चीन की समुद्री घेराबंदी के खतरे

China is encircling India and this could pose a challnge in Indian ocean region. India should equip itself and take step which suits to its interest.

#Dainik_Tribune

पिछले दो दशक में चीन के असाधारण विकास ने भारत की समुद्री सीमाओं के आरपार समूचे भू-राजनीतिक परिदृश्य को बदल दिया है। चीन के अपनी समुद्री सीमाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के पीछे दूरगामी हित हैं। लेकिन जिन बातों ने उसके समुद्री पड़ोसियों को चिंतित किया, वह है चीन की दक्षिण चीन सागर के आरपार साम्राज्य विस्तार हेतु सैन्य ताकत के इस्तेमाल की तैयारी।

  • एकतरफा रूप से खींची गई ‘Nine dotted line’ के दावों से चीन के दक्षिण कोरिया, जापान, ताइवान, फिलीपींस, वियतनाम, ब्रुनेई, मलेशिया तथा इंडोनेशिया आदि सभी वास्तविक समुद्री पड़ोसियों के साथ तनाव उत्पन्न हो गया है।
  • चीन अपने मंसूबो के लिए दक्षिण चीन सागर के आरपार हवाई अड्डों तथा कृत्रिम द्वीपों का निर्माण कर रहा है, जबकि इसके आधार को संयुक्त राष्ट्र ट्रिब्यूनल फिलीपींस की शिकायत के आधार पर दिये फैसले में खारिज कर चुका है। अकेले जापान, वियतनाम तथा इंडोनेशिया ही चीन के विस्तारवाद के खिलाफ मजबूती के साथ डटे हुए हैं। इंडोनेशिया ने तो अपने नातुना द्वीप पर चीन के दावों को लेकर उसे अंतर्राष्ट्रीय ट्रिब्यूनल में घसीट लिया था।
  • इतना ही नहीं चीन ने हिंद महासागर के समुद्री तटों पर अदन जलडमरूमध्य, जहां कि चीन ने जिबूती में नौसैन्य अड्डा स्थापित किया है, होर्मुज जलडमरू मध्य के आरपार तथा मलक्का जलडमरूमध्य तक परमाणु पनडुब्बियों की तैनाती सहित अपनी नौसैन्य उपस्थिति बढ़ा दी है।
  • अदन से लेकर मलक्का तक के समूचे हिंद महासागर क्षेत्र की विश्व के 40 प्रतिशत तेल उत्पादन तथा 57 प्रतिशत तेल व्यापार में हिस्सेदारी है।

India angle

  • भारत की 70 प्रतिशत तेल सप्लाई इन्हीं क्षेत्रों से होकर आती है। अरब के खाड़ी देशों में करीब 70 लाख भारतीय रहते हैं तथा यहां से भारत को हर साल 40 बिलियन डॉलर से अधिक प्राप्त होते हैं। होर्मुज जलडमरूमध्य के पार ईरान और उसके अरब पड़ोसियों के बीच प्रतिद्वंद्विता को देखते हुए अमेरिका ने अपने पांचवें बेड़े की बहरीन तथा अपने केंद्रीय कमान सैन्य अड्डे की कतर में स्थापना की है।
  • हालांकि भारत हिंद महासागर के पार अदन से मलक्का तक अपनी समुद्री सीमाओं पर निगाह रखता रहा है लेकिन चीनी ताकत के उदय तथा जमीन और समुद्र में चीन की क्षेत्रीय हठधर्मिता परेशान करने वाली है। इसका कूटनीतिक समाधान जरूरी है। बीजिंग का दावा है कि भारत के साथ उसकी क्षेत्रीय सरहदें समूचे अरुणाचल प्रदेश में फैली हैं और पूर्व में उसकी सीमाएं सामरिक सिलीगुड़ी गलियारे के बिल्कुल आसपास हैं
  • पश्चिम में वह लद्दाख के बड़े हिस्सों पर भी अपना दावा जताता है। 1990 के दशक में चीन की ताकत बढ़ने पर जब भारत ने चीन द्वारा म्यांमार पर अपनी धौंस का इस्तेमाल करते हुए अंडमान द्वीपों के करीब कोकोस द्वीपों तथा संभवत: म्यांमार के बंगाल की खाड़ी स्थित क्यॉकपियू बंदरगाह में अड्डे और निगरानी सुविधाएं स्थापित करने का विरोध किया तो एक चीनी एडमिरल ने कहा : ‘हिंद महासागर कोई भारत का महासागर नहीं है।’ भारत ने कभी भी यह दावा नहीं किया कि हिंद महासागर ‘भारत का महासागर’ है, जबकि चीन का दावा है कि दक्षिण चीन सागर का बड़ा हिस्सा ‘चीन का सागर है।’बल्कि चीन तो इंडोनेशिया तट तक दावा जताता है।
  • जिबूती में अब चीन का एक पूर्ण सैन्य अड्डा है तथा बलूचिस्तान में ग्वादर बंदरगाह में उसकी पूरी पहुंच है। वह पाकिस्तान की नौसेना को चार युद्धपोत तथा आठ पनडुब्बियां उपलब्ध करवाकर इसे मजबूत करने की तैयारी में है।

