सेना का पर्याप्त आधुनिकीकरण नहीं करने को लेकर एक संसदीय समिति ने केंद्र सरकार को फटकार लगाई है. मेजर जनरल बीसी खंडूरी (रिटायर्ड) की अध्यक्षता में सुरक्षा को लेकर संसद की स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट दी.
- इस रिपोर्ट में सेना के उचित आधुनिकीकरण के लिए पर्याप्त धन मुहैया नहीं कराने और रक्षा खरीदारी में तेजी नहीं दिखाने के लिए केंद्र सरकार की आलोचना की गई है.
- समिति का कहना है कि मौजूदा समय में चीन और पाकिस्तान की तरफ से साफ खतरा होने के बावजूद सेना को आधुनिक हथियारों से लैस करने में सुस्ती दिखाई जा रही है.
साल 2017-18 के बजट में सेना, नौसेना और वायु सेना के लिए केवल दो लाख 74 हजार करोड़ रुपये रखे गए थे जो कि कुल जीडीपी का केवल 1.56 प्रतिशत है. 1962 में चीन से हुए युद्ध के बाद सेना को दिया गया यह सबसे कम धन है. तीनों सेनाओं की तरफ से आधुनिकीकरण के लिए धन की मांग की गई थी. लेकिन सरकार ने सेना के लिए केवल 60, नेवी के लिए 67 और वायुसेना के लिए 54 प्रतिशत रकम ही मुहैया कराई.
समिति ने चिंता जाहिर की है कि सेनाओं को फंड नहीं देने से सैन्य अभियानों की तैयारी पर प्रतिकूल और व्यापक प्रभाव पड़ेगा. समिति का कहना है कि रक्षा मंत्रालय द्वारा सेनाओं के लिए दिए गए धन को ठीक तरीके से खर्च नहीं किए जाने से स्थिति बदतर होती जा रही है. उसके मुताबिक फंड का उपयोग नहीं करना रक्षा मंत्रालय की योजनाओं में कमी की ओर इशारा करता है. साथ ही फंड का असफल उपयोग वित्त मंत्रालय की तरफ से की जा रही कटौती की वजह बन रहा है.
भारतीय वायुसेना को दो मोर्चों (चीन-पाकिस्तान) पर अपनी स्थिति मजबूत रखने के लिए लड़ाकू विमानों के 45 दस्तों की जरूरत है. हरेक दस्ते में 18 से 21 विमान होते हैं. लेकिन वायुसेना को मौजूदा 33 दस्तों के साथ ही काम चलाना पड़ रहा है. 2027 तक इन दस्तों की संख्या घटकर 19 रह जाएगी. पिछले साल सितंबर में सरकार ने 59 हजार करोड़ रुपये का राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद का सौदा किया था. इस सौदे के तहत 36 राफेल विमान भारतीय वायु सेना में शामिल होंगे. लेकिन इससे भी मौजूदा मांग पूरी नहीं होगी. दूसरी तरफ, नौसेना के पास भी केवल 13 पारंपरिक डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियां हैं. इनमें हाल में नेवी में शामिल हुई आईएनएस कलावरी को छोड़कर बाकी पनडुब्बियां 17 से 32 साल पुरानी हैं.