आसियान से गहराते रिश्तों का दौर

आसियान से गहराते रिश्तों का दौर

#Nai_Duniya

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंडोनेशिया, मलेशिया और सिंगापुर का दौरा किया। ये तीनों देश दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के संगठन (आसियान) के प्रमुख देश हैं। लिहाजा इस दौरे को मोदी सरकार की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत आसियान देशों से संबंध बढ़ाने का हिस्सा भी माना गया। इस दौरे में प्रधानमंत्री मोदी ने तीनों देशों के राष्ट्र प्रमुखों के साथ नवाचार, प्रौद्योगिकी, सुरक्षा समेत साझा हित के विभिन्न् मुद्दों के साथ-साथ आसियान में भारत की आर्थिक भागीदारी बढ़ाने के बारे में भी चर्चा की। इस दौरे के दौरान तीनों देशों के साथ कारोबार, परिवहन, समुद्री सुरक्षा एवं सांस्कृतिक सहयोग के मुद्दों पर व्यापक सहमति बनी है।

वस्तुत: एक ऐसे दौर में जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों के कारण देश की आर्थिक मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं, तब निर्यात बढ़ाने और विदेशी निवेश आकर्षित करने के मद्देनजर भी यह दौरा उपयोगी रहा है। गौरतलब है कि मोदी सरकार ने पूर्ववर्ती यूपीए सरकार की ‘लुक ईस्ट पॉलिसी से आगे बढ़ते हुए ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी को अपनाया और इस साल गणतंत्र दिवस समारोह में 10 आसियान देशों के राष्ट्र-प्रमुखों को मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित करते हुए भारत व आसियान देशों के बीच आर्थिक-व्यापारिक संबंधों की नई डगर निर्मित की। उल्लेखनीय है कि आसियान संगठन के 10 देशों की कुल आबादी 64 करोड़ से अधिक है। इन देशों का मौजूदा संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) करीब 2.8 लाख करोड़ डॉलर है। इसके अलावा आसियान देशों की एक हजार अरब डॉलर से अधिक की वार्षिक क्षेत्रीय आय तथा 100 अरब डॉलर से अधिक का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) मुक्त व्यापार क्षेत्र के परिप्रेक्ष्य में महत्वपूर्ण है। आसियान देशों के साथ भारत के व्यापारिक रिश्तों की शुरुआत 1990 के दशक में हुई। आसियान देशों ने जनवरी 1992 में भारत को क्षेत्रीय संवाद सहयोगी और दिसंबर 1995 में पूर्ण वार्ताकार सहयोगी का दर्जा प्रदान किया था। तब से आसियान देशों के साथ भारत के आर्थिक-सामाजिक संबंध लगातार बढ़ रहे हैं। उल्लेखनीय है कि भारत और आसियान देशों के बीच मुख्यत: इलेक्ट्रॉनिक्स, रसायन, मशीनरी और टेक्सटाइल्स का कारोबार होता है।

इस समय भारत आसियान का चौथा सबसे बड़ा साझेदार है। जो भारत-आसियान व्यापार 1990 में मात्र 2.4 अरब डॉलर का था, वह वर्ष 2016-17 में बढ़ते हुए करीब 80 अरब डॉलर तक पहुंच गया। इसे 2022 तक 200 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य है। आसियान के कुछ देशों का पूर्वी व दक्षिणी चीन सागर क्षेत्र को लेकर चीन से विवाद है, वहीं भारत का भी अपने उत्तर में स्थित पड़ोसी देश के साथ जमीन को लेकर विवाद है। दक्षिणी चीन सागर के पूरे हिस्से पर चीन अपना दावा ठोकता है और पूर्वी चीन सागर में जापान के नियंत्रण वाले सेनकाकु द्वीपों को भी अपना बताता है। ऐसे में भारत और आसियान के 10 देश समुद्री क्षेत्र में सहयोग बढ़ाते हुए अपनी स्थिति मजबूत कर सकते हैं।

