy of USA

आज Indo Pacific  क्षेत्र में विधिसम्मत, मुक्त व्यापार, आवाजाही की आजादी और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान के लिए उपयुक्त ढांचा बनाने के लिहाज से जापान और भारत उसकी अहम धुरी हैं। Indo Pacific  क्षेत्र को ‘मुक्त एवं स्वतंत्र’ क्षेत्र बनाने के लिए ट्रंप शासन भारत-जापान संबंधों के महत्व को सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर चुका है। ट्रंप की Indo Pacific  नीति उनके पूर्ववर्ती ओबामा की एशिया केंद्रित नीति का ही नया रूप है। ओबामा ने 2011 में इसे पेश किया था जिसे बाद में ‘एशियाई पुर्नसतुलन’ का नाम दिया गया। अमेरिका को लगा कि उसने पश्चिम एशिया पर जरूरत से ज्यादा ध्यान दिया और अब इस नीति को सुधारने की दरकार है। अब अमेरिका अपने दीर्घकालिक हितों के लिए एशिया की अहमियत पर फिर से ध्यान केंद्रित कर रहा है।

Competition in Indo Pacific

  • एशियाई सुरक्षा Competition मुख्य रूप से सामुद्रिक मोर्चे पर ही चल रही है। ‘Indo Pacific   शब्द का बढ़ता चलन भी इसे दर्शाता है जो Indo  & Pacific  जैसे दो महासागरों के मिलन का भी प्रतीक है। इस क्षेत्र में भू-आर्थिक प्रतिस्पर्धा भी जोर पकड़ रही है जिसमें दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाएं, बढ़ता सैन्य खर्च और नौसैनिक क्षमताएं, प्राकृतिक संसाधनों को लेकर गलाकाट प्रतिस्पर्धा और कुछ खतरनाक इलाके शामिल हैं।
  • इस तरह देखें तो वैश्विक सुरक्षा और नई विश्व व्यवस्था की कुंजी INDIAN Ocean -प्रशांत क्षेत्र के हाथ में ही है। दरअसल Indian Ocean-शांत क्षेत्र को और व्यापक बनाकर अमेरिका एक तरह से चीन की बेल्ट एंट रोड इनिशिएटिव जैसी योजना की काट तलाश रहा है जिसमें चीन का भारी निवेश Indian Ocean महासागर की परिधि में पड़ने वाले देशों में ही हो रहा है।

Indian Ocean Strategic Arena of China

  • जिबूती में तैयार चीन के पहले विदेशी नौसैनिक अड्डे और मालदीव के कई निर्जन द्वीपों पर उसके काबिज होने के बाद महासागर भी बीजिंग का भू-सामरिक अखाड़ा बनता जा रहा है।
  • इससे पहले वह दक्षिण चीन सागर में कई कृत्रिम द्वीप बनाकर उनका सैन्यीकरण करने में सफल रहा है।

India Japan Collaboration

 प्रधानमंत्री मोदी के जापान दौरे के दूसरे दिन कई अहम समझौतों पर हस्ताक्षर होने हैं। इसमें साङोदारी के जरिये नौसैनिक मोर्चे पर जागरूकता बढ़ाने वाला करार भी शामिल है। जापानी और भारतीय सेनाओं के लिए लॉजिस्टिक यानी सैन्य तंत्र साङोदारी अनुबंध होना है। पहले इसे एक्विजिशन एंड क्रॉस सर्विसिंग एग्रीमेंट यानी एसीएसए का नाम दिया गया था। यह दोनों सेनाओं के लिए बेहद जरूरी हो गया है, क्योंकि वे कई दांव एक साथ आजमा रही हैं जिनमें त्रिस्तरीय सैन्य अभ्यास भी एक है। इसमें अमेरिकी नौसेना भी शामिल होती है जिसे Indian Ocean और शांत महासागर में अंजाम दिया जाता है।

