ईरान के साथ संबंधों में भारत के लिए जितनी संभावनाएं हैं, उतनी ही चुनौतियां भी हैं

Recent agreements with Iran

पिछले हफ्ते ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच कई समझौते हुए हैं. इनमें भारत की मदद से बन रहे चाबहार बंदरगाह को लेकर जो समझौता हुआ है उसे काफी अहम माना जा रहा है. इसके तहत भारत को डेढ़ साल के लिए बंदरगाह का एक हिस्सा लीज़ पर दिया गया है. इससे नई दिल्ली को अपने पड़ोसी देशों और उनके जरिए दुनिया के एक बड़े हिस्से तक पहुंच बनाने में काफी मदद मिलेगी.

  • इसमें कोई दोराय नहीं कि चाबहार के जरिए तैयार हुआ माल-ढुलाई का गलियारा इस पूरे क्षेत्र की भौगोलिक-आर्थिक-सामरिक स्थिति बदलने वाला है.
  • पाकिस्तान द्वारा अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक भारत को जमीनी मार्ग न दिए जाने की वजह से नई दिल्ली के लिए ईरान स्वाभाविक विकल्प था. हालांकि इस दिशा में कारगर तरीके से आगे बढ़ने में काफी वक्त लग गया. यह 2003 की बात है जब ईरान के राष्ट्रपति मोहम्मद खातमी भारत की गणतंत्र दिवस परेड के मुख्य अतिथि बने थे और उसी समय चाबहार बंदरगाह के विकास पर सहमति बनी थी.

इस बीच चीन ने पाकिस्तान के मकरान में स्थिति ग्वादर बंदरगाह को तेजी से विकसित कर दिया है. जबकि यूपीए सरकार चाबहार के विकास में जरूरी तेजी नहीं दिखा पाई. अगर ईरान के साथ इस परियोजना में तेजी आई है तो इसका ज्यादातर श्रेय प्रधानमंत्री और राजमार्ग और परिवहन मंत्री को जाता है. इन्होंने न सिर्फ ईरान सरकार के साथ बातचीत को आगे बढ़ाया बल्कि परियोजना से जुड़ी प्रशासनिक बाधाओं को भी दूर किया.

चाबहार बंदरगाह की आर्थिक और सामरिक उपयोगिता तब सबकी नजरों में आई थी जब बीते दिसंबर में भारत ने यहां से हजारों टन गेहूं अफगानिस्तान भेजा था. रूहानी की यात्रा के दौरान भारत ने प्रतिबद्धता जताई है कि वह जाहेदान तक रेलवे लाइन के निर्माण में भी तेजी लाएगा. ईरान का यह शहर पाकिस्तान और अफगानिस्तान सीमा पर स्थित है. ईरान बंदरगाह के पास चाबहार विशेष आर्थिक क्षेत्र का भी विकास कर रहा है और रूहानी भारतीय कंपनियों को वहां निवेश के लिए आमंत्रित किया है.

प्रधानमंत्री 2016 में तेहरान गए थे और तब भारत, ईरान और अफगानिस्तान के बीच त्रिपक्षीय आवाजाही मार्ग विकसित करने के समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे. नई दिल्ली और तेहरान चाबहार बंदरगाह को अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) से जोड़ना चाहते हैं. INSTC भारत, ईरान और रूस के साथ-साथ मध्य एशियाई देशों और यूरोप को जोड़ने वाला एक व्यापारिक मार्ग है जिसमें जल परिवहन, रेल और सड़क परिवहन शामिल हैं.

Goldan door

इसलिए हैरानी की बात नहीं कि मोदी ने रूहानी की यात्रा के दौरान चाबहार को मध्य एशिया तक पहुंचने के लिए भारत का ‘स्वर्णिम दरवाजा’ कहा था. कुल मिलाकर भारत के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है, लेकिन नई दिल्ली का ईरान के साथ संबंधों से जुड़ी आशंकाओं पर भी ध्यान होगा.

बीते कुछ महीनों से परमाणु समझौते को लेकर अमेरिका और ईरान के बीच तनातनी चल रही है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कई बार चेतावनी दे चुके हैं कि वे ईरान पर पाबंदियां लगा सकते हैं. जाहिर है कि इन चेतावनियों का असर भारत और ईरान के बीच कारोबारी संबंधों पर भी दिख सकता है. हालांकि हसन रूहानी की यात्रा के दौरान भारत ने यह कहकर सही रुख ही अपनाया है कि वह अमेरिका-ईरान परमाणु समझौते को पूरी तरह लागू करने के पक्ष में है.

हालांकि ईरान के साथ संबंधों में मुश्किल सिर्फ यही नहीं है. तेहरान के सुन्नी बहुल अरब देशों के साथ-साथ इजरायल के साथ भी तनावभरे संबंध हैं, जबकि ये देश पहले के मुकाबले आज भारत के कहीं ज्यादा करीब हैं. वहीं अफगानिस्तान में भले ही नई दिल्ली और तेहरान परंपरागत रूप से मिलकर काम कर रहे हैं, लेकिन यहां ईरान का तालिबान को समर्थन सवालों के घेरे में है.

ईरान मध्य-पूर्व एशिया में स्थित है और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के हिसाब से यहां मौजूद देशों के साथ संबंध रखना हमेशा जटिलताओं से भरा रहा है. फिर भी नई दिल्ली को अब बड़े-बड़े देशों की तरह यहां राजनीति को व्यवहारिक नजरिये से देखना होगा

 

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