निस्संदेह इस समय भारत दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के साथ लगातार व्यापारिक एवं सामाजिक संबंध बढ़ाने की डगर पर आगे बढ़ रहा है। आसियान देशों में भारतीय प्रोफेशनल्स के लिए कामकाज के विस्तार की काफी गुंजाइश बढ़ी है। अंग्रेजी बोलने वाले भारतीय आईटी प्रोफेशनलों को दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में संभावनाओं का बड़ा बाजार हासिल हुआ है। न केवल सॉफ्टवेयर या सेवा क्षेत्र में, बल्कि कई अन्य आर्थिक क्षेत्रों में भी भारत ने विश्व की एक उभरती शक्ति के रूप में पहचान बनाई है। भारत के पास कुशल पेशेवरों की फौज है। यहां आईटी, सॉफ्टवेयर, बीपीओ, फार्मास्युटिकल्स, केमिकल्स एवं धातु क्षेत्र में दुनिया की जानी-मानी कंपनियां हैं, आर्थिक व वित्तीय क्षेत्र की शानदार संस्थाएं हैं। इनके लिए आसियान देशों में कारोबार की अच्छी संभावनाएं हैं। गौरतलब है कि पिछले दो-तीन वर्षों से दुनिया के अनेक देशों में भारत के जो निर्यात प्रभावित हो रहे हैं, उनकी भरपाई के लिए आसियान बाजारों में नई संभावनाएं खोजी जा सकती हैं। वर्ष 2018 की शुरुआत से ही कच्चे तेल के आयात पर भारत की काफी विदेशी मुद्रा खर्च हो रही है। डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपए के लुढ़कने से रुपए की क्रयशक्ति घट गई है और कोयले के मामले में भी देश आए दिन मुश्किलों का सामना कर रहा है। ऐसे में आसियान समूह के साथ बुनियादी ढांचा और हाइड्रोकार्बन जैसे क्षेत्र में समझौते भारत के लिए लाभप्रद रहे हैं।

प्रधानमंत्री मोदी ने इंडोनेशिया, मलेशिया और सिंगापुर का दौरा करके भारत के लिए आसियान देशों में और अधिक उजली व्यापारिक संभावनाएं खोजने का प्रयास किया है, वहीं इन तीन देशों के साथ-साथ सभी आसियान देशों को भी यह भान है कि पिछले कुछ सालों में भारत ने विभिन्न् क्षेत्रों में तरक्की के नए आयाम तय किए हैं और इसके साथ जुड़ना उनके लिए भी फायदे का सौदा है। आसियान देशों के लिए विशेष तौर पर कुछ ऐसे क्षेत्रों में निवेश करने के लिए अच्छे मौके हैं, जिनमें भारत ने काफी उन्न्ति की है। ये क्षेत्र हैं- सूचना प्रौद्योगिकी, बायोटेक्नोलॉजी, फार्मास्युटिकल्स, पर्यटन और आधारभूत क्षेत्र। आसियान देशों ने इस बात को समझा है कि आधुनिक तकनीक, बढ़ते घरेलू बाजार, व्यापक मानव संसाधन, वैज्ञानिक और तकनीकी क्षेत्र में दक्षता जैसी चीजें भारत को आर्थिक ऊंचाई दे रही हैं। यह भी समझा गया है कि अगर आसियान का मैन्यूफैक्चरिंग और भारत का सॉफ्टवेयर उद्योग आपस में जुड़ जाएं तो यह पूरा इलाका आर्थिक प्रगति के नए कीर्तिमान रच सकता है। मोदी के इस दौरे में इंडोनेशिया, मलेशिया और सिंगापुर के नेताओं के साथ बातचीत में यह सहमति बनी कि ये देश भारत के साथ विभिन्न् आर्थिक एवं कारोबारी साझेदारी के साथ-साथ सामरिक सहयोग बढ़ाने की डगर पर आगे बढ़ेंगे। चूंकि आसियान देश समुद्री सीमाओं पर चीन के क्षेत्रीय और दबावपूर्ण मंसूबों से त्रस्त हैं, अतएव वे लोकतांत्रिक भारत को अपना समुद्री मित्र मानते हुए भारत से आर्थिक संबंधों में उपयोगिता देख रहे हैं। भारत-आसियान रिश्तों का कूटनीतिक महत्व भी बढ़ गया है। दक्षिण-पूर्वी एशिया के कई देशों का जोर इस बात पर है कि भारत इस इलाके में बढ़-चढ़कर भूमिका निभाए। यहां यह बात भी उल्लेखनीय है कि चीन का दखल बढ़ने के कारण इस क्षेत्र में अमेरिका की सक्रियता भी बहुत बढ़ गई है। अमेरिका ने भारत को अपनी भूमिका और बढ़ाने के लिए प्रेरित किया और अब वह एशिया-प्रशांत क्षेत्र को हिंद-प्रशांत (इंडो-पेसिफिक) क्षेत्र कहता है

चूंकि चीन आसियान बाजारों में कारोबार के लिहाज से बहुत तेजी से आगे बढ़ चुका है और उसने इन देशों में बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निवेश भी किया है, अतएव भारत को आसियान क्षेत्र में अपनी नई छाप छोड़ने के साथ-साथ आसियान देशों में आपसी व्यापार की उजली संभावनाओं को साकार करने के लिए विशेष रणनीतिक प्रयास करने होंगे। प्रधानमंत्री मोदी के इंडोनेशिया, मलेशिया व सिंगापुर के सार्थक दौरे से इस प्रयास को नई गति मिली है।

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