पिछले कुछ वर्षों से भारत-रूस के संबंधों में उदासीनता के संकेत मिल रहे थे। भारत और रूस के रिश्तों में यह खिंचाव प्रधानमंत्री मोदी की बराक ओबामा के अमेरिकी राष्ट्रपति पद पर रहते रंग चढ़ी दोस्ती और मुलाकातों के बाद झलकने लगा जब रूस ने पाकिस्तानी सेना के साथ सैन्य अभ्यास किया। साथ ही पाकिस्तान को एमआई हेलीकॉप्टरों की आपूर्ति की। धीरे-धीरे पाकिस्तान और रूस के संबंध शीतयुद्ध कालीन खटास के दौर से यू-टर्न लेते हुए संयुक्त सैन्य अभ्यास के रिश्तों तक पहुंच गए।
- पाक के रूस की तरफ झुकाव की वजह उसके अपने पुराने संरक्षक अमेरिका की पाकिस्तानी शस्त्रागार को मजबूत करने की बजाय अफगानिस्तान की समस्याओं को सुलझाने को तरजीह देना है।
- पाक अमेरिका की इस बेरुखी से उदासीन होकर चीन और रूस की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाने लगा। ऐसे में रूस जो भारत से रिश्तों की गर्माहट खो रहा था, ने पाकिस्तान का हाथ थाम लिया परंतु भारत के नीति-निर्धारकों को रूस की उदासीनता के लक्षणों को हल्के में नहीं लेना चाहिए। रूस न सिर्फ भारत को कम दामों में सैन्य सामग्रियों की आपूर्ति करता रहा है बल्कि हमेशा भारत के साथ हर अच्छे-बुरे वक्त में खड़ा रहा है।
- भारत और रूस की दोस्ती बहुत पुरानी है और इस दोस्ती पर आज तक संदेह का कोई सवाल नहीं उठा।
यदि भारत ने अफगानिस्तान समस्या के समय रूस का साथ दिया तो रूस ने भी कश्मीर के मुद्दे पर कई बार अपनी वीटो पावर का प्रयोग भारत के हित में किया। यहां तक कि 1971 के युद्ध में जब अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन और चीनी राष्ट्राध्यक्ष माओ पाकिस्तान के पक्ष में एकजुट हो रहे थे, उस समय रूस ने ही भारत के साथ खड़े होकर पाकिस्तान का विरोध किया था। यदि भारतीय रणनीतिकार रूस से दूर जा रहे हैं तो यह उनकी नीतियों का दोष है। अभी यदि भारत रूस से वापस अपनी घनिष्ठता बढ़ाता है तो रूस के सहयोग से अफगानिस्तान के मसले पर भारत और पाकिस्तान के बीच की दूरियां कम हो सकती हैं और इन दोनों के आपसी विवादों को सुलझाने में रूस मध्यस्थता का काम कर सकता है। वैसे मई में प्रधानमंत्री मोदी की व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात भारत और रूस को और निकट लाने के लिए काफी सकारात्मक रही है। रूस भी भारत से अपने रिश्ते खराब नहीं करना चाहता। भारत और रूस की दोस्ती दक्षिण -पूर्वी एशिया में शांति और विकास के लिए एक नई उम्मीद जगाएगी।