What is cold war?
लुई हाल ने अपनी पुस्तक ‘द कोल्डवॉर एज ऑफ हिस्ट्री में लिखा है कि दो गुटों के मध्य तीव्र तनाव शीतयुद्ध (cold war) की स्थिति है। उन्होंने यह भी माना है कि यह स्थिति सशस्त्र युद्ध से भी अधिक भयंकर होती है, जिसमें विभिन्न् पक्ष समस्याओं को सुलझाने के बजाय उलझाने का प्रयास करते हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित दुनिया में इस वक्त जिस तरह की हलचल हो रही है, उसमें वैचारिक संघर्ष, राजनीतिक अविश्वास, कूटनीतिक चालों, सैन्य प्रतियोगिताओं, गुप्तचर गतिविधियों और मनोवैज्ञानिक संघर्ष की स्थितियां दिख रही हैं। क्या इसे शीतयुद्ध का संकेत माना जा सकता है?
Recent situation in West
इस समय योरप व अमेरिका द्वारा रूसी राजनयिकों के निष्कासन का सिलसिला चल रहा है और बदले में रूस भी इसी तरह की प्रतिक्रिया कर रहा है। क्या इसे युद्ध के मनोविज्ञान के रूप में देखा जा सकता है?
- उल्लेखनीय है नाटो के महासचिव जेंस स्टोलटेनबर्ग ने सात रूसी राजनयिकों के निष्कासन की घोषणा की थी। उनके अनुसार ये फैसला रूस को यह संदेश देने के लिए किया गया है कि वह जो व्यवहार कर रहा है, उसे उसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। नाटो के इस निर्णय से पहले ही कुछ योरपीय देश रूसी राजनयिकों को निष्कासित करने की कार्रवाई कर चुके थे।
- ये देश मोटे तौर पर यह मानते हैं कि ब्रिटेन में रह रहे पूर्व रूसी जासूस सर्गेई स्क्रिपल और उनकी बेटी यूलिया पर रूस ने 4 मार्च, 2018 को नर्व एजेंट से हमला करवाया था।
अब भले ही रूस इन आरोपों को खारिज करे, लेकिन हालिया कार्रवाइयां बताती हैं कि रूस की अमेरिका व योरप के साथ राजनयिक संबंधों की कड़ियां टूट रही हैं, जिसके नतीजे घातक हो सकते हैं। रूस का कहना है कि नाटो की इस प्रतिक्रिया के पीछे अमेरिका की ब्लैकमेल करने की नीति है। अब सवाल यह उठता है कि वे कौन-सी वजहें हैं, जिनके चलते नाटो रूस को ब्लैकमेल रहा है?
- नाटो की प्रवक्ता ने कहा – ‘हमने क्रीमिया पर अवैध कब्जा देखा है। पूर्वी यूक्रेन को लगातार अस्थिर किए जाते देखा है।
- साथ ही आर्कटिक से लेकर मध्य-पूर्व और भूमध्यसागर तक सेना का बड़ा जमावड़ा भी देखा है। हमने साइबर हमलों के जरिए लोकतांत्रिक प्रक्रिया में दखल भी देख लिया। ये बीते कई सालों में स्थापित एक व्यापक पैटर्न बन गया है। लिहाजा रूस के लिए ये संदेश जरूरी है। किंतु क्या यह पैटर्न केवल रूस द्वारा अपनाया गया है अथवा अमेरिका, योरपीय देश व चीन आदि भी इस महासागर में गोते लगा रहे हैं?
