मलिमथ समिति

Government has decided to revisit recommendation made by Malimmath committee .The Committee on Reforms of the Criminal Justice System, or the Justice Malimath Committee, was constituted by the Home Ministry in 2000 by then Deputy Prime Minister L.K. Advani, who also held the Home portfolio.

  • न्याय प्रणाली में सुधार के विभिन्न पहलुओं पर विचार के लिए न्यायमूर्ति वी.एस. मालिमथ की अध्‍यक्षता में 24 नवम्बर, 2000 को यह समिति गठित की गई थी.
  • इसमें अन्तर्राज्यीय व अन्तर्राष्ट्रीय अपराधों से निपटने के लिए संघीय कानून लाने, बलात्कारियों के लिए आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान करने, महिलाओं पर अत्याचार संबंधी अपराधों को जमानती अपराधों की श्रेणी में रखने व नए पुलिस कानून के लिए राष्ट्रीय पुलिस आयोग गठित करने आदि की सिफारिशें शामिल हैं.
  • समिति ने सजा ए मौत के बजाए बलात्कारी को आजीवन कारावास की सिफारिश की है। समिति ने केन्द्र को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में कहा है कि बलात्कारियों को मौत की सजा दिए जाने की वकालत करने वाले महसूस कर रहे हैं कि दोषियों के लिए सजा के मौजूदा प्रावधान इस अपराध पर रोक लगाने में विफल रहे हैं।
  •  सत्य की खोज के लिए अदालतों, पुलिस और अभियोजन पक्ष को गत्यात्मक एवं स्वयं-सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए अर्थात न्यायालय को सिर्फ दोनों पक्ष के अधिवक्ताओं की बहररो पर ही विचार नहीं करना चाहिए, बल्कि अपराध की तह तक जाने के लिए अभियुक्तो तथा गवाहों से प्रश्न पूछे जाने चाहिए अभी तक अभियुक्त को सजा देने की शर्त यह है कि यह बुद्धिसंगत संदेह से परे सिद्ध होना चाहिए कि अभियुक्त ने अपराध किया है
  • महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों से जुडे मामलों को जमानती अपराध की श्रेणी मे रखा जाए । समिति का मानना हे कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498-अ के तहत महिला के विरुद्ध उसके पति या परिवारीजनों द्वारा किए गए अत्याचारो एवं उत्पीड़न से जुडे अपराध चूँकि गैर-जमानती अपराधो की श्रेणी में आते है । इसलिए इन मामलो का निपटारा सौहार्दपूर्ण तरीके से नहीं हो पाता
  • गठित अपराधों एवं आतंकवाद से निपटने हेतु सारे देश के लिए एक जैसा कानून बनाया जाए
  • . अन्तर्राष्ट्रीय अपराधों से निपटने हेतु वर्तमान कानूनों में संशोधन करके उन्हें संयुक्त राष्ट्र संघ के समझौतों के अनुरुप किया जाए ।
  • सभी राज्यों में सम्पदा बरामदगी अभिकरण का गठन किया जाए और बोहरा समिति द्वारा सुझाए गए इस अभिकरण को सांविधिक शक्तियाँ प्रदान करते हुए राष्ट्रीय प्राधिकरण का दर्जा प्रदान किया जाए ।

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