सिंधु जल संधि के अौचित्य का प्रश्न (Indus agreement)

 

#Dainik_Tribune

Context:

पाकिस्तान के नव-निर्वाचित प्रधानमंत्री ने अपने अधिकारियों को कहा है कि भारत एवं विश्व बैंक के साथ सिंधु जल संधि के मुद्दे को जोर-शोर से उठायें। अर्थ हुआ कि इमरान खान पाकिस्तान की पूर्व में ही लागू पॉलिसी को और जोर-शोर से लागू करना चाह रहे हैं।

Agreement & Issue between India and Pak:

  • सिंधु जल संधि में झेलम नदी के पानी को पाकिस्तान को आवंटित किया गया है। भारत द्वारा झेलम पर किशनगंगा हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट बनाया जा रहा है। इस प्रोजेक्ट के लिए झेलम की सहायक नदी नीलम के पानी को झेलम में ले जाया जा रहा है, जिससे कि किशनगंगा प्रोजेक्ट को पर्याप्त मात्रा में पानी मिल सके।
  • ये दोनों नदियां हमारी सरहद को पार करके अलग- अलग पाकिस्तान में प्रवेश करती हैं। पाकिस्तान नीलम नदी पर हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट बना रहा है।
  • पाकिस्तान की आपत्ति है कि नीलम के पानी को किशनगंगा में स्थानान्तरित करने के कारण नीलम नदी में पानी कम रह जायेगा और पाकिस्तान द्वारा बनाये जा रहे हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट फेल हो जायेंगे।
  • यहां बताना जरूरी है कि नीलम के पानी को किशनगंगा में ले जाने से भारत पानी की खपत नहीं करता है। इन हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स में जितना पानी एक दिन में ऊपर से आता है, उतना ही पानी बिजली बनाने के बाद नीचे से पाकिस्तान को सप्लाई कर दिया जाता है। नीलम के पानी को झेलम में ले जाने का प्रभाव यह पड़ेगा कि पानी पहले जो नीलम नदी के रास्ते पाकिस्तान में प्रवेश करता था, अब वही पानी झेलम नदी के रास्ते पाकिस्तान में प्रवेश करेगा। पाकिस्तान को मिलने वाले कुल पानी में कोई अंतर नहीं पड़ेगा, केवल उसका प्रवेश का स्थान बदल जायेगा। पाकिस्तान ने इस समस्या को विश्व बैंक के सामने उठाया था। संधि में व्यवस्था है कि विवाद में विश्व बैंक द्वारा मध्यस्थता की जाएगी। विश्व बैंक द्वारा निर्णय लिया गया कि भारत नीलम के आधे पानी को किशनगंगा में ले जा सकता है।

पाकिस्तान ने दूसरी आपत्ति उठाई है कि किशनगंगा प्रोजेक्ट के कारण झेलम नदी के गाद के प्रवाह में अंतर पड़ेगा जो कि पाकिस्तान के लिए नुकसानदेह होगा। सामान्य परिस्थिति में नदी अपने साथ गाद लेकर बराबर बहती है। हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट में डैम के पीछे झील बन जाती है। झील में गाद नीचे बैठने लगती है। शीघ्र ही झील पूरी तरह गाद से भर जाती है। तब टरबाइन में पानी के साथ-साथ गाद बड़ी मात्रा में प्रवेश करने लगती है। इस समस्या से निजात पाने के लिए हाइड्रोपावर प्रोजेक्टों में डैम के नीचे गेट लगाये जाते हैं। इन गेटों को समय-समय पर जैसे सप्ताह में एक बार खोल लिया जाता है, जिससे डैम के पीछे जमा हुई गाद एक ही झटके में नीचे बह जाती है और झील साफ हो जाती है।
पाकिस्तान का कहना है कि गाद के एकाएक बहाव से झेलम पर पाकिस्तान के हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट को नुकसान होगा। इसलिए भारत को इन फ्लशिंग गेटों को बनाने से रोका जाये। इस विषय पर भी विश्व बैंक ने भारत के पक्ष में निर्णय दिया है। संधि पर विवाद इस समय इन तकनीकी विषयों को लेकर है। इन्हीं मुद्दों को इमरान खान पुनः भारत और विश्व बैंक के साथ जोर-शोर से उठाना चाहते हैं।
भारत ने सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर इसलिए किये थे कि पाकिस्तान के साथ सद‍्भाव एवं मित्रता बनी रहे। संधि की प्रस्तावना में लिखा हुआ है कि सद‍्भाव एवं मित्रता की भावना से पाकिस्तान और भारत इस संधि में प्रवेश कर रहे हैं। यह सर्वमान्य है कि किसी भी कानून का विवेचन उसकी प्रस्तावना को देखते हुए किया जायेगा। अतः सिंधु जल संधि का विवेचन इसकी प्रस्तावना को ध्यान में रखते हुए करना होगा। यानी हमें देखना होगा कि सिंधु समझौते से भारत और पाकिस्तान के बीच सद‍्भाव और मित्रता बन रही है या नहीं। यदि हमारे दोनों देशों के बीच सद‍्भाव और मित्रता बन रही है तो सिंधु जल संधि मान्य हो सकती है। लेकिन यदि दोनों देशों के बीच सद‍्भाव और मित्रता नहीं बन रही है तो सिंधु जल संधि का मूल आधार ही समाप्त हो जाता है और भारत को इससे बाहर आने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए।