1भारत के साथ एसीएसए करार से Indian Ocean महासागर में जापान की बढ़ती नौसैनिक शक्ति को स्थायित्व मिलेगा। इसमें जापानी पोतों को भारतीय नौसैनिक ठिकानों पर ईंधन और मरम्मत कराने की सुविधा मिलेगी। वहीं जापानी सामुद्रिक आत्मरक्षा बल यानी जेएमएसडीएफ को भी अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में भारतीय नौसैनिक सुविधाओं की सौगात मिलेगी जो मलक्का जलडमरूमध्य के पश्चिमी द्वार के काफी नजदीक स्थित है। जापान और चीन का काफी व्यापार और तेल आयात का एक बड़ा हिस्सा इसी मार्ग से गुजरता है।

एबी के शासन में सेना पर कई कानूनी एवं संवैधानिक ावधानों को कुछ नरम बनाया गया है। इससे जापानी नौसेना की भूमिका का दायरा बढ़ा है। अब वह जापानी तटों से दूर भी सक्रियता से संचालन कर सकती है। वास्तव में संयुक्त सैन्य अभ्यास से लेकर सैन्य शिक्षण के जरिये क्षेत्रीय सुरक्षा में भागीदारी को लेकर जापान का नया उत्साह उसे Indian Ocean-शांत क्षेत्र में बदलते भू-सामरिक समीकरणों का एक मुख खिलाड़ी बनाता है।

भारत ने अमेरिका और फ्रांस के साथ भी सैन्य ढांचे वाला अनुबंध किया हुआ है। इन दोनों के भी Indian Ocean और शांत महासागर में अहम सैन्य ठिकाने हैं। ऐसे में जापान के साथ सैन्य ढांचे की साङोदारी वाला करार और व्यापक द्विपक्षीय नौसैनिक सहयोग भारतीय नौसेना को पश्चिमी शांत महासागर में अपनी पैठ बनाने में मदद करेगा। भारत और जापान का न तो इतिहास में कोई टकराव रहा है और न ही किसी महत्वपूर्ण रणनीतिक मुद्दे पर उनमें असहमति है इस लिहाज से दोनों स्वाभाविक साङोदार के रूप में ही नजर आते हैं जिनके परस्पर हित जुड़े हुए हैं।

 वास्तव में जापान ही इकलौता ऐसा देश है जिसे भारत के कुछ संवेदनशील इलाकों में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर काम करने की अनुमति है। इनमें पूवरेत्तर और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह शामिल हैं। अगर जापान और भारत अपने रिश्ते में सुरक्षा से संबंधित कुछ ठोस पहलू जोड़ते हैं तो उनकी रणनीतिक साङोदारी एशिया में बाजी पलटने वाली साबित हो सकती है। व्यापार एवं निवेश पर जितना जोर दिया जा रहा है उसे व्यापक रणनीतिक सहयोग के साथ संतुलित किया जाना चाहिए।

Need to sharpen Strategic Relation

भारत में जापान के राजदूत केंजी हीरामत्सू भी कहते हैं कि अब सामरिक भागीदारी को बढ़ाने की दरकार है। 1शी चिनफिंग के साथ एबी की हालिया बैठक और अैल में मोदी के साथ बैठक इस तथ्य की अनदेखी नहीं कर सकतीं कि भारत और जापान चीन की गंभीर चुनौती का सामना कर रहे हैं।

यह व्यापार, तकनीक एवं अन्य मोर्चो पर ट्रंप का चीन पर दबाव ही है जिसने चिनफिंग को मोदी और एबी जैसे नेताओं से संपर्क करने को विवश किया। चिनफिंग को उम्मीद है कि जब अमेरिका की चीन नीति में बुनियादी रूप से बदलाव हो रहा है तो उसे जापान का वैसा ही साथ मिलेगा जैसे उसने 1989 में थियानमेन चौक पर छात्रों के नरसंहार को लेकर फंसे चीन का दिया था। तब चीन पर लगे आर्थिक तिबंधों को हटाने वाला जापान शुरुआती देशों में एक था। चीन के साथ रिश्तों को लेकर अब जापान भी व्यावहारिक नजरिये वाला हो गया है। वहीं भारत भी किसी भ्रम में नहीं है कि चिनफिंग के नेतृत्व में चीन हेकड़ी छोड़कर अच्छा पड़ोसी बनने जा रहा है।