TIT FOR TAT
ब्रिटेन द्वारा 23 रूसी राजनयिकों के निष्कासन के निर्णय के बाद रूस ने भी ब्रिटेन के 23 राजनयिकों को एक सप्ताह के अंदर रूस छोड़ने का अल्टीमेटम दे दिया। इसके बाद योरपीय देशों ने रूस के खिलाफ ब्रिटेन का साथ देते हुए रूसी राजनयिकों को निकालने का निर्णय ले लिया। इसमें अमेरिका भी शामिल है। हालांकि अमेरिका में पिछले राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप को जिताने में रूस की सक्रियता जगजाहिर है और ट्रंप का पुतिन के प्रति प्रेम भी। यही वजह है कि ट्रंप की विजय के बाद ‘मॉस्को धुरीनीति चर्चा में आई, जिसकी सलाह लगभग 45 वर्ष पहले तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को उनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर ने दी थी। लेकिन अक्टूबर 2017 में अमेरिकी कांग्रेस ने रूस पर प्रतिबंध लगाने संबंधी कानून पारित कर दिया और बदले में रूसी राष्ट्रपति पुतिन द्वारा अमेरिकी वाणिज्य दूतावास के 755 अधिकारियों व कर्मचारियों पर रूस में गतिविधियां चलाने पर पाबंदी लगा दी गई। फलत: अमेरिका व रूस आमने-सामने आ गए और पश्चिमी योरप अमेरिका के पीछे हो लिया। यानी राजनयिकों के निष्कासन, प्रतिबंधों की प्रक्रिया एकदम नई नहीं है।
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Crimea : Main issue
अमेरिकी कांग्रेस ने इन प्रतिबंधों के लिए मुख्यत: क्रीमिया मुद्दे को उत्तरदायी माना था। आखिर अमेरिका व योरप क्रीमिया के दलदल में क्यों धंस रहे हैं? क्रीमिया का आज का सच तो यह है कि अब वह रूसी संघ का हिस्सा है। फिर भी अमेरिका एवं योरपीय देश इसे मुद्दा बनाए हुए हैं तो इसलिए कि अमेरिका का काला सागर (ब्लैक सी) पर एकाधिकार स्थापित करने का सपना टूट गया। या योरप का यूक्रेन के जरिए रूस को कमजोर करने और यूरेशियाई क्षेत्र में घुसपैठ करने का मिशन असफल हो गया। ध्यान रहे कि क्रीमिया की भौगोलिक स्थिति, उसकी रणनीतिक महत्ता और वहां से मध्य-पूर्व को हैंडल करने की अमेरिका-ईयू की महत्वाकांक्षा उन्हें रूस के खिलाफ एकजुट होकर लड़ने के लिए प्रेरित करती है।
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पश्चिमी मीडिया पुतिन की आलोचना करता है। लेकिन क्रीमिया व यूक्रेन मसले में कई पेंच हैं। यूक्रेन में लगातार दक्षिणपंथी ताकतों को समर्थन दिया गया जबकि उसकी गतिविधियां रूस-विरोधी थीं। यूक्रेन में दक्षिणपंथी और नव-नाजीवादी (नियो-नाजी) ताकतों को पश्चिम ने समर्थन दिया।
Economic factors
एक अन्य कारण के रूप में उस आर्थिक टकराव को मान सकते हैं, जो इसे रणनीतिक युद्ध तक ले जा सकता है। भूमंडलीकरण के इस दौर में तमाम आर्थिक या राजनीतिक-आर्थिक संघों का निर्माण हुआ, जिनका मकसद मुक्त व्यापार एवं आपसी सहयोग अधिक है, लेकिन वास्तव में इसके पीछे एक छद्म एजेंडा भी है जो विभिन्न् प्रकार के अतिक्रमणों के लिए मार्ग ढूंढने का काम करता है। योरप यूरेशियाई क्षेत्र में इन्हीं कार्य-कारण संबंधों के तहत घुसना चाहता है। इसके लिए वह यूक्रेन को सर्वाधिक अनुकूल मान रहा है। चूंकि रूस ने उसके इस सपने को भंग किया है इसलिए स्वाभाविक है कि वह यूक्रेन के नाम पर रूस को घेरने की कोशिश करता रहेगा। उधर, रूस ने सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद का साथ देकर सोवियत संघ के अंतिम सिपहसालार को बचा लिया, जिससे दुनिया में यह संदेश गया कि रूस अब फिर दुनिया का एक पॉवर सेंटर बन रहा है। अहम बात यह है कि तुर्की रूस की ओर झुक रहा है, सीरिया रूस की छत्रछाया में है, ईरान और इराक उसकी ओर देख रहे हैं।
बहरहाल, रूसी राष्ट्रपति पुतिन रूस को सोवियत युग में ले जाना चाहते हैं। इसका रास्ता एक ही है- रूस की ताकत का प्रदर्शन। नवंबर 2017 के शुरुआत में ही रूसी मीडिया ने युद्ध संबंधी खबरें भी छापी थीं। इनमें रूस को युद्ध के लिए तैयार रहने के अप्रत्याशित निर्देशों का उल्लेख था। उस समय तो यह मान लिया गया था कि पुतिन भावी चुनाव को देखते हुए इस तरह का माहौल बना रहे हैं ताकि ताकतवर नेतृत्व के रूप में उन्हें ही एकमात्र विकल्प माना जाए। लेकिन अब चुनाव हो चुके हैं और पुतिन पहले के मुकाबले अधिक ताकतवर नेता बनकर रूस में उभरे हैं। पुतिन इस ताकत को सिद्ध करने की कोशिश करेंगे। लिहाजा संभव है कि अमेरिका और योरपीय देशों के खिलाफ प्रतिक्रिया भी उसी स्तर की हो। जाहिर है कि पश्चिमी ताकतें रूस को घेरने व कमजोर करने की नीति पर चलेंगी, ताकि वह महाशक्ति की परिधि तक न पहुंच सके, जबकि पुतिन रूस को सोवियत युग में ले जाने का पूरा प्रयास करेंगे। इसलिए टकराव और बढ़ सकता है। कहीं यह शीतयुद्ध के नए दौर की आहट तो नहीं?
MAINS QUESTIONL:
"Recent condition of world and resolution of complex international issues requires the cooperative and collaborative partnership between the US and Russia but off late the rising tensions have created the atmosphere of going back to days of cold war era." Discuss
#Nai_Duniya