IRAN के राष्ट्रपति हसन रूहानी की तीन दिवसीय भारत यात्रा दोनों देशों के बीच कारोबारी लिहाज से भी अहम थी और कूटनीतिक नजरिए से भी। उनके साथ आए प्रतिनिधिमंडल में ईरान के कई दिग्गज कारोबारी भी थे। दरअसल, ईरान इस वक्त कई कारणों से भारत से व्यापारिक लेन-देन बढ़ाना चाहता है।
Why India important for Iran
सकल घरेलू उत्पाद की दर और सकल पूंजी निर्माण की दर में आई कमी के चलते ईरान सरकार अपने यहां जन-असंतोष का सामना कर रही है। हाल में ईरान के कई शहरों में हुए विरोध-प्रदर्शनों ने उसे चिंता में डाल रखा है। ऐसे वक्त में रूहानी को उम्मीद होगी कि अपने तेल और गैस संसाधनों का उपयोग वे अतिरिक्त पूंजी जुटाने, अपने यहां विदेशी निवेश बढ़ाने और रोजगार के नए अवसर सृजित करने में कर सकते हैं।
अमेरिका की तरफ से लगाए गए प्रतिबंधों के चलते ईरान एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मुश्किलों से गुजर रहा है। उसे विदेश व्यापार में भी कठिनाई हो रही है। ऐसे वक्त में भारत से रिश्ते बेहतर होते हैं और लेन-देन बढ़ता है तो ईरान के लिए यह राहत की बात होगी। भारत से व्यापार में ईरान की बढ़ी हुई दिलचस्पी इससे भी जाहिर होती है कि उसने भारत को अपने यहां ढांचागत और यातायात परियोजनाओं में रुपए में निवेश करने की छूट दे रखी है। ईरान यह भी चाहता है कि अफगानिस्तान सीमा पर भारत रेल लाइन बिछाए।
Why Iran needed India
दूसरी ओर, भारत को भी कई वजहों से ईरान के सहयोग की जरूरत है।
चाबहार बंदरगाह के जरिए भारत पाकिस्तान को नजरअंदाज कर अफगानिस्तान तक पहुंच का रास्ता तो पा ही लेगा, मध्य एशिया के देशों तक भी व्यापारिक आवाजाही कर सकेगा।
फिर, ईरान के पास तेल और गैस का प्रचुर भंडार है, और रूहानी ने अपने गैस फील्ड में भारत को निवेश करने की पेशकश भी की है। जहां तक रूहानी की यात्रा के कूटनीतिक महत्त्व का सवाल है, यह दोनों देशों के लिए बराबर है।
इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की भारत यात्रा के कोई महीने भर बाद ईरान के राष्ट्रपति के आगमन से मोदी सरकार ने पश्चिम एशिया में संतुलन साधने की कोशिश की है। यह माना जा रहा था कि ईरान के प्रति ट्रंप के रुख को देखते हुए ईरान से कारोबार बढ़ाने में भारत को परेशानी या हिचक हो सकती है। लेकिन यह आशंका निराधार साबित हुई। अमेरिका ने साफ कर दिया है कि वह भारत और ईरान के व्यापारिक मामलों में आड़े नहीं आएगा।
एक समय ईरान से पाकिस्तान होकर भारत आने वाली पाइपलाइन परियोजना की बड़ी चर्चा थी, पर यह महत्त्वाकांक्षी परियोजना कभी सिरे नहीं चढ़ पाई। जबकि चाबहार परियोजना की एक बड़ी खासियत यही है कि भारत से अफगानिस्तान जाने वाले माल को पाकिस्तान होकर नहीं जाना पड़ेगा। बहरहाल, रूहानी और प्रधानमंत्री मोदी के बीच चाबहार परियोजना के आगे के क्रियान्वयन से लेकर ईरान के तेल और गैस क्षेत्र में भारत के पूंजीनिवेश की संभावना सहित कई मोर्चों पर आपसी सहयोग बढ़ाने पर बातचीत हुई। दोनों नेताओं ने साझा बयान भी दिए। इस मौके पर दोनों देशों के बीच नौ करार हुए, जो चाबहार और शाहिद बहेस्ती बंदरगाह के अलावा दोहरे कराधान से बचाव, राजनयिक पासपोर्ट धारकों को वीजा से छूट देने, प्रत्यर्पण संधि की पुष्टि तथा दवा और कृषि आदि में आपसी सहयोग से संबंधित हैं।
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