इस परिदृश्य में एबी-मोदी वार्ता कई मुद्दों पर सहयोग बढ़ाने का एक अवसर है जिसमें दोनों देश Indian Ocean-शांत क्षेत्र में रणनीतिक संतुलन, शक्ति स्थायित्व एवं सामुद्रिक सुरक्षा में परस्पर योगदान पर चर्चा कर सकते हैं। जहां तक वाशिंगटन की बात है तो दक्षिण चीन सागर में बदलते हालात से निपटने के लिए उसे स्पष्ट नीति की दरकार है, क्योंकि ‘स्वतंत्र एवं मुक्त Indian Ocean-शांत क्षेत्र’ की अवधारणा को मूर्त रूप देने के लिए यह बेहद अहम रणनीतिक गलियारा है

 2. इंटरनेट पर बढ़ती निर्भरता

Some facts

  • बात अगर आंकड़ों की करें तो आज दुनिया की आधी आबादी तक इंटरनेट की पहुंच है और भारत में करीब 500 मिलियन लोग इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं।

जरा कल्पना कीजिए दुनिया में अगर इंटरनेट न होता तो क्या होता? न तो सोशल मीडिया होता और न ही दुनिया इतनी ग्लोबल हो पाती जितनी आज है। न ही हम मिस्न की क्रांति को जान पाते और ही भारत के सुदूर गांव में बैठा आदमी अन्ना हजारे के आंदोलन को समझ पाता। हमारी मॉर्डन सोसायटी में लड़का हो या लड़की सुबह उठकर सबसे पहले अपने मोबाइल में फेसबुक और ट्विटर को ही चेक करते हैं। आज के दौर में अगर इंटरनेट को समाज के लिए ऑक्सीजन कहा जाए तो कुछ भी गलत नहीं होगा।

Start of Internet era

49 वर्ष पहले आज ही के दिन अंतरराष्ट्रीय इंटरनेट दिवस की शुरुआत हुई थी। दरअसल अमेरिकी रक्षा विभाग ने सेना के लिए एक कंप्यूटर नेटवर्क तैयार किया था ताकि परमाणु युद्ध शुरू होने की स्थिति में सूचना का आदान-प्रदान आसानी से किया जा सके। तब इसे इंटरनेट अरपानेट के रूप में जाना जाता था। चार्ली क्लाइन दुनिया के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने 29 अक्टूबर, 1969 को पहली बार इलेक्ट्रॉनिक संदेश प्रेषित किया था।

  • 1972 में रे टॉमलिंसन ने इंटरनेट का इस्तेमाल कर पहला ईमेल भेजा था। वर्ष 1989 में टिम बेर्नर ली ने इंटरनेट पर संचार को और सरल बनाने के लिए ब्राउजरों, पन्नों और लिंक का उपयोग करके वर्ड वाइड वेब बनाया था।

India & Internet

  • हालांकि हमारे देश में इंटरनेट की शुरुआत वर्ष 1995 को तब हुई जब विदेश संचार निगम लिमिटेड ने अपनी टेलीफोन लाइन के जरिये दुनिया के अन्य कंप्यूटरों से भारतीय कंप्यूटरों को जोड़ दिया।
  • वह दौर था साइबर कैफे का, जो कि शहरों में इक्का-दुक्का ही हुआ करते थे। ऐसा इसलिए, क्योंकि तब देश में इंटरनेट व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिए नहीं था।
  •  वक्त बदला और डेस्कटॉप सस्ते होने लगे, जिसके चलते इंटरनेट भी लोगों के घरों तक पहुंचना शुरू कर दिया। आज के सर्वसुलभ समाज में हमारे हाथ में इंटरनेट आ चुका है।
  • हम अपने स्मार्टफोन पर कभी भी इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। वहीं जियो के आगमन के बाद सस्ते इंटरनेट ने तो हर उस आदमी को सोशल मीडिया पर ला दिया है, जो कि पहले सिर्फ इंटरनेट का नाम भर जानता था।

