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दिल्ली में लाभ के पद से जुड़े मामले में केजरीवाल सरकार के 20 विधायकों की सदस्यता ख़त्म हो गई है| ये मामला साल 2015 के मार्च महीने से चल रहा है जब अरविंद केजरीवाल ने अपने 21 विधायकों को संसदीय सचिव के पद पर नियुक्त किया था.
आख़िर क्या होता है 'लाभ का पद' (Office of profit)?
'लाभ के पद' का मतलब उस पद से है जिस पर रहते हुए कोई व्यक्ति सरकार की ओर से किसी भी तरह की सुविधा लेने का अधिकारी हो.
अगर इसके सिद्धांत और इतिहास की बात करें तो इसकी शुरुआत ब्रितानी कानून 'एक्ट्स ऑफ़ यूनियन, 1701' में देखी जा सकती है.
इस क़ानून में कहा गया है कि अगर कोई भी व्यक्ति राजा के अधीन किसी पद पर कार्यरत रहते हुए कोई सेवा ले रहा है या पेंशनभोगी है तो वह व्यक्ति हाउस ऑफ़ कामंस का सदस्य नहीं रह सकता.
ब्रिटेन में यह संसदीय परंपरा है कि सांसदों को लाभ के पद पर बैठने की अनुमति नहीं है. जब भी वहां कोई नया पद बनाया जाता है, उसके बारे में बाकायदा कानून बना कर स्पष्ट किया जाता है कि वह लाभ का पद है या नहीं. लेकिन भारत में इस परंपरा को तो अपनाया गया पर लाभ के पद की परिभाषा को अस्पष्ट छोड़ दिया गया. 1959 में बने एक कानून में उन पदों की एक सूची है जिन्हें लाभ का पद नहीं माना गया है. यानी जो पद इस सूची में शामिल नहीं हैं, उन्हें लाभ का पद माना जा सकता है.
भारतीय संविधान की बात करें तो संविधान के अनुछेद 191 (1)(ए) के मुताबिक़, अगर कोई विधायक किसी लाभ के पद पर पाया जाता है तो विधानसभा में उसकी सदस्यता अयोग्य क़रार दी जा सकती है.
विशेषज्ञों के मुताबिक़, संविधान में ये धारा रखने का उद्देश्य विधानसभा को किसी भी तरह के सरकारी दबाव से मुक्त रखना था. क्योंकि अगर लाभ के पदों पर नियुक्त व्यक्ति विधानसभा का भी सदस्य होगा तो इससे प्रभाव डालने की कोशिश हो सकती है.
Why Office of Profit Clause
लाभ के पद के बारे में वर्तमान व्यवस्था के पीछे तर्क यह है कि सांसदों या विधायकों की स्वतंत्रता की हिफाजत की जाए ताकि कोई भी सरकार उन्हें लाभ के पद देकर उपकृत न कर सके और उनके स्वतंत्र निर्णय लेने के क्षमता को प्रभावित न कर सके. लाभ का पद देकर कोई भी दल उन सदस्यों का असंतोष भी दूर कर सकता है जो मंत्री बनने से रह गए हैं. केजरीवाल ने स्पष्टतः यही किया था जिसका खमियाजा उन्हें अब भुगतना पड़ रहा है. 20 विधायक कम होने से भी उनकी सरकार की स्थिरता पर तो कोई आंच नहीं आने वाली लेकिन उससे उनकी नैतिक सत्ता पर अवश्य आंच आ रही है.
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