संधि में व्यवस्था है कि संधि में कोई भी परिवर्तन दोनों देशों की सहमति से किया जायेगा। अतः दो पक्ष हमारे सामने हैं। एक तरफ यदि भारत संधि से बाहर आता है तो हम कह सकते हैं कि सद‍्भाव एवं मित्रता की भावना नहीं बन रही है। इसलिए हमारा बाहर आना वाजिब है। दूसरी तरफ संधि में दी गयी व्यवस्था कि दोनों देशों की सहमति से ही परिवर्तन किया जायेगा, का हम उल्लंघन कर रहे होंगे। लेकिन जब हम संधि को ही निरस्त करते हैं तो संधि के प्रावधानों का कोई महत्व नहीं रह जाता है। जैसे सगाई के बाद शादी ही निरस्त कर दी जाये तो विवाह की जो तारीख पहले तय हो, वह अप्रासंगिक हो जाती है। अथवा यदि आप दुकानदार से माल खरीदते ही नहीं हैं तो उसके द्वारा बताये गये माल के गुण का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। इसी प्रकार जब हम संधि को ही नहीं मानते तो संधि के प्रावधानों का पालन करने का हमारे ऊपर कोई बंधन नहीं रहता है।


सिंधु जल संधि को लागू करने का कोई प्रावधान नहीं है। यानी इस संधि से उठे विवाद का निस्तारण विश्व बैंक अथवा इन्टरनेशल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस जैसी संस्था में नहीं किया जा सकता। इसमें केवल विश्व बैंक की मध्यस्थता की भूमिका है। विश्व बैंक इस पर जो भी निर्णय दे, उसको स्वीकार करना या न करना दोनों देशों के अपने विवेक पर निर्भर करता है। इसलिए हमें क़ानूनी दृष्टि से इस संधि को निरस्त करने में कोई अड़चन नहीं है।


पाकिस्तान को बहने वाली अपनी छह नदियों के 80 प्रतिशत पानी को भारत सद‍्भाव एवं मित्रता बनाये रखने के लिए पाकिस्तान को दे रहा है। पाकिस्तान मित्रता बनाने के स्थान पर हमारे देश में आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा दे रहा है। लेकिन पाकिस्तान ने छोटी आपत्तियां दर्ज कराकर हमारा ध्यान 80 प्रतिशत पानी के आवंटन से भटका दिया है। पाकिस्तान ने हमें बेवकूफ बना दिया है।
भारत को चाहिए कि तत्काल सिंधु जल संधि को निरस्त करे और पाकिस्तान को नोटिस दे कि संधि सद‍्भाव एवं मित्रता की भावना से बनाई गयी थी और चूंकि सद‍्भाव एवं मित्रता की भावना नहीं बन रही है, इसलिए इस संधि का अब कोई औचित्य नहीं रह गया है। भारत को छोटे विषयों में न उलझकर पानी के बंटवारे के मूल विषय को उठाना चाहिए। यदि हमने ऐसा शीघ्र नहीं किया तो इमरान खान की सरकार किसी नये रूप में सिंधु जल संधि को पुनः अन्तर्राष्ट्रीय फोरम पर उठाएगी और हम रक्षात्मक मुद्रा में आ जायेंगे। जरूरत इस समय आक्रामक रूप लेकर पाकिस्तान को आतंकवाद से अलग करने की पहल करने की है

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