पूरे विश्व को एक गांव में तब्दील करने का काम यकीनन इंटरनेट ने ही किया है। मेट्रो शहरों में रहने वाले लोगों के लिए रोटी, कपड़ा और मकान के बाद अगर कोई अन्य बुनियादी जरूरत है तो वह बेशक इंटरनेट ही है। यह इंटरनेट ही है जिसने अखबारों, किताबों और किराने के दुकानों में खरीदारी एवं होटलों में जाकर खाना खाने के चस्के को कम कर दिया है। अब पढ़ने से लेकर खाने तक सबकुछ ऑनलाइन हो चुका है। यानी आपको इन कामों के लिए अपने बिस्तर से हिलने की भी जरूरत नहीं। आपको बस अपना मोबाइल उठाना होगा और एक क्लिक में आपका सारा काम हो जाएगा। ऐसे में कहा जा सकता है कि अगर हमारी लाइफ में इंटरनेट न होता तो हम न सिर्फ अपने देश से, बल्कि दुनिया से भी अनजान रहते।

3. आरटीआइ पर मंडराता खतरा

सूचना का अधिकार कानून (आरटीआइ) जब अक्टूबर 2005 में लागू हुआ तो यह नागरिक सशक्तिकरण के एक सशक्त हथियार के रूप में सामने आया। इससे लोकतंत्र को मजबूत करने की संभावनाएं बढ़ गई थीं। इसके जरिये उच्च स्थानों में अनियमितताओं का पर्दाफाश होने लगा और कॉमनवेल्थ गेम्स के आयोजन, 2जी स्पैक्ट्रम व कोयला ब्लॉक्स आवंटन में घोटाले सामने आए।

 लेकिन जल्द ही नेताओं की समझ में आ गया कि यह उनके हित में नहीं है। शायद इसीलिए सरकार इसके प्रावधानों को कमजोर करने का निरंतर प्रयास कर रही है। हैरानी यह कि विपक्ष भी इस विषय पर एकदम खामोश है और इस सरकारी प्रयास का न तो वह विरोध कर रहा है और न ही इसे मुद्दा बना रहा है, क्योंकि लगता है कि भविष्य में उसके सत्ता में आने पर उसे भी इसका लाभ मिलेगा।  कहा जा सकता है कि इस समय आरटीआइ कानून के समक्ष बहुआयामी चुनौतियां हैं।

  • इसमें कोई दो राय नहीं है कि अपने मूल रूप में आरटीआइ कानून कई कारणों से अप्रत्याशित था, लेकिन तब भी उसने सूचना आयोगों को अपने निर्णय लागू करने के लिए पर्याप्त शक्तियां नहीं दी थीं।
  • प्रार्थी को अगर कोई नुकसान हुआ है तो उसे मुआवजा अवार्ड करने के अतिरिक्त आयोग जनाधिकारियों को निर्देश दे सकते हैं कि इस कानून के तहत आवश्यक कदम उठाए जाएं, लेकिन अगर ऐसे निर्देशों को नजरअंदाज कर दिया जाए तो आयोग असहाय है।
  • यह सही है कि अगर अधिकारी अपना कर्तव्य निर्वाह नहीं करता है तो आयोग उस पर अधिकतम 25,000 रुपये का जुर्माना कर सकता है या उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही की सिफारिश कर सकता है। लेकिन यह डर केवल तभी काम करता है, जब सूचना का संबंध निचले स्तर से हो। जब सूचना उच्च सरकारी स्तर से संबंधित होती है तो अक्सर यह डर अप्रभावी हो जाता है। अत: आयोगों के निर्णयों को लागू करना हमेशा से ही समस्या रही है, जो वर्तमान अधिक चिंताजनक हो गई है।

Recent Amendment & Future of RTI

 आरटीआइ कानून में जो हाल में संशोधन प्रस्तावित किए गए हैं, वे आयोगों के हाथ मजबूत करने की बजाय उन्हें और कमजोर कर देंगे। प्रस्ताव है कि केंद्रीय सूचना आयुक्तों को चुनाव आयुक्तों के समतुल्य न रहने दिया जाए।

