चीन की आक्रामक नीति से निपटने की चुनौती

Recent Context: LAC  & INDIA CHINA
 
भारत और चीन के बीच की वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) एक बार फिर सीमा पर होने वाली झड़पों से अशांत है। दोनों देशों की सेनाएं वर्ष 2015 के बाद संभवत: सबसे अधिक तनाव पर हैं। बातचीत के जरिये इस तनाव को खत्म करने की कोशिशें अभी तक कारगर नहीं हुई हैं और किसी भी पक्ष के झुकने के लिए तैयार नहीं होने से यह तनाव और बढऩे का खतरा भी है।
  • रक्षा मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, चीनी घुसपैठ में खासी बढ़ोतरी हुई है, खासकर लद्दाख में तो अप्रैल महीने तक घुसपैठ के करीब 130 मामले दर्ज किए गए हैं।
  • भारतीय क्षेत्र में स्थित गलवान नदी इलाके में एक सड़क बनाने पर चीन के एतराज जताने के बाद से ही दोनों देशों की सेनाएं पूर्वी लद्दाख में आमने-सामने खड़ी हैं।

STATEMENT FROM CHINESE SIDE
चीन के विदेश मंत्रालय ने 'जरूरी प्रतिरोधी उपायों' की चेतावनी देते हुए कहा 'हम चीन-भारत सीमा क्षेत्र में शांति एवं सद्भाव बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं। लेकिन इसके साथ हम अपनी मातृभूमि की संप्रभुता एवं सुरक्षा को अक्षुण्ण रखने के लिए भी प्रतिबद्ध हैं।'

LOCUS & FOCUS OF THE PROBLEM

  • चीन-भारत की सीमा पूरी तरह निर्धारित नहीं है और एलएसी को लेकर विरोधाभासी रुख रहते हैं।
  • यह भी सच है कि मध्यवर्ती क्षेत्र को छोड़कर किसी भी अन्य इलाके के बारे में दोनों देशों ने अपने-अपने रुख को लेकर नक्शों का आदान-प्रदान भी नहीं किया है।
  • इस वजह से व्यावहारिक स्तर पर चुनौतियां खड़ी हुई हैं क्योंकि दोनों देशों के सैनिक स्पष्टता न होने से सीमावर्ती इलाकों को अपना बताते हुए दूसरे पक्ष को चुनौती देते रहते हैं।
  • इसका नतीजा यह होता है कि स्थानीय अस्थिरता दशकों से इस क्षेत्र के लिए एक स्थायी भाव बन चुकी है। लेकिन हाल के वर्षों में सीमा संघर्ष काफी हद तक रोजमर्रा की बात हो चुके हैं, वैसे ज्यादातर मामले स्थानीय ही होते हैं और सेना के कमांडर रैंक के अधिकारी के स्तर पर ही निपटा लिए जाते हैं। वर्ष 2017 में सिक्किम-भूटान सीमा पर स्थित डोकलाम में दोनों देशों की सेनाओं के बीच 73 दिनों तक चली तनातनी ने भारतीय नीति-निर्माताओं को एक तरह से नींद से जगाने का काम किया कि चीन को हल्के में नहीं लिया जा सकता है।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीधे चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग से संपर्क साधते हुए इस मसले से निपटने की कोशिश की। मोदी और चिनफिंग की अप्रैल 2018 में वुहान में हुई अनौपचारिक शिखर वार्ता में दोनों देशों की सेनाओं को सीमा मामलों पर सामरिक मार्गदर्शन देकर संवाद बेहतर करने का जिक्र आया था। दोनों देशों ने अपनी सेनाओं को दोनों पक्षों के बीच विश्वास बहाली के उपायों पर बनी सहमति के आधार पर फौरन कदम उठाने को भी कहा था। इसमें द्विपक्षीय एवं समान सुरक्षा के सिद्धांत का ध्यान रखने के साथ ही सीमावर्ती इलाकों में तनाव रोकने के लिए मौजूदा संस्थागत व्यवस्थाओं को मजबूत करने और सूचनाएं साझा करने पर भी जोर दिया गया था।

वुहान बैठक ने चीन एवं भारत के तेजी से खराब होते रिश्तों को थामने में काफी मदद की थी लेकिन इसकी वजह से सीमा पर किसी तरह की स्थिरता लाने में कोई मदद नहीं मिली।

