AFSPA के अंत की शुरुआत?

 

केंद्र सरकार द्वारा सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून यानी AFSPA को मेघालय से पूरी तरह हटा लेना एवं अरुणाचल प्रदेश में भी इसे सिर्फ तीन जिलों के आठ पुलिस थानों तक सीमित करना बहुत बड़ी घटना है। AFSPA खत्म करने के लिए देश में लंबे समय से कई स्तरों पर आंदोलन चलता रहा है।
मणिपुर से इसे खत्म करने के लिए तो इरोम शर्मिला ने सबसे लंबे अनशन का रिकॉर्ड बना दिया। जिस सरकार के बारे में धारणा है कि यह कड़े कानूनों तथा सुरक्षा बलों को संरक्षित कानूनों के तहत कार्रवाई में पूरी स्वतंत्रता देने का समर्थक है, उसके दौर में ऐसा निर्णय कुछ लोगों को अचंभित कर रहा है। सरकार ने 2015 में त्रिपुरा से भी अफ्स्पा हटा दिया था।

MCQ DISCUSSION PART 1

तब से केंद्रीय गृह मंत्रालय पूर्वोत्तर के सारे राज्यों की कानून-व्यवस्था की लगातार समीक्षा करता रहा है। सितंबर, 2017 आते-आते मेघालय में अफ्स्पा 40 प्रतिशत क्षेत्र तक सिमट गया था। अरुणाचल प्रदेश में भी 2017 में यह केवल 16 थानों में ही प्रभावी था।afspa

  • पूर्वोत्तर हो या जम्मू-कश्मीर-उग्रवादी-आतंकवादी घटनाओं में वृद्धि के कारण जब स्थिति नियंत्रण से बाहर हुई, तो उन्हें अशांत क्षेत्र घोषित कर अफ्स्पा लागू किया गया।
  • पर आज पूर्वोत्तर के त्रिपुरा और मिजोरम में उग्रवाद का सफाया हो चुका है, मेघालय एवं अरुणाचल में स्थिति काफी नियंत्रण में है, तो नगालैंड, असम और मणिपुर में सुरक्षा हालात में सुधार हुआ है।

A good Move

  • कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी स्थानीय पुलिस की है। यदि लंबे समय तक यह दायित्व सेना एवं अर्धसैनिक बलों को निभाना पड़े, तो यह खतरनाक स्थिति है। अफ्स्पा की धारा 4 सुरक्षा बलों को किसी भी परिसर की तलाशी लेने और बिना वारंट किसी को भी गिरफ्तार करने का अधिकार देता है और विवादित इलाकों में सुरक्षा बल किसी भी स्तर तक शक्ति का इस्तेमाल कर सकते हैं। तलाशी या गिरफ्तारी के लिए उन्हें वारंट की जरूरत नहीं होती।
  • अगर किसी को सेना की कोई कार्रवाई गलत लगती है, तो वह उसके खिलाफ तब तक मुकदमा नहीं कर सकता, जब तक केंद्र इसकी अनुमति न दे। इस कानून से भयावह स्थितियों में उग्रवादियों-आतंकवादियों या ऐसे दूसरे खतरों से जूझ रहे जवानों को कार्रवाई में सहयोग के साथ सुरक्षा भी मिलती है। पर 1990 के बाद जब से यह ज्यादा प्रभावी एवं विस्तारित हुआ है, इसका विरोध भी हुआ है।
  • आरोप लगते हैं कि कानूनी संरक्षण का लाभ उठाकर सेना आम नागरिकों के साथ भी अन्याय करती है। सुरक्षा बलों पर मानवाधिकार के दमन का आरोप लगा है। खैर, पूर्वोत्तर में इसके अंत की शुरुआत हो गई है।
  • किसी भी स्थिति में अफ्स्पा को लंबे समय तक जारी नहीं रखा जाना चाहिए। लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह आपात स्थिति का कानून है। इसलिए पूर्वोत्तर में सुरक्षा स्थिति में ठोस सुधार के साथ इसे धीरे-धीरे समाप्त करना लोकतंत्र में स्वाभाविक नागरिक शासन की महत्ता को स्वीकार करना है। इसलिए इसे चरणबद्ध ढंग से खत्म करने का स्वागत किया जाना चाहिए।

Download this article as PDF by sharing it

Thanks for sharing, PDF file ready to download now

Sorry, in order to download PDF, you need to share it

Share Download