  • यह धारणा तर्करहित है कि स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव कराना लोकतंत्र में पारदर्शिता से अधिक महत्वपूर्ण है। सरकार ने यह भी प्रस्ताव रखा है कि सूचना आयुक्तों की वर्तमान पांच वर्ष की निश्चित कार्यावधि को समाप्त कर दिया जाए और उसके स्थान पर सरकार द्वारा निर्धारित कार्यावधि हो। इससे आयुक्तों का कार्यकाल सरकारी मेहरबानी के रहमोकरम पर रहेगा, जिससे सूचना आयोगों की स्वतंत्रता व प्राधिकरण प्रभावित होंगे।
  • आरटीआइ कानून ने निजता व पारदर्शिता के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास किया कि उस व्यक्तिगत सूचना को उजागर नहीं किया जाएगा, जिसका किसी सार्वजनिक गतिविधि से संबंध नहीं है या जो अनावश्यक रूप से प्राइवेसी में हस्तक्षेप करती हो। लेकिन जस्टिस श्रीकृष्णा समिति ने एक संशोधन प्रस्ताव रखा है जो ‘नुकसान’ की परिभाषा का विस्तार करता है, उस व्यक्तिगत जानकारी की भी गोपनीयता बनाता है जो स्पष्टत: किसी सार्वजनिक गतिविधि से जुड़ी हुई हो
  • केंद्रीय और राज्य सूचना आयोगों में अधिकतम 11 सदस्यों की नियुक्ति का प्रावधान है। लेकिन इन आयोगों में बहुत कम सदस्यों से काम चलाया जा रहा है, क्योंकि सरकार इस तरफ ध्यान नहीं देती। मसलन केंद्रीय सूचना आयोग (सीआइसी) में फिलहाल सात सदस्य हैं और अगर अतिरिक्त नियुक्तियां नहीं की गईं तो वर्ष के अंत तक मात्र तीन सदस्य ही रह जाएंगे। इससे मामलों के निपटारे में देरी होती है और उच्च न्यायालयों में भी बैकलॉग बढ़ जाता है, जहां आयोग के अनेक निर्णयों को चुनौती दी जाती है। मसलन सीआइसी ने वर्ष 2007 में इंद्रप्रस्थ गैस लिमिटेड को आरटीआइ कानून के तहत लाने का आदेश दिया, जिस पर दिल्ली हाई कोर्ट ने स्टे लगा दिया जो आज तक जारी है।
  • आरटीआइ व्यवस्था में गतिरोध का एक कारण अर्जियों की अधिकता भी है। अक्सर सार्वजनिक संस्थाओं के असंतुष्ट कर्मचारी बेतुके व गैर-जरूरी जानकारी हासिल करना चाहते हैं। दुर्भाग्य से उनके प्रार्थना-पत्र भी अनेक आरटीआइ एक्टिविस्टों के सवालों के साथ मौजूद रहते हैं, जिन्होंने अक्सर अपनी जान को खतरे में डालकर अच्छा काम किया होता है। आरटीआइ कानून की धारा चार के तहत यह प्रावधान है कि प्रत्येक सार्वजनिक अधिकारी बहुत सारी जानकारी अपने आप ही उपलब्ध करा दे। लेकिन इस तरह सूचना का मिलना संतोषजनक नहीं रहा है। इसलिए सीआइसी को बैंकिंग सेक्टर के व्यवस्थापकों को नियमित रूप से निर्देश देने पड़े कि वह बैंकों की अनियमितताओं की जानकारी सार्वजनिक करें।
  • एक मामले में सीआइसी को निर्देश देना पड़ा कि उन प्राइवेट व्यक्तियों की सूची सार्वजनिक की जाए जो प्रधानमंत्री के साथ विदेशी दौरों पर सरकारी खर्च पर गए थे। यह जानकारी सरकार को अपने आप ही देनी चाहिए थी। लेकिन जब आरटीआइ कानून को कमजोर करने का ही प्रयास हो तो कोई अधिकारी इस संदर्भ में अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह क्यों करेगा?

RTI a big tool of empowerment

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