जब 1980 के दशक के प्रारंभ में हिंदी-रूसी भाई-भाई के चरम दौर में इंदिरा गांधी सरकार को तत्कालीन सोवियत संघ ने मिग लड़ाकू विमान का उन्नत संस्करण देने से मना कर दिया, तब भारत ने फ्रांस से मिराज 2000 का सौदा किया था। भारत ने तब मॉस्को के साथ अन्य देशों को भी स्पष्ट संदेश दे दिया था कि अपनी सुरक्षा हितों के लिए भारत कहीं भी वैकल्पिक रास्ता तलाश सकता है। जब पिछली UPA सरकार ने फ्रांस के राफेल विमान का चयन किया, तो उसने अमेरिकी, ब्रिटिश, रूसी और स्वीडिश-सभी बोली लगाने वालों को नाराज कर दिया। हालांकि बाद में यह सौदा रोक दिया गया और अब वर्तमान सरकार द्वारा इसके नए अवतार पर काम चल रहा है। फ्रांस की आक्रामक विक्रय नीति के बावजूद फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की मौजूदा भारत यात्रा के दौरान जरूरत होते हुए भी भारत ने 36 से ज्यादा राफेल विमानों की मांग नहीं की।
ज्यादा राफेल विमानों की खरीद का आदेश देने में थोड़ी देर करने के बावजूद भारत ने फ्रांस के साथ रिश्ते मजबूत किए हैं, क्योंकि फ्रांस एक अग्रणी यूरोपीय राष्ट्र है और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है, जो जर्मनी के साथ भारत के लिए रक्षात्मक दीवार बन सकता है,
भले ब्रिटेन अनिश्चय में हो और रूस के साथ हमारे रिश्ते बदल गए हों। फ्रांस ने पाकिस्तान को हथियार बेचने का अपना अधिकार त्याग दिया है, जैसा रूस ने लंबे समय तक किया था। यह फ्रांस को एक सुरक्षित साझेदार बनाता है, जैसा कि मैक्रों ने कहा, फ्रांस भारत को अपना पहला रणनीतिक साझेदार बनाना चाहता था और स्वयं भारत का पहला रणनीतिक साझेदार बनना चाहता था। अगर कभी अमेरिका से हमारी सामरिक सौदेबाजी में बाधा आती है, तो फ्रांस एक सुरक्षित साझेदार है। भारत पहले से ही इस्राइल, दक्षिण अफ्रीका और अब जापान के साथ सौदा कर रहा है और इसने अपने दरवाजे और विकल्प खुले रखे हैं।
आज के जटिल और बहुध्रुवीय वैश्विक कूटनीति में केवल हथियार खरीदना एकमात्र चीज नहीं है। इसमें दोस्तों और दुश्मनों से तालमेल बिठाने की भी जरूरत होती है। दुश्मनों के खिलाफ कार्रवाई के लिए दीर्घकालीन आधार पर ज्यादा दोस्त बनाने की जरूरत होती है। एशिया के तेजी से सहयोग और संघर्ष का मंच बनने के साथ भारत व्यापक सहयोग की तलाश में उन देशों के साथ संबंध मजबूत करना चाहता है, जिनका वैश्विक मामलों में प्रभाव है। फ्रांस उस अमेरिका की तुलना में कम समस्याग्रस्त साबित होगा, जो अफगानिस्तान में उलझा हुआ है और जिसके पाकिस्तान से संबंध फिलहाल बेहद तनावपूर्ण हैं। रूस या किसी के भी साथ अपने संबंधों को त्यागे बिना भारत को अपने हित में किसी से भी संबंध बनाने चाहिए। फ्रांस ने पिछले महीने फाइनेंशियल ऐक्शन टास्क फोर्स में पाकिस्तान को ग्रे-लिस्ट में शामिल करने के लिए काफी सक्रियता दिखाई थी। मोदी और मैक्रों विभिन्न बहुपक्षीय मंचों पर आतंकवाद विरोध को मजबूत करने के लिए सहमत हुए हैं। उन्होंने जैश-ए मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर के संदर्भ में संयुक्त बयान में संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों से आह्वान किया है कि वे आतंकी संगठनों को चिह्नित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के संकल्प 1267 और अन्य प्रासंगिक प्रस्तावों को लागू करें।
चीन को ध्यान में रख सामरिक सहयोग को आगे बढ़ाते हुए फ्रांस और भारत ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किया, जो दोनों देशों के रक्षा बलों को एक दूसरे की सुविधाओं का लाभ उठाने तथा पारस्परिक आधार पर सैन्य सहायता प्रदान करने में मदद करेगा। यह अमेरिका के साथ हुए लॉजिस्टिक सपोर्ट एग्रीमेंट जैसा ही सौदा है, जो रक्षा सौदों में सामरिक गहराई और परिपक्वता का संकेत करता है।
भारत और फ्रांस ने सभी देशों से आतंकवादियों की सुरक्षित पनाहगाह और बुनियादी ढांचे को उखाड़ फेंकने, आतंकी नेटवर्क और उन्हें धन मुहैया कराने वाले चैनलों को बाधित करने तथा सीमापार आतंकी गतिविधियों को रोकने की अपील की है। परमाणु क्षेत्र में भारत और फ्रांस के बीच लंबे समय से सहयोग जारी है। भारत जब चाहेगा, फ्रांस उसे परमाणु रिएक्टर बेच सकता है। जैतपुर प्लांट में उसकी मदद के कारण वह दुनिया का सबसे बड़ा रिएक्टर बन पाया है।
इसके अलावा, भारत और फ्रांस एक दूसरे की शैक्षणिक डिग्रियों और योग्यता को मान्यता प्रदान करेंगे। ऐसा भारत ने रूस या अन्य किसी देश के साथ नहीं किया है। पांच हजार भारतीय फ्रांस में पढ़ते हैं और जब अमेरिकी वीजा या ब्रिटिश कोर्स फीस की समस्या पैदा होगी, तब यह आंकड़ा और बढ़ सकता है। कुल मिलाकर, भारत और फ्रांस की दोस्ती दो मजबूत और जिम्मेदार देशों की दोस्ती है।
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