मालदीव को लेकर भारत की नीति क्या होनी चाहिए? | India Maldive relation


#Satyagriha
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मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यमीन लोकतांत्रिक राजनीति को लगातार हाशिये पर धकेलते रहे हैं, लेकिन अब लग रहा है कि भारत के इस पड़ोसी देश में लोकतंत्र फिर मुख्यधारा में आ जाएगा. एक नाटकीय घटनाक्रम के तहत:
     पिछले हफ्ते यहां के सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद और उनके साथ ही दूसरे राजनीतिक बंदियों को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया है. उन्हें 2012 में पद से हटाया गया था और दो साल पहले आतंकवाद के आरोप में हिरासत में लिया गया था.
     तानाशाही रवैए वाली यमीन सरकार के लिए सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश बड़ा झटका साबित होने जा रहा है. 
     कोर्ट ने इस आदेश के साथ यह भी कहा है कि नशीद और अन्य लोगों के खिलाफ चले मुकदमों से घरेलू और अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन हुआ था. नशीद हालांकि इस समय जेल में नहीं हैं. हिरासत में लिए जाने के कुछ समय बाद ही वे इलाज के लिए बाहर चले गए थे और फिर उन्हें ब्रिटेन ने शरण दे दी.
सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले के साथ विपक्षी 12 सांसदों को भी बहाल कर दिया है. इन्होंने 2016 में विपक्ष के साथ मिलकर यमीन पर महाभियोग चलवाने की कोशिश की थी और इसके बाद इन्हें संसद (मजलिस) के लिए अयोग्य ठहरा दिया गया था. मालदीव में इस साल राष्ट्रपति चुनाव होने हैं. अब तक इनके एकतरफा होने की संभावना लग रही थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस अहम फैसले ने नशीद और विपक्ष के लिए लड़ाई की जगह बना दी है. विपक्ष ने यमीन की बर्खास्तगी को लेकर कोर्ट में एक अपील दायर की थी और यह फैसला उसी पर आया है.
यह अफसोसजनक है कि अब तक यमीन ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को लागू नहीं किया. इसके उलट सरकार ने पुलिस प्रमुख को पद से हटा दिया है जिन्होंने आदेश लागू करने की बाद कही थी. यहां सोमवार से संसद का सत्र शुरू होना था, लेकिन अब इसकी संभावना बहुत कम है क्योंकि सेना ने संसद भवन घेर लिया है और यहां किसी को घुसने की इजाजत नहीं दी जा रही है.
आशंका तो यहां तक जताई जा रही है कि यमीन आपातकाल की घोषणा कर सकते हैं. हालांकि अब जो परिस्थितियां बन चुकी हैं उनमें वर्तमान राष्ट्रपति का पद छोड़ना निश्चित है. सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद से राजधानी माले की सड़कों पर लोग उनके इस्तीफे की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं. यमीन ने कहा है कि वे समय-पूर्व चुनाव के लिए तैयार हैं, लेकिन यह भरोसा करना मुश्किल है कि उनके राष्ट्रपति रहते मालदीव में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हो पाएंगे.
फिलहाल तो सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ही सवाल उठा दिए हैं. सरकार अगर इस मुद्दे पर कोर्ट से टकराव के रुख पर आगे बढ़ती है तो मालदीव का संकट और गहरा जाएगा. इस समय यमीन के लिए सबसे समझदारी भरा कदम यही होगा कि वे कोर्ट के आदेश को पूरी तरह लागू करें जिससे नशीद के यहां लौटने का रास्ता साफ हो. चूंकि कुछ महीने बाद ही चुनाव हैं तो यमीन को पद छोड़कर लोकतांत्रिक चुनाव के लिए शांतिपूर्ण माहौल बनाने में मदद करनी चाहिए.
Indian Reaction
भारत ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को लोकतांत्रिक भावना के मुताबिक बताते हुए इसका स्वागत किया है. साथ ही भारत सरकार ने कहा है कि यमीन सरकार को इस फैसले का सम्मान करना चाहिए. भारत नशीद और विपक्षी पार्टियों का खुलकर समर्थन करता रहा है. इसमें कोई चौंकाने वाली बात भी नहीं है क्योंकि यमीन सरकार ने बीते समय में भारत को लगातार हाशिये पर करने की कोशिश की है. इसका पहला बड़ा संकेत तब मिला था जब उसने माले एयरपोर्ट की विकास परियोजना से भारत की एक निजी कंपनी को अलग कर दिया. वहीं दूसरी तरफ यमीन चीन के साथ गलबहियां करते भी नजर आते रहे हैं.
o    दो साल पहले मालदीव की सरकार ने विदेशियों को वहां संपत्ति खरीदने की इजाजत देने से जुड़ा कानून बनाया है. फिर हाल ही में उसने चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौता भी कर लिया है. बताया जाता है कि यह समझौता कुछ ही घंटों में तैयार हुआ था और इसे हड़बड़ी में किया गया है.
o    नशीद खुलकर भारत से राजनीतिक समर्थन मांगते रहे हैं. इसमें कोई दोराय नहीं है कि अगर वे सत्ता में आते हैं तो यमीन के मुकाबले भारत के ज्यादा करीब होंगे. लेकिन यहां भारत को संभलकर चलने की जरूरत है. इसके लिए उसे श्रीलंका का उदाहरण याद रखना चाहिए. श्रीलंका में इस समय ‘भारत समर्थक’ सरकार है फिर भी उसने चीन से करीबी संबंध बनाने की कोशिश की है. भारत को इस वास्तविकता का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए कि अगर नशीद राष्ट्रपति बनते हैं तो मालदीव भी श्रीलंका के रास्ते पर चल सकता है.
हर देश के लिए अपने राष्ट्रीय हित सबसे ऊपर होते हैं. दक्षिण एशिया में भारत के दबदबे से पैदा हुए डर और असुरक्षाओं के चलते छोटे देश चीन की तरफ झुककर एक संतुलन बनाने की कोशिश करते रहे हैं. पाकिस्तान को छोड़ दें तो ये देश भारत और चीन, दोनों से फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं. अगर आर्थिक दबदबे की बात करें तो भारत इस खेल में चीन के आगे नहीं ठहरता, लेकिन इन देशों से ऐतिहासिक-राजनीतिक संबंधों के मामले में भारत फायदेमंद स्थिति में है. कुल मिलाकर सत्ता यमीन के पास रहे या नशीद को मिले, भारत को मालदीव से इस तरह के संबंध विकसित करने जरूरत है जो चीन से होड़ पर आधारित न हों
 

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