अमेरिकी दबाव और भारत (India America and Iran)

#Amar_Ujala

अमेरिका नहीं चाहता कि भारत ईरान के साथ संबंध रखे। वह रूस से 4.5 अरब डॉलर की लागत से खरीदे जा रहे विमान भेदी प्रक्षेपास्त्र के खिलाफ भारत पर प्रतिबंध लगाने का संकेत दे चुका है। ये प्रतिबंध अमेरिका द्वारा पारित अमेरिका के विरोधी-प्रतिस्पर्धियों के प्रतिरोध हेतु प्रतिबंध कानून के अंतर्गत लगाए जाएंगे।

अमेरिका ने स्पष्ट कहा है कि भारत ईरान के साथ अपने संबंधों पर पुनर्विचार करे। इसका कारण डोनाल्ड ट्रंप की ईरान के प्रति आक्रामक नीति है, जिस कारण उन्होंने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा पांच अन्य देशों-चीन, रूस, फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन के साथ मिलकर ईरान से परमाणु समझौता किया था, जिसके तहत ईरान अपना परमाणु कार्यक्रम बंद करेगा तथा बारह साल से चले आ रहे अमेरिकी प्रतिबंध हटा लिए जाएंगे। ट्रंप ने चुनाव अभियान के दौरान वायदा किया था कि सत्ता में आने पर वह इस समझौते को रद्द करेंगे। अन्य पांच देशों की असहमति के बावजूद उन्होंने ऐसा कर दिया, जिसके कारण आगामी नवंबर से ईरान पर आर्थिक प्रतिबंध लागू हो जाएंगे।

Response of India

  • भारत ने दृढ़तापूर्वक ईरान से अपने परंपरागत सभ्यतामूलक संबंधों को दोहराया है।
  • पर संपूर्ण विश्व का आर्थिक व्यवहार डॉलर केंद्रित है। यदि अमेरिका ईरान से हर आर्थिक संबंध को रोकता है, तो क्या भारत के लिए तेहरान से अपना आर्थिक संबंध जारी रखना संभव होगा?
  • सामरिक दृष्टि से ईरान भारत का महत्वपूर्ण देश है। वह भारत को कच्चे तेल की आपूर्ति करने वाला तीसरा बड़ा देश है।
  • चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के खतरे के सामने मुंबई और गुजरात को 7,200 किलोमीटर लंबे उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे से जोड़ने का मार्ग ईरान के चाबहार, बंदर अब्बास होते हुए अजरबैजान तथा रूस के सेंट पीट्सबर्ग तक पहुंचता है, जो भारत के लिए इतना जरूरी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस ओर विशेष ध्यान दिया है।
  • ईरान शिया देश है और भारत में शियाओं की जनसंख्या करीब साढ़े तीन से चार करोड़ है, जो ईरान के बाद सबसे अधिक है।
  • भारत और ईरान के बीच प्राचीन संबंध रहे हैं। भारतीय भाषाओं पर फारसी का व्यापक प्रभाव है, बल्कि एक प्रदेश पंजाब का नाम भी (पंज+ आब) फारसी से आया बताया जाता है। राजनयिक धर्म का एक ही उद्देश्य होता है-अपने देश का हित। भारत अमेरिकी हितों की रक्षा करने के लिए अपने हितों से समझौता क्यों करे और अपनी स्वतंत्र नीति अमेरिकी दबाव में क्यों बदले?
  • प्रधानमंत्री मई, 2016 में ईरान गए थे, जो किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री की पंद्रह साल में पहली अमेरिका यात्रा थी। वहां मोदी ने अफगान राष्ट्रपति की मौजूदगी में चाबहार बंदरगाह के विकास हेतु समझौते पर दस्तखत किए। इस पर भारत साढ़े आठ करोड़ डॉलर खर्च कर चुका है और ईरान से अफगान सीमा तक रेल मार्ग भी बना रहा है।
  • कश्मीर मुद्दे पर ईरान से भारत की मतभिन्नता भी है, पर सामरिक रिश्ते आज सब पर भारी पड़ रहे हैं। भारत के ऐसे ही प्रगाढ़ और विश्वसनीय रिश्ते रूस के साथ हैं। आज भी रूस भारत को सैन्य सामग्री की आपूर्ति करने वाला सबसे बड़ा देश है-भारतीय सैन्य जरूरतों का 68 प्रतिशत रूस पूरी करता है, जबकि अमेरिका (14 प्रतिशत) और इस्राइल (7.2 फीसदी) का नंबर बहुत बाद में आता है। क्या भारत अमेरिकी प्रतिबंधों की धमकी के कारण रूस से अपने दशकों पुराने रिश्तों में खटास आने देगा?

सच यह है कि भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय संवाद के पचास से ज्यादा मंच हैं। दोनों का आपसी व्यापार 115 अरब डॉलर का है (दूसरे नंबर पर चीन है, जिसके साथ भारत का व्यापार 84.44 डॉलर का है)। भाषा, लोकतंत्र और साझेदारी के बावजूद अमेरिका कभी रूस की तरह भारत का भरोसेमंद मित्र नहीं रहा। फिर भी वर्तमान भू-राजनीतिक समीकरणों में भारत-अमेरिका-जापान-ऑस्ट्रेलिया का सामरिक साथ चीन के समक्ष एक अविजेय ध्रुव बनाता है।

इसलिए ट्रंप की सनक भरी उतार-चढ़ाव वाली विदेश नीति के बावजूद भारत को संवेदनशील शक्ति संतुलन बनाने की आवश्यकता होगी।

निक्की हेली ने कहा कि ईरान अगला उत्तर कोरिया होगा। यह अमेरिकी दृष्टि है। भारत की नजर में अगला उत्तर कोरिया पाकिस्तान है, जो भारत पर आतंकी हमले करवाता है, आतंकवादी प्रशिक्षण शिविर चलाता है और आतंकी सरगना हाफिज सईद को खुलेआम राजनीति में आने देता है। भारतीय दृष्टि से देखा जाए, तो पाकिस्तान पर आर्थिक प्रतिबंध लगाना चाहिए, जो वैश्विक आतंक का सबसे बड़ा केंद्र बन गया है। पर निकी हेली पाकिस्तान पर महज शाब्दिक बयानबाजी की सख्ती को पर्याप्त समझती हैं, जिसका यथार्थ में कोई महत्व नहीं।

Way Forward

भारत की विदेश नीति भारत को ही तय करनी होगी, यह नीति तय करने का अधिकार अमेरिका को नहीं है। अपने मित्र और सहयोगी तय करना हमारा अपना मामला है। नरेंद्र मोदी की विदेश नीति का सफल पक्ष यह है कि इस्राइल, सऊदी अरब और ईरान जैसे देशों के साथ-जिनके बीच प्रबल शत्रुताएं हैं, भारत के अच्छे संबंध हैं। अमेरिका अपने हितों के लिए बेशक काम करे, पर भारत अमेरिकी हितों के लिए अपनी विदेश नीति में कभी बदलाव नहीं लाएगा। आने वाले छह महीने हमारी विदेश नीति की दृढ़ता की परीक्षा के होंगे।

 

अमेरिका अपने सामरिक हितों के लिए विश्व के तानाशाहों, शाही परिवारों, अलोकतांत्रिक एवं अत्यंत मध्ययुगीन मानसिकता के शासकों से अच्छे संबंध बनाकर चलता है। पर भारत जैसे लोकतांत्रिक देश पर आतंकी हमले करने वाले पाकिस्तान के खिलाफ ऐसी कोई कार्रवाई नहीं करता, जो वह ईरान पर करना चाहता है। यही उसका पाखंड है।

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