सीमा पर होने वाली झड़पों के लिए कई कारकों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। सीमा को लेकर अलग सोच से जुड़ी समस्याएं हैं। इसके अलावा भारत ने अपने इलाके में ढांचागत निर्माण पर जोर दिया है लिहाजा चीनी सेना को अब उन जगहों पर भी भारतीय सैनिक नजर आने लगे हैं जहां वे पहले पहुंच नहीं पाते थे। पहले की तुलना में भारतीय सेना की गश्त भी अधिक असरदार हुई है जिससे चीनी टुकडिय़ों को पीछे हटना पड़ता है। भारतीय सीमा में चीनी घुसपैठ के मामले बढऩे का एक मतलब यह भी है कि सीमांत मुद्दों को लेकर चीन अधिक आक्रामक हुआ है।

FACTOR OF COVID

  • भारत और चीन के बीच कोरोनावायरस संकट जारी रहने के दौरान भी सीमा पर तनाव बढऩे का संबंध चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) के बाहरी दुनिया के साथ संपर्क को लेकर कायम व्यापक रवैये से भी जुड़ा है।
  • कोविड महामारी के प्रसार के शुरुआती दौर में चीन के व्यवहार को लेकर दुनिया भर में फैली नाराजगी के बावजूद सीपीसी सीमा संबंधी मामलों को लेकर अपने कमजोर पड़ोसियों पर सैन्य ताकत का प्रदर्शन करने में लगा हुआ है। वहीं भारत दुनिया के कई देशों से उठ रही उस मांग के पक्ष में खड़ा होता दिख रहा है जिसमें कोरोनावायरस के उद्गम की किसी स्वतंत्र जांच कराने और विश्व स्वास्थ्य संगठन में प्रेक्षक के तौर पर ताइवान को फिर से जगह देने की बात कही जा रही है। ऐसी स्थिति में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी भारत को रोकने के लिए सीमा विवाद का मसला उठाने की कोशिश करेगी।

अमेरिका ने चीन के बरताव को लेकर उसे चुनौती भरे अंदाज में धमकाया है। दक्षिण एवं मध्य एशियाई मामलों की प्रमुख उप सहायक विदेश मंत्री एलिस वेल्स ने कहा है कि चीन के काम करने के अंदाज में एक पद्धति है। एलिस ने चीन के अनवरत आक्रामक रुख का प्रतिरोध जरूरी बताते हुए पुरजोर जवाब देने का आह्वान किया है, जैसे कि दक्षिण चीन सागर में भारत के साथ साझा सैन्य अभ्यास किया है। अमेरिकी कांग्रेस को सौंपी गई रिपोर्ट 'चीनी जनवादी गणराज्य के प्रति संयुक्त राज्य का सामरिक नजरिया' भी इस सोच को रेखांकित करती है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 'चीन अपने बयानों के उलट काम करता है और पीला सागर, पूर्व चीन एवं दक्षिण चीन सागर, ताइवान की खाड़ी एवं भारत-चीन सीमा पर अपने पड़ोसी देशों के साथ उकसावे एवं बाध्यकारी सैन्य एवं अद्र्धसैनिक कार्रवाइयों में उलझा रहता है।'

भारत के लिए अब यह अपरिहार्य हो गया है कि चीन के आचरण के दुष्प्रभावों का आकलन महज द्विपक्षीय सांचे के आधार पर नहीं बल्कि एक वैश्विक शक्ति के रूप में चीन की भूमिका को भी समाहित करते हुए करे। संभव है कि मौजूदा सीमा विवाद को तात्कालिक रूप से शांत कर दिया जाए लेकिन जब तक चीनी कम्युनिस्ट पार्टी देश के राजनीतिक ढांचे में राष्ट्रवाद की भावना के संचार के लिए सैन्य ढांचे का इस्तेमाल करने के अंदरूनी दबाव में रहती है, भारत के पास अपनी आंतरिक ताकत बढ़ाकर और अधिक मजबूत बाह्य साझेदारी कर अपनी क्षमता बढ़ाने की दिशा में काम करने के सिवाय कोई चारा नहीं है।

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Reference: business-standard.com

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