Indian response to china’s move

  • भारत हिंद महासगर में चीन की चालों को लेकर बेपरवाह नहीं है। दरअसल, भारत की तो बंगलादेश, म्यांमार, थाईलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया, श्रीलंका तथा मालदीव सहित सभी पड़ोसी देशों के साथ अपनी समुद्री सीमा संबंधी मामलों के समाधान के लिए दुनियाभर में प्रशंसा हुई है। इसके अलावा हिंद महासागर रिम एसोसिएशन फार रीजनल को-आपरेशन (आईओआर-एआरसी) में तटीय राज्यों के साथ समुद्री मानदंडों और आपदा राहत तथा आर्थिक सहयोग के साथ-साथ भारत जापान के साथ आर्थिक सहयोग और अफ्रीका तक संपर्क के लिए भी भागीदारी कर रहा है। यहां तक कि भारत ने क्षेत्रीय तथा बाहरी ताकतों के साथ मिलकर समुद्री डाकुओं का सफाया करने के लिए काम किया है।
  • प्रधानमंत्री ने 2015 में सेशेल्स तथा मॉरीशस की यात्रा के दौरान बुनियादी समु्द्री ढांचे के निर्माण तथा मॉरीशस के अगालेगा द्वीपों के साथ हवाई एवं समुद्री संपर्क को बढ़ावा देने के लिए कई समुद्री समझौतों पर हस्ताक्षर किये। ऐसी खबरें हैं कि भारत ने मॉरीशस को 1300 टन तटीय गश्ती पोत सहित परस्पर सहमत समुद्री सुरक्षा परियोजनाओं के लिए 500 मिलियन डॉलर के कर्ज की पेशकश की है। सेशेल्ज के साथ भी भारत ने इसी तरह के समझौते किये थे। हिंद महासगर के पार भारत के तटीय संचार की अब बारीकी से निगरानी तथा सुरक्षा हो पा रही है।
  • इसके अलावा 31 अक्तूबर से 2 नवंबर तक गोवा में आयोजित नौसैनिक सम्मेलन, जिसमें कि म्यांमार, इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर, बंगलादेश, थाईलैंड, श्रीलंका, मॉरीशस, सेशेल्स तथा मालदीव के वरिष्ठ नौसैन्य अधिकारियों ने भाग लिया था, में भारत ने हिंद महासागर में समुद्री गतिविधियों की समय पर खुफिया जानकारी देने सहित सूचना के बेहतर आदान-प्रदान की पेशकश की थी।
  • अमेरिका तथा जापान के साथ जहां ‘मालाबार’ नामक त्रिपक्षीय अभ्यास अब नियमित रूप से किया जाता है तथा अमेरिका के साथ समुद्री सहयोग भी जारी रहने वाला है, ऐसे में अब देखना यह है कि क्या आस्ट्रेलिया को इस ग्रुप में किस तरह साथ लाया जा सकता है। हाल ही में रूस के साथ उसके व्लादिवोस्तोक की प्रशांत बंदरगाह पर समुद्री अभ्यास किया गया है, जिससे हमारा समुद्री सहयोग अधिक समावेशी हो गया है। मलक्का से आगे हमारा करीब 40 प्रतिशत निर्यात एशिया-प्रशांत क्षेत्र के रास्ते ही होता है, इसलिए सुरक्षा व सैन्य सहयोग के लिए एशिया के पूर्वी तटों के पार उचित संरचना जरूरी है।

चीन की बहु-प्रचारित ‘बेल्ट और सड़क पहल’ की बदौलत चीन को कर्ज के जरिए पश्चिमी प्रशांत तथा हिंद महासागर में समुद्री क्षेत्र में अपना दबदबा स्थापित करने में मदद मिलेगी क्योंकि कर्ज प्राप्त करने वाले इस चुका नहीं पायेंगे। जैसे कि हंबनटोटा के संबंध में श्रीलंका के साथ हुआ, वैसे ही ऐसी ‘चीनी मदद’ प्राप्त करने वाले खुद को ‘कर्ज के जाल’ में फंसा हुआ पायेंगे, फिर उन्हें तेजी से अपनी संप्रभुता के साथ समझौता करने तथा बुनियादी ढांंचे और उद्योगों का नियंत्रण चीन के सुपुर्द करने के लिए मजबूर किया जाता है।

सम्मानित पाकिस्तानी अर्थशास्त्री अब चीन से व्यावसायिक शर्तों पर 60 बिलियन डॉलर से अधिक की ‘मदद’ प्राप्त करने की आर्थिक अक्लमंदी पर सवाल उठा रहे हैं। म्यांमार में भी इसी तरह की चिताएं जाहिर की गई हैं। लेकिन पाकिस्तान में चीन के साथ सहयोग के बारे में बड़े फैसले सेना द्वारा लिए जाते हैं, जिन्हें कि आर्थिक मुद्दों की बिल्कुल भी जानकारी नहीं होती है।

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