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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों सिंगापुर में शांग्री-ला संवाद में जो भाषण दिया वह कई के लिए हतोत्साहित करने वाला कटाक्ष था। यह सालाना मंच पारंपरिक तौर पर एशिया प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी खेमे द्वारा चीन की बढ़ती आक्रामकता और उसके विस्तारवाद को फटकारने का जरिया है। वहीं वरिष्ठï चीनी अधिकारी खुलकर यह संकेत देते हैं कि वह किसी की परवाह नहीं करता। यहीं वर्ष 2010 में यांग जिएची (चीन के तत्कालीन विदेश मंत्री और अप्रैल तक भारत के साथ सीमा संबंधी वार्ता के विशेष प्रतिनिधि) ने सिंगापुर के विदेश मंत्री को खारिज करते हुए कहा था, ‘चीन एक बड़ा देश है और अन्य देश बहुत छोटे, यह एक तथ्य है।Ó गत वर्ष डोकलाम में दोनों देशों के संघर्ष के बाद इस वर्ष प्रमुख वक्ता के रूप में प्रधानमंत्री मोदी से काफी उम्मीदें थीं। बहरहाल मोदी गत अप्रैल में वुहान में चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ हुई अनौपचारिक बैठक में हुए समझौतों से प्रेरित नजर आए। उन्होंने चीन की चिंतित करने वाली आक्रामकता पर बात करने का अवसर गंवा दिया। उन्होंने बांडुंग सम्मेलन में नेहरू की ऐतिहासिक भूमिका का जिक्र किया कि कैसे भारत ने हिंद और प्रशांत क्षेत्र के बीच सेतु की भूमिका निभाई थी। आवागमन और संचार की स्वतंत्रता तथा विधि के शासन की बात करते हुए मोदी ने चीन के साथ समुद्री विवाद से स्पष्ट रूप से कदम पीछे खींचा। मोदी अपने जिस शांतिप्रिय पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री को झिड़कते रहते हैं उसी की भाषा बोलते हुए उन्होंने कहा कि भारत और चीन के बीच रिश्तों में जितनी परत हैं, उतनी किसी और रिश्ते में नहीं। उन्होंने कहा कि हमारा सहयोग और व्यापार बढ़ रहा है और दोनों देशों ने संबंधों के प्रबंधन में परिपक्वता दिखाई है और सीमा पर शांति सुनिश्चित की है।
तिब्बत में भारत की भूमिका को लेकर चीन की चिंता के बाद सरकार ने दलाई लामा और एक लाख से अधिक तिब्बती शरणार्थियों पर तमाम प्रतिबंध लगाए हैं। दलाई लामा के ल्हासा से निकलने की 60वीं वर्षगांठ पर 31 मार्च को राजघाट पर आयोजित बैठक रद्द कर दी गई। अब सुरक्षा आधार पर चीनी (तिब्बती) भिक्षुओं और दलाई लामा की मुलाकात पर भी रोक है। दलाई लामा को किनारे करने के तार उनकी एक साल पुरानी अरुणाचल प्रदेश की यात्रा से जुड़े हैं जब चीन के भीषण प्रतिरोध के बावजूद मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने उनका जबरदस्त इस्तकबाल किया था। गत वर्ष की तुलना में भारत ने अमेरिका और जापान के साथ त्रिपक्षीय नौसैनिक कवायद में भी भागीदारी कम की है। अमेरिका और जापान जहां अपने विमानवाहक पोत और पनडुब्बी भेज रहे हैं, वहीं भारत मझोले आकार के युद्धपोत भेज रहा है। जाहिर है चीन इससे प्रसन्न है।
इसके उलट चीन के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं है। उसने एक बार फिर अरुणाचल पर दावा किया। गत 20 मई को अलीबाबा के जैक मा के स्वामित्व वाले साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट में लेख छपा कि कैसे हिमालय में चीन का खनन भारत के साथ विवाद का नया बिंदु बन सकता है। रिपोर्ट में कीमती धातुओं का 60 अरब डॉलर मूल्य का खजाना भारत की सीमा के निकट मिलने की बात कही गई। इससे दक्षिणी तिब्बत (चीन अरुणाचल को यही कहकर पुकारता है) पर दावा करने को और प्रोत्साहन मिला। रिपोर्ट में कहा गया कि इससे दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत शृंखला में दक्षिणी चीन सागर की तरह एक और विवाद उत्पन्न होगा।