According to a recent UN report Diaspora not just resource for parent country but for home country as well
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Increasing Diaspora around the world
अंतरराष्ट्रीय प्रवासियों पर संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट बताती है कि सन 2000 से अब तक प्रवासियों की संख्या में 49 फीसदी बढ़ोतरी हुई है जबकि इस दौरान वैश्विक आबादी में मात्र 23 फीसदी वृद्धि हुई है। नतीजा यह कि जो प्रवासी वैश्विक आबादी का 2.8 फीसदी हुआ करते थे, अब वे कुल आबादी का 3.4 फीसदी हो गए हैं। खास बात यह कि हाल के वर्षों में न केवल प्रवासियों की संख्या में अप्रत्याशित इजाफा हुआ है बल्कि विभिन्न देशों में प्रवासियों के प्रति दुश्मनी जैसे भाव रखने वाली राजनीति मजबूत हुई है।
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप को इस प्रवृत्ति के प्रमुख चेहरे के रूप में देखा जा सकता है, जो प्रवासियों के खिलाफ न केवल सनसनीखेज बयान देते रहते हैं बल्कि सरकार की नीतियों में भी बदलाव लाने का प्रयास करते रहे हैं। इस राजनीति के प्रभाव में या दबाव में अन्य देशों ने भी प्रवासियों का प्रवेश रोकने के इंतजाम करने शुरू कर दिए। ऐसे हालात में पिछले हफ्ते जारी हुई संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट इस जटिल मसले पर नई रोशनी डालती है। रिपोर्ट में प्रवासियों को एक बुराई के रूप में चित्रित करते इस नए राजनीतिक विमर्श पर तो चिंता जाहिर की ही गई है, यह भी बताया गया है कि प्रवासी वास्तव में किसी भी समाज के लिए अत्यधिक लाभदायक साबित होते हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक ये प्रवासी उस तरह के कार्यों के लिए भी खुशी-खुशी तैयार हो जाते हैं, जिनमें हाथ डालना स्थानीय आबादी अपनी शान के खिलाफ समझती है। इससे आर्थिक गतिविधियों को बल मिलता है, जिसका फायदा अर्थव्यवस्था को होता है।
इससे भी बड़ी बात यह है कि प्रवासी समुदाय अपनी आमदनी का 85 फीसदी उसी समाज में लगाता है जहां वह रह रहा होता है।
15 फीसदी वह उस देश में अपने घर-परिवार को भेजता है जहां से वह आया होता है। इस तरह से प्रवासी दोनों समाजों की बेहतरी में अपना अमूल्य योगदान करता है। यह योगदान कितना अहम है इसका अंदाजा तब होता है जब हम आंकड़ों पर नजर डालते हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में प्रवासियों द्वारा अपने मूल देशों को भेजी गई अनुमानित राशि है करीब 38 लाख करोड़ रुपये, जिसका बड़ा हिस्सा करीब 29 लाख करोड़ रुपये विकासशील देशों को